केदारघाटी में हुए उपचुनाव में भले ही बीजेपी यह सीट जीतने में कामयाब रही हो लेकिन केदारघाटी की जनता भाजपा एवं सरकार से खासी नाराज थी। केदारनाथ यात्रा को डायवर्ट करना, स्थानीय युवाओं को अतिक्रमण के नाम पर बेरोजगार करना केदारघाटी में मुख्य मुद्दा रहा। हालांकि, कांग्रेस ने इसे हर चुनावी सभा में जोर शोर से रखा। लेकिन वे इसे वोट में तब्दील नहीं कर पाए।
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
केदारनाथ उपचुनाव में भाजपा ने नाक की लड़ाई में अपनी सीट बरकरार रखी। भाजपा प्रत्याशी ने कांग्रेस को कुल 5,622 मतों से पराजित किया। भाजपा की को कुल 23,814 वोट मिले। जबकि कांग्रेस के को 18,191 वोट पड़े। इस चुनाव में निर्दलीय ने दोनों दलों की नाक में दम करते हुए अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई। उन्होंने 9,311 मत प्राप्त कर तीसरा स्थान हासिल किया। पहले, चौथे और पांचवें राउंड में दूसरे स्थान पर आ गए थे। उधर दो प्रत्याशियों को नोटा से भी कम वोट मिले। नोटा में 834 मत पड़े। अगस्त्यमुनि के क्रीड़ा भवन में सुबह आठ बजे से मतगणना शुरू हुई। सबसे पहले पोस्टल मतपत्रों की गिनती शुरू की गई। जिसके बाद लगभग 9 बजे पहले चक्र की मतगणना के परिणाम आए जिसमें भाजपा ने 213 मतों से बढ़त पाई। जो हर चक्र में बढ़ती चली गई।
चौथे चक्र में निर्दलीय ने सबसे अधिक 2,120 मत प्राप्त किए। जबकि सातवें चक्र में कांग्रेस के ने सबसे अधिक 2,309 मत प्राप्त किए। लेकिन भाजपा की से बढ़त नहीं ले सके। 13वें व अंतिम चक्र के बाद भाजपा 5,099 मतों से आगे रहीं। पोस्टल वोट जुड़ने के बाद यह अंतर 5,622 मत हो गया। निर्दलीय ने 9311 मत प्राप्त कर सबको चौंका दिया। वे अगर भाजपा के खेवनहार बने तो कांग्रेस के लिए भी सबक दे गए। दरअसल, माना जाता रहा कि केदारघाटी में जनता भाजपा एवं सरकार से खासी नाराज थी। केदारनाथ यात्रा को डायवर्ट करना, स्थानीय युवाओं को अतिक्रमण के नाम पर बेरोजगार करना केदारघाटी में मुख्य मुद्दा रहा। हालांकि, कांग्रेस ने इसे हर चुनावी सभा में जोर शोर से रखा। लेकिन वे इसे वोट में तब्दील नहीं कर पाए। जनता के बीच रहकर इस मुद्दे को लगातार उठाया। इसका उन्हें फायदा भी नजर आया। वे केदारघाटी के भाजपा से नाराज वोट को समेटने में पूरी तरह से सफल रहे।
कांग्रेस जहां समझ रही थी कि निर्दलीय भाजपा को नुकसान पहुंचाएंगे। लेकिन उन्होंने भाजपा से ज्यादा कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया। जनता के मुद्दों पर जनता के बीच रहकर संघर्ष किया जाए तो बिना किसी धनबल के अच्छा चुनाव लड़ा जा सकता है। चुनाव परिणाम आने के बाद त्रिभुवन ने अपने इरादे जताते हुए कहा कि जनता की यह लड़ाई आगे भी चलती रहेगी। उन्होंने जनता का आभार जताते हुए कहा कि उनका यह बेटा हमेशा इसी तरह उनके साथ खड़ा रहेगा। केदारनाथ क्षेत्र के निवासी त्रिभुवन चौहान पहले यूट्यूबर पत्रकार थे। केदारनाथ यात्रा के दौरान उन्होंने कई मुद्दों पर वीडियो बनाकर लोगों से संवाद किया। जब उपचुनाव की घोषणा हुई, तो त्रिभुवन ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया। शुरुआत में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने उन्हें हल्के में लिया, लेकिन जैसे-जैसे चुनाव प्रचार बढ़ा, त्रिभुवन ने बीजेपी से नाराज मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित किया। इसका असर कांग्रेस के वोटों पर भी पड़ा।
एंटी इनकम्बेंसी के सूत्र पर नापे जाने वाली चुनावी राजनीति में मतदाता अब नकारात्मक प्रचार के बजाय काम करने वाली सरकारों को दोबारा जनादेश देने से हिचकते नहीं है। इस सीट पर कुल 6 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा। ये महज एक संयोग है या फिर ट्रेंड को फॉलो करने का नतीजा कि केदारनाथ उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार और स्वतंत्र उम्मीदवार दोनों उम्मीदवार पत्रकारिता में हाथ आजमा चुके हैं। 2017 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे मनोज रावत प्रिंट पत्रकारिता में सक्रिय रहे हैं। उनकी कई खोजी रिपोर्ट्स भी प्रमुख मैगजींस में छपी हैं।
त्रिभुवन भी यूट्यूब चैनल में जनता के बीच रिपोर्टिंग करते रहे। कह सकते हैं कि दोनों प्रत्याशियों को राजनीति में आने से पहले अपने पत्रकारिता बैकग्राउंड का फायदा मिला लेकिन बीजेपी और कांग्रेस के अलावा जिस प्रत्याशी की सबसे ज्यादा चर्चा रही वो रहे इंडिपेंडेंस उम्मीदवार इन्होंने 9300 वोट हासिल किए। चुनावी पल्स पर पकड़ रखने वाले जानकारों का मानना है कि निर्दलीय उप चुनाव में कांग्रेस का गेम पलटने वाले साबित हुए केदारनाथ उपचुनाव बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई थी, क्योंकि यह अयोध्या और बद्रीनाथ के बाद महत्वपूर्ण धार्मिक-राजनीतिक क्षेत्र है। कांग्रेस अपनी खोई जमीन वापस पाना चाहती थी, लेकिन कड़ी मेहनत के बावजूद जीत बीजेपी के हिस्से आई।
लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं और वह दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।
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