भारत का ऐसा योद्धा जिसने 1962 के युद्ध में चीनी सेना के 300 सैनिकों को मार गिराया

भारत का ऐसा योद्धा जिसने 1962 के युद्ध में चीनी सेना के 300 सैनिकों को मार गिराया

देवभूमि के लाल महावीर चक्र विजेता राइफलमैन जसवंत सिंह रावत को उनकी जयंती पर शत् शत् नमन। उन्होंने 1962 के युद्ध में चीनी सेना के 300 से ज्यादा सैनिकों को मार गिराया था और बाद में खुद मां भारती की रक्षा करते हुए शहीद हो गये।

आज 1962 युद्ध के एक ऐसे योद्धा की जयंती है जिन्होंने चीनी सेना के छक्के छुड़ा दिये थे और लगातार तीन दिन तक चीनी सेना से लड़ते रहे और बाद में जब उनके पास गोला बारूद खत्म होने लगा तो वह मां भारती की रक्षा करते हुए शहीद हो गये।

उन्होंने जीते जी भी सीमाओं की रक्षा कर अपना सर्वोच्च बलिदान दिया और मरने के बाद भी सीमाओं की सुरक्षा उसी मुस्तैदी से निभा रहे है जी हां हम बात कर रहे हैं महावीर चक्र विजेता और 1962 के युद्व में चीन की विशाल सेना से अकेले लोहा लेने वाले बहादुर योद्धा जसवंत सिंह रावत की।

जसवंत सिंह रावत की कहानी ने हर भारतीय के खून में देशभक्ति का संचार किया है जिन्होंने तीन दिनों तक ना सिर्फ चीनी सेना को रोक कर रखा बल्कि दुश्मन के 300 से अधिक सैनिकों को अकेले मार गिराया। 1962 की लड़ाई दो मोर्चो पर लड़ी गयी, पहला लेह और दूसरा देश की उत्तर-पूर्वी सीमा अरुणाचल। इस लड़ाई में देवभूमि उत्तराखंड के सैकड़ों वीरों ने अपनी जान की बाजी लगाई।

गढ़वाल रेजिमेंट की चौथी बटालियन को था सुरक्षा का जिम्मा

अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में स्थित है नूरानांग की पहाड़ियां जो तेजपुर से तवांग रोड पर लगभग 425 किलोमीटर दूरी पर है। तवांग के उत्तर में चीन है और पश्चिम में भूटान। यह वर्ष 1962 की बात है, जब चीन ने विस्तारवादी सोच के तहत पंचशील समझौते को धता बताते हुए भारत पर आक्रमण कर दिया था। लगभग 14,000 फीट ऊंचाई पर स्थित सीमान्त क्षेत्र की नूरानांग पहाड़ी व आसपास के इलाके का सुरक्षा का दायित्व तब गढ़वाल रेजिमेंट की चौथी बटालियन पर था। यहां तक पहुंचने के लिए टवांग चू नदी को पार करना होता है।

1962 की लड़ाई में जसवंत सिंह रावत के साथ और कई सैनिक लड़ाई लड़ रहे थे उनमें से एक हवलदार गोपाल सिंह गुसांई भी थे। पौड़ी गढ़वाल के रहने वाले हवलदार गोपाल सिंह गुसांई के मुताबिक हाड़ कंपा देने वाली इस ठंड में भी चीनी सेना 17 नवम्बर 1962 को सुबह छः बजे से ही छः से अधिक बार हमला कर चुकी थी।

लैंसनायक गोपाल सिंह गुसाईं, लैंसनायक त्रिलोक सिंह और रायफलमैन जसवंत सिंह रावत तीनों जवान शत्रुओं से मोर्चा लेने के लिए आगे बढे किन्तु चीनी सैनिक एक मरता तो दूसरा उसकी जगह आ कर ले लेता और फिर उनकी ओर से निरन्तर हमला जारी रहा। जिसके परिणाम स्वरुप हमारे जवान एक एक कर देश के काम आते रहे। पीछे से किसी प्रकार की सहायता नहीं मिल पा रही थी। लड़ते-लड़ते लैंसनायक त्रिलोक सिंह शहीद हो गए। लैंसनायक गोपाल सिंह गुसाईं के हाथ में कई गोलियां लग गयी।

जसवंत सिंह रावत ने सम्भाला मोर्चा

तब अकेले रायफलमैन जसवंत सिंह रावत ने मोर्चा सम्भाल लिया। वहां पर पांच बंकरों पर मशीनगन लगायी गयी थी और रायफलमैन जसवंत सिंह छिप छिपकर और कभी पेट के बल लेटकर दौड़ लगाता रहा और कभी एक बंकर से तो कभी दूसरे से और तुरन्त तीसरे से और फिर चौथे से, अलग अलग बंकरों से शत्रुओं पर गोले बरसाता रहा।

पूरा मोर्चा सैकड़ों चीनी सैनिकों से घिरा हुआ था और उनको आगे बढ़ने से रोक रहा था तो जसवंत सिंह का हौसला, चतुराई भरी फुर्ती, चीनी सेना यही समझती रही कि हिंदुस्तान के अभी कई सैनिक मिल कर आग बरसा रहे हैं।

जबकि हकीकत कुछ और थी, इधर जसवंत सिंह रावत को लग गया था कि अब मौत निश्चित है अतः प्राण रहते तक मां भारती और तिरंगे की आन बचाए रखनी है। जितना भी एमुनिशन उपलब्ध था, समाप्त होने तक चीनियों को आगे नहीं बढ़ने देना है। रणबांकुरा बिना थके, भूखे-प्यासे पूरे 72 घंटे (तीन दिन तीन रात) तक चीनी सेनाओं की नाक में दम किये रहा।

देश सेवा के लिए सैकड़ों सैनिकों हुए अमर

नूरानांग की पहाड़ियों पर जो लड़ाई हुई उसमें कुल 162 जवान वीरगति को प्राप्त हुए, 264 कैद कर लिए गए और 256 जवान मौसम की मार से या अन्य कारणों से तितर-बितर हो गए लेकिन भारतीय सेना के वीरों ने इतिहास में अपना नाम सदा के लिए अमर कर लिया।

लैंसनायक गोपाल सिंह गुसाईं 3 महीनों तक चीन की कैद में रहे। जसवंत सिंह रावत को मरणोपरांत महावीर चक्र और लैंसनायक गोपाल सिंह गुसाईं को वीर चक्र से सम्मानित किया गया।

आज भी जिन्दा है जसवंत सिंह रावत

जिस स्थान पर जसवंत सिंह रावत शहीद हुए थे वहां एक भव्य मंदिर स्थित है और उस पूरे इलाके को जसवंतगढ के नाम से जाना जाता है। सेना की एक टुकडी वहां 12 महीने तैनात रहती है जो हर पहर उनके खाने, कपने और सोने का प्रबंध करती है। हर साल 17 नवम्बर को वहा पर कार्यक्रम किया जाता है।

आज भी उनकी आत्मा देश की सीमाओं की रक्षा कर रही है वे ड्यूटी पर तैनात सिपाही को कभी सोने नही देते। जवान हो या फिर जनरल उस मंदिर में मत्था टेकने के बाद ही आगे बढता है। यहां तक कि आसमान में उडने वाले लडाकू जहाज बाबा जसवंत सिंह के आगे झुककर सलामी देते है।
आज भी ड्यूटी पर है तैनात

61 सालों से देश का महावीर अरुणाचल प्रदेश के उस अतिदुर्गम पोस्ट पर सीमाओं की चौकसी कर रहा है। सेना में उन्हें आर्डनरी कैप्टन की पोस्ट से सेवानिवृत्त कर दिया था लेकिन दुश्मन देश की हर हरकत पर जसवंत सिंह की पैनी नजर रहती है।

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