उत्तराखंड में FTII का केंद्र खोलने को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने दी सैद्धांतिक मंजूरी, अनिल बलूनी ने दी जानकारी

उत्तराखंड में FTII का केंद्र खोलने को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने दी सैद्धांतिक मंजूरी, अनिल बलूनी ने दी जानकारी

अनिल बलूनी ने 26 अगस्त 2021 को केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर को एफटीआईआई के आउटरीच सेंटर के लिए पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने लिखा था कि उत्तराखंड में कला एवं संस्कृति की समृद्ध परंपरा है। उत्तराखंड की खूबसूरती और समृद्ध संस्कृति यहां के युवाओं को सिनेमा के विभिन्न पहलुओं जैसे अभियन, स्क्रीन राइटिंग, फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी के लिए आकर्षित करती है। अच्छे संस्थानों और अवसरों की कमी के चलते उत्तराखंड के युवा अपनी कला को निखार नहीं पाते।

उत्तराखंड में पुणे स्थित प्रतिष्ठित फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया का सेंटर खोला जाएगा। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इसके लिए सैद्धांतिक सहमति दे दी है। राज्यसभा सांसद और भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी ने एक फेसबुक पोस्ट के जरिये यह जानकारी दी है।

उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा है, ‘मित्रों आपके साथ एक सुखद सूचना साझा करना चाहूंगा, आज केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर के साथ भेंट में उत्तराखंड के लिए प्रतिष्ठित एफटीआईआई ( फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया ) पुणे के परिसर हेतु सैद्धांतिक स्वीकृति प्राप्त हुई। मुझे आशा है इस संस्थान के माध्यम से हमारे राज्य की मेधावी प्रतिभाओं को तराशने और निखरने का अवसर प्राप्त होगा।’

अनिल बलूनी ने 26 अगस्त 2021 को केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर को एफटीआईआई के आउटरीच सेंटर के लिए पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने लिखा था कि उत्तराखंड में कला एवं संस्कृति की समृद्ध परंपरा है। देवभूमि कही जाने वाले उत्तराखंड के लोग अपनी लोक कलाओं और परंपराओं को प्यार करते हैं तथा उन्हें सहेज कर रखते हैं। ये लोग रचनात्मकता से भरे हुए हैं। उत्तराखंड ने कई प्रख्यात साहित्यकार, लेखक और अभिनेता दिए हैं। उत्तराखंड की खूबसूरती और समृद्ध संस्कृति यहां के युवाओं को सिनेमा के विभिन्न पहलुओं जैसे अभियन, स्क्रीन राइटिंग, फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी के लिए आकर्षित करती है। अच्छे संस्थानों और अवसरों की कमी के चलते उत्तराखंड के युवा अपनी कला को निखार नहीं पाते। हाल के वर्षों में उत्तराखंड फिल्म की शूटिंग के लिए फिल्मकारों की पसंदीदा जगह बनकर उभरा है। लेकिन यहां दक्ष स्थानीय टेक्नीशियनों और कलाकारों की कमी है, जो कि फिल्म निर्माता यूनिट के लिए मददगार साबित हो सकते हैं। इससे स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं को भी मदद मिलती है। एक समय में यहां गढ़वाली और कुमाऊंनी फिल्मों की छोटी सी इंडस्ट्री थी लेकिन अनुकूल इकोसिस्टम की कमी के चलते यह काफी सिमट गई है।

उन्होंने पत्र में आगे लिखा है, मुझे इस बात की जानकारी है कि पिछले कुछ समय में एफटीआईआईने उत्तारखंड सरकार और दूसरी एजेंसियों के साथ अभिनय, फिल्म मेकिंग, स्क्रीनप्ले राइटिंग के के कुछ शॉर्ट कोर्स देहरादून, हरिद्वार, आईआईटी रुड़की, हल्द्वानी, नैनीताल और रुद्रप्रयाग में चलाए। इन कोर्सों ने स्थानीय युवाओं के मन में गुणवत्ता वाली फिल्म शिक्षा को करियर विकल्प के रूप में अपनाने की रुचि जगाई। एफटीआईआई देश भर में फिल्म एजुकेशन के लिए सफल कोर्स चला रहा है। इसलिए मेरी आपसे विनती है कि उत्तराखंड में एफटीआईआई का एक ‘आउटरीच सेंटर’ खोलने पर विचार किया जाए। यह उत्तराखंड ही नहीं, इससे लगे दूसरो राज्यों के युवाओं से लिए भी नए रास्ते खोलेगा।

FTII निदेशक ने दिया था फिल्मों को लेकर ईकोसिस्टम बनाने पर जोर

हिल-मेल उत्तराखंड में फिल्मों की संभावना को मुद्दे को लगातार उठाता रहा है। हिल-मेल ने कुछ समय पहले इस मुद्दे पर एफटीआईआई के निदेशक भूपेंद्र कैंथोला और उत्तराखंड के मूल कलाकारों से चर्चा भी की थी।  FTII के निदेशक भूपेंद्र कैंथोला ने हिल-मेल के ई-रैबार में उत्तराखंड में फिल्म निर्माण के लिए ईकोसिस्टम बनाने पर जोर दिया था। उन्होंने कहा था कि उत्तराखंड में सिनेमा का बीज पैदा करने की जरूरत है। वहां ईको सिस्टम नहीं है। कम से कम 30-40 साल से गढ़वाली, कुमांउनी भाषा में बन रही हैं, 4 साल मैं नेशनल फिल्म अवॉर्ड का डायरेक्टर था दिल्ली में और उन चार वर्षों में छत्तीसगढ़ और त्रिपुरा में तो डेढ़ दो लाख लोगों में बोली जाने वाली भाषा की फिल्म आई और अवॉर्ड ले गई। वहां पर भी फिल्म को लेकर संवेदनशीलता है कि हमें फिल्म दिल्ली भेजनी चाहिए लेकिन 4 वर्षों में गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा में कोई फिल्म नहीं आई। उन्होंने कहा कि एक हमें ईको सिस्टम तैयार करना है। उत्तराखंड मूल के फिल्ममेकर बाहर जाकर अच्छी फिल्म बनाते हैं लेकिन प्रदेश में ऐसा माहौल ही नहीं है कि वे कुछ बना पाएं जबकि पलायन जैसे संवेदनशील मसले पर बढ़िया फिल्म बन सकती है और वह एक दिल को छू लेने वाले मेसेज दे सकती है। कैंथोला कहते हैं कि उत्तराखंड में युवाओं के पास हुनर की कमी नहीं है, अगर स्थानीय स्तर पर उन्हें सिनेमा की बारीकियां सिखाई जाएं तो वो बहुत अच्छा काम कर सकते हैं।

 

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