त्रिवेंद्र सिंह रावत की वृक्षारोपण मुहिम को इसरो के वैज्ञानिकों ने सराहा, सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन सोखते हैं पीपल-बरगद

त्रिवेंद्र सिंह रावत की वृक्षारोपण मुहिम को इसरो के वैज्ञानिकों ने सराहा, सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन सोखते हैं पीपल-बरगद

आईआईआरएस के निदेशक और प्रख्यात वैज्ञानिक डा. प्रकाश चौहान ने बताया कि संस्थान द्वारा सैटेलाइट के जरिये उत्तराखंड में होने वाली प्राकृतिक घटनाओं की निगरानी की जा रही है। उन्होंने सैटेलाइट इमेज के जरिये दिखाया कि उत्तराखंड में साल दर साल ग्लेशियर कैसे पीछे खिसक रहे हैं।

पर्यावरण को बचाने में वैज्ञानिक और विशेषज्ञ अपना-अपना काम कर रहे हैं, आम आदमी इसके लिए क्या कर सकता है? उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जब यह सवाल इसरो की प्रशिक्षण इकाई आईआईआरएस यानी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग के वैज्ञानिकों से किया तो उनका एक ही जवाब था, ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण। वैज्ञानिकों ने कहा, कोरोना काल में वायुमंडल में देखे गए बदलाव से साफ हो गया है कि जितना कॉर्बन का उत्सर्जन कम होगा, पर्यावरण उतना ही स्वच्छ रहेगा। वायुमंडल में मौजूद कॉर्बन को सोखने के लिए वृक्षारोपण सबसे बेहतर विकल्प है।

प्रदेश भर में वृक्षारोपण अभियान शुरू करने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत केंद्रीय संस्थानों में अपनी मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं। इसी कड़ी में वह शुक्रवार को आईआईआरएस पहुंचे। यहां संस्थान के वैज्ञानिकों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। संस्थान के निदेशक और प्रख्यात वैज्ञानिक डा. प्रकाश चौहान ने आईआईआरएस के कार्यक्षेत्रों और नई पहलों के बारे में त्रिवेंद्र सिंह को विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि संस्थान उत्तराखंड समेत कई राज्यों के विभिन्न जनकल्याण के प्रोजेक्टों पर काम कर रहा है। फरवरी में चमोली के तपोवन रैणी की आपदा के बाद राज्य सरकार की ओर से आईआईआरएस को हिमालय के सभी ग्लेशियरों की मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी दी गई है। चमोली में आपदा कैसे आई, क्या कारण रहे इसे लेकर तैयार की गई एक विस्तृत रिपोर्ट को भी त्रिवेंद्र सिंह को दिखाया गया। इस दौरान चर्चा में भाग ले रहे प्रख्यात ग्लेशियोलॉजिस्ट डा. डीपी डोभाल और उत्तराखंड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (यूसैक) के निदेशक प्रो. एमपीएस बिष्ट ने भी ग्लेशियरों की स्थिति पर अपने विचार रखे और हिमालयी क्षेत्र में हो रहे पर्यावरणीय परिवर्तनों की जानकारी दी।

डा. चौहान ने बताया कि संस्थान द्वारा सैटेलाइट के जरिये उत्तराखंड में होने वाली प्राकृतिक घटनाओं की निगरानी की जा रही है। उन्होंने सैटेलाइट इमेज के जरिये दिखाया कि उत्तराखंड में साल दर साल ग्लेशियर कैसे पीछे खिसक रहे हैं। इस दौरान चारधाम क्षेत्र की थ्रीडी इमेज के जरिये भी ग्लेशियरों की स्थिति की जानकारी पूर्व मुख्यमंत्री को दी गई। डा. चौहान ने बताया कि संस्थान में कैपेसिटी बिल्डिंग का कार्य किया जा रहा है। हमारे साथ 2500 से ज्यादा संस्थान जुड़े हुए हैं, जिनके साथ ऑनलाइन कंटेंट शेयर किया जाता है।

इस दौरान इसरो द्वारा संचालित एडूसैट प्रोग्राम के संयोजक डा. हरीश कर्नाटक ने बताया कि कोरोना काल में भी एक लाख से ज्यादा लोगों को ऑनलाइन कोर्से कराया गया। देश-विदेश से कई युवा संस्थान के कोर्सों में दिलचस्पी ले रहे हैं। आईआईआरएस अपने डाटा को जीआईएस पोर्टल पर भी शेयर करता है।

डा. चौहान ने बताया कि एडवांस वार्निंग को लेकर विशेष काम किया जा रहा है। उत्तराखंड के जंगलों में लगने वाली आग को सैटेलाइट की मदद से देखा जा सकता है। इससे संबंधित क्षेत्रों के लिए रणनीति बनाने में मदद मिल सकती है। जंगलों की आग की दैनिक निगरानी के लिए एक ऐप भी विकसित किया गया है। इससे किसी भी क्षेत्र में लगने वाली आग की सूचना तुरंत उच्च अधिकारियों और रिस्पांस टीमों को मिल सकती है।

इस दौरान बताया कि उत्तराखंड का पशुपालन विभाग पूरी तरह डिजिटल हो चुका है। इसके लिए आईआईआरएस के वैज्ञानिकों ने एक ऐप भी डेवलप किया है। राज्य में विभाग के केंद्र कहां-कहां हैं, उनसे जुड़ी पूरी जानकारी इस ऐप पर उपलब्ध हो जाती है। एक महीने से कम समय में वैज्ञानिकों ने इस ऐप को तैयार कर दिया है।

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह ने इस परिचर्चा में मौजूद वैज्ञानिकों को बताया कि इस साल उन्होंने एक लाख पीपल, बरगद और इसकी प्रजातियों के वृक्षारोपण का लक्ष्य रखा है। प्रदेश के विभिन्न भागों में करीब 65 हजार से ज्यादा वृक्ष रोपित किए जा चुके हैं। समाज के हर वर्ग का सहयोग इस कार्य में मिल रहा है। जनता के सहयोग से उनका यह अभियान अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है।

 

त्रिवेंद्र सिंह रावत ने संस्थान के निदेशक और अन्य वैज्ञानिकों के साथ आईआईआरएस परिसर में बनाए गए संग्रहालय का दौरा किया। इस दौरान आईआईआरएस के कोर्सों का लाभ उठाने वाले लोगों से संवाद भी किया। पूर्व मुख्यमंत्री ने संस्थान के परिसार में पीपल, बरगद और अन्य प्रजाति के पौधे भी रोपे। डा. चौहान ने कहा कि यह वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित है कि पीपल और बरगद साल भर में दूसरे पेड़ों के मुकाबले कही ज्यादा कॉर्बन को सोखते हैं। ऐसे में पीपल, बरगद और इसकी प्रजातियों के वृक्षारोपण के लिए त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा चलाया जा रहा अभियान काफी अहम हो जाता है। उन्होंने कहा कि आईआईआरएस प्रत्येक पौधे की जीआई टैगिंग कर सकता है, इससे सैटेलाइट की मदद से इन पौधों को बढ़ते हुए देखा जा सकता है।

डा. चौहान ने ही सबसे पहले चंद्रयान द्वारा भेजी गई तस्वीरों के विश्लेषण के आधार पर चंद्रमा में पानी के कण होने का पता लगाया था। उन्होंने बताया कि आईआईआरएस उत्तराखंड में कई क्षेत्रों में अहम भूमिका निभा सकता है।

यूसैक ने 150 देववनों का किया वैरिफिकेशन

इस अवसर पर यूसैक के निदेशक प्रो. एमपीएस बिष्ट द्वारा बताया गया कि उत्तराखंड के अंदर जितने भी देववन और देववृक्ष की पारिस्थितिक सेवाओं का आकलन कर उनका जियो टैगिंग किया जा रहा है। उत्तराखंड में लगभग 280 देववन हैं, जिनमें सिर्फ पिथौरागढ़ में 140 देववन हैं। यूसैक ने अब तक उत्तराखंड के विभिन्न जिलों में 150 देववनों का वैरिफिकेशन कर लिया है।

 

 

 

Hill Mail
ADMINISTRATOR
PROFILE

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked with *

विज्ञापन

[fvplayer id=”10″]

Latest Posts

Follow Us

Previous Next
Close
Test Caption
Test Description goes like this