उत्तर प्रदेश के दिहुली नरसंहार में चार दशक बाद मिला इंसाफ, 24 दलितों की हत्या के मामले में 3 लोगों को फांसी

उत्तर प्रदेश के दिहुली नरसंहार में चार दशक बाद मिला इंसाफ, 24 दलितों की हत्या के मामले में 3 लोगों को फांसी

दिहुली गांव के पीड़ित कहते हैं कि 44 साल में तो उनके आंसू भी सूख गए हैं। देश को झकझोर देने वाले दिहुली हत्याकांड को अंजाम देने वाले राधे-संतोषा गिरोह ने 24 दलितों की हत्या सिर्फ इसलिए की थी क्योंकि इस गिरोह से पुलिस से हुई एक मुठभेड़ में इस गांव के लोगों को पुलिस ने गवाह बनाया था।

उत्तर प्रदेश में मैनपुरी की एक अदालत ने 24 दलितों की हत्या के 44 साल पुराने मामले में दोषी तीन लोगों को फांसी की सजा सुनाई है। अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (विशेष) इंद्रा सिंह की अदालत ने मंगलवार को बहुचर्चित दिहुली हत्याकांड के दोषी रामसेवक, कप्तान सिंह और रामपाल सिंह को फांसी की सजा के साथ-साथ 50-50 हजार जुर्माना भरने का आदेश दिया है।

अभियोजन पक्ष के अनुसार दिहुली गांव में 18 नवंबर 1981 को कुख्यात राधे-संतोषा गिरोह के 18 सदस्यों ने गांव में 24 दलितों की हत्या की थी। इस मामले में 1993 में पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की थी। इस कांड से केंद्र की इन्दिरा सरकार और उत्तर प्रदेश की वी पी सिंह सरकार हिल गई थी और वीपी सिंह को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

इस जघन्य वारदात के बाद 22 नवम्बर 1981 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी दिहुली आई थीं और उन्होंने पीड़तों से बात की थी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्देश पर इस केस की सुनवाई मैंनपुरी में हुई। सुनवाई के दौरान 17 आरोपियों में से 13 की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गयी जबकि एक आज भी भगोड़ा घोषित है।

दिहुली गांव के पीड़ित कहते हैं कि 44 साल में तो उनके आंसू भी सूख गए हैं। देश को झकझोर देने वाले दिहुली हत्याकांड को अंजाम देने वाले राधे-संतोषा गिरोह ने 24 दलितों की हत्या सिर्फ इसलिए की थी क्योंकि इस गिरोह से पुलिस से हुई एक मुठभेड़ में इस गांव के लोगों को पुलिस ने गवाह बनाया था।

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