26 जुलाई कारगिल विजय दिवस विशेष …जरा याद उन्हें भी कर लो जो लौट के घर न आये…

26 जुलाई कारगिल विजय दिवस विशेष …जरा याद उन्हें भी कर लो जो लौट के घर न आये…

आज पूरा देश कारगिल युद्ध में शहीद हुए जांबाजों को नमन कर रहा है जिन्होंने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था।

भारतीय सैनिकों और अफसरों के सैन्य कौशल, धैर्य और साहस से कारगिल युद्ध में पाकिस्तान के दोगलेपन को जगजाहिर हुए बाईस साल हो गये। 26 जुलाई को हम हर साल ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप में मनाते हैं। इस दिन भारतीय सेना ने कारगिल की पहाडियों पर कब्जा जमाए पाकिस्तानी आतंकियों के वेश में घुस आए सैनिकों को मार भगाया था। इस युद्ध में भारत के 559 सैनिक अपनी मातृभूमि की रक्षा करते शहीद हुए, जिनमें 75 सैनिक उत्तराखंड से थे इस युद्ध में कई सैनिक घायल हुए।

कारगिल युद्ध 6 मई 1999 को शुरू हुआ तथा 26 जुलाई तक चला। इस युद्ध का महत्वपूर्ण कारण बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों व पाक समर्थित घुसपैठियों का ‘लाइन ऑफ कंट्रोल’ यानी भारत-पाकिस्तान की वास्तविक नियंत्रण रेखा के भीतर घुस आना था। इनका उद्देश्य कई महत्वपूर्ण पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लेह-लद्दाख को भारत से जोड़ने वाली सड़क का नियंत्रण हासिल करना और सियाचिन ग्लेशियर पर भारत की स्थिति को कमजोर कर हमारी राष्ट्रीय अस्मिता के लिए खतरा पैदा करना था। दो महीने से भी अधिक समय तक चले इस युद्ध में भारतीय थलसेना व वायुसेना ने ‘लाइन ऑफ कंट्रोल’ पार न करने के आदेश के बावजूद अपनी मातृभूमि में घुसे घुसपैठियों को मार भगाया था।

कारगिल युद्ध के बारे में प्रथम सूचना मोर्चे पर तैनात सैनिकों को मिली कि कुछ दुर्गम पहाड़ी शिखरों पर पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कब्जा कर लिया है। कारगिल का क्षेत्र लगभग 168 किलोमीटर के इलाके में फैला हुआ है और इसका 80 किलोमीटर का इलाका बर्फ से ढका रहता है। मारपोला, विमबाट और चोरबाटला को छोड़कर इस क्षेत्र में सर्दी के दिनों में जवान तैनात नहीं रहते थे। सेना की चौकियों के बीच बड़े-बड़े फासलों का लाभ उठाकर पाकिस्तानी सेना तथाकथित मुजाहिदीनों का भेष धारण करके यहां घुस आयी और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इन बर्फ से ढकी हुई चोटियों पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली।

पाकिस्तान की नॉर्दन लाइट इन्फेंट्री के जवानों को, जो कि चोरी से आकर यहां घुस बैठे थे, बाहर खदेड़ना कोई आसान काम नही था। इसलिए भारतीय सेना ने सुनियोजित ढंग से ‘ऑपरेशन विजय’ शुरू किया। 13 जून को भारतीय सेना ने तोलोलिंग पर तिरंगा फहरा दिया। इस हमले में 17 सैनिक शहीद हुए तथा 40 सैनिक घायल हुए। इस विजय के बाद भारतीय सेना का मनोबल काफी बढ़ गया। इसके बाद टाइगर हिल से दुश्मन को मार भगाने की जिम्मेदारी 18 ग्रिनेडियर को दी गयी, 18 ग्रिनेडियर ने पूर्वी और पश्चिमी तरफ से आगे बढ़ने का फैसला किया। इसको देखकर दुश्मन पूरी तरफ भौचक्का रहा गया और उसने 4 जुलाई को टाइगर हिल को भी खाली कर दिया। इसके बाद भारतीय सेना का इस पर कब्जा हो गया।

सेना की कार्रवाई के साथ-साथ 26 मई को भारतीय वायुसेना ने थलसेना की सहायता के लिए ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ शुरू किया। इससे पहले कभी वायुसेना को इतने दुगर्म क्षेत्र में काम करने का अवसर नहीं मिला था। 12 जुलाई तक वायुसेना के विमानों ने 580 उड़ाने भरी। उधर हेलीकॉप्टरों ने 2500 उड़ाने भरकर घायल जवानों को युद्ध क्षेत्र से अस्पताल तक लाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। नौसेना ने भी ‘ऑपरेशन तलवार’ के अर्न्तगत अपने युद्धपोत को अरब सागर में तैनात करके पाकिस्तान पर सामरिक दबाव बनाया।

दो महीने तक चले साहसिक जवाबी हमलों द्वारा भारतीय सेना ने एक के बाद एक पहाड़ियां पर कब्जा कर लिया। शीघ्र ही यह स्पष्ट हो गया कि घुसपैठिये कश्मीरी मुजाहिदीन नहीं थे जैसा कि पाकिस्तान बार-बार कह रहा था। वह तो पाकिस्तान की नियमित सेना की नॉर्दन लाइट इन्फेंट्री के जवान थे। पाकिस्तानी सैनिकों की उपस्थिति के ठोस प्रमाण डायरियों, पे बुकों, पत्रों एवं अन्य दस्तावेजों के रूप में उपलब्ध होते गये। इन प्रमाणों से स्पष्ट हो गया कि यह एक सुनियोजित सैन्य आक्रमण था।

कारगिल की बर्फीली चोटियों पर पाकिस्तान की नार्दर्न लाइट इन्फैंटरी की यूनिटों का पता लगने के कुछ महीने पहले, भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लाहौर में मिले थे। जब भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी वार्ता की गर्मजोशी के माहौल का आनंद ले रहे थे। उसी समय पाकिस्तान की सेना ने कारगिल में घुसपैठ करके हमला कर दिया। दरअसल प्रधानमंत्री की लाहौर बस यात्रा का मकसद मई 1998 में परमाणु परीक्षणों के बाद दोनों देशों द्वारा आपसी संबंधों को सामान्य करना था। जब दोनों देशों के प्रधानमंत्री संबंधों को सुधारने के लिए समझौतों पर हस्ताक्षर कर रहे थे, तभी पाकिस्तान आर्मी, भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की योजना बना रही थी।

कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना की कमान जनरल वीपी मलिक के हाथों में थी। उनका मानना है कि सेनाओं और सैनिकों की अंतिम परीक्षा युद्ध में ही होती है। लड़ाइयां जीती जाती हैं, इसलिए युद्ध में सफलता मिलती है। हर लड़ाई में, हथियारों और उपकरणों की गुणवत्ता के साथ-साथ सैनिकों का युद्ध कौशल, सखाभाव, रेजीमेंट भावना और सबसे ऊपर जीतने की इच्छा-शक्ति और पक्का इरादा अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। भारतीय सेना को निस्वार्थता, कर्तव्य परायणता, बलिदान और शौर्य की अपनी पुरानी और बेजोड़ परम्परा पर नाज़ है।

कारगिल के युद्ध में ठोस शौर्य का प्रदर्शन हुआ, जब कभी भी हमारे राष्ट्र की सुरक्षा खतरे में पड़ेगी, इस युद्ध की वीरता को याद किया जाएगा। सभी यूनिटों ने तत्परता से कार्रवाई की और दृढ़ता और परिश्रम के अपने पुराने गुणों का प्रदर्शन किया। उसके बाद राजनयिक दृष्टि से पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया और विश्व बिरादरी में उसकी विश्वसनीयता एकदम निचले स्तर पर पहुंच गई। जबकि, भारत का रुतबा दुनिया में बढ़ा।

भारतीय सेना के कई सैनिकों ने अपनी मातृभूमि पर अपने प्राण न्यौछावर कर दिये। कई अफसर थे जिन्होंने अपने सैनिकों का अग्रिम पंक्ति पर नेतृत्व किया और आगे बढ़कर अपने सीनों पर गोलियां खायीं। कई सैनिक जीवन भर के लिए अपंग हो गये। कारगिल विजय दिवस के उपलक्ष्य में आज समूचे राष्ट्र का कतर्व्य है कि हम उन वीर योद्धाओं के सम्मान में श्रद्धासुमन अर्पित करें। जिन्हांने अपने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।

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