भूविज्ञान के क्षेत्र में योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने डॉ. खड़ग सिंह वाल्दिया को 2007 में पद्मश्री और 2015 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया। पद्मश्री और पद्मभूषण के अतिरिक्त उन्हें दर्जनों राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया।
भूगर्भ विज्ञान के क्षेत्र के बड़े हस्ताक्षरों में गिने जाने वाले डॉ. खड़ग सिंह वाल्दिया नहीं रहे। उनका 83 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह लंबे समय से कैंसर से पीड़ित थे। भूगर्भ विज्ञान के क्षेत्र में उनका अभूतपूर्व योगदान रहा। कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति रहे डॉ. वाल्दिया को हिमालयी भूसंरचना का जानकार माना जाता रहा।
डॉ. वाल्दिया का जन्म 20 मार्च 1937 को म्यांमार में हुआ। 1947 में उनका परिवार पिथौरागढ़ में अपने गांव लौट आया। पिथौरागढ़ से स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से बीएससी, एमएससी और पीएचडी की उपाधि प्राप्त की और फैकल्टी मेम्बर के रूप में विश्वविद्यालय में नौकरी शुरू की। 1965-66 वे हाकिंस यूनिवर्सिटी चले गए। लौटकर वह राजस्थान विश्वविद्यालय, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, जवाहरलाल नेहरू इंस्टीट्यूट फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च और कुमाऊं विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों में रहे। 1981 में वे कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति बने। डॉ. वालिया भूविज्ञान से संबंधित अनेक संस्थानों की स्थापना में भी सहायक रहे।
डॉ. वाल्दिया ने हिंदी और अंग्रेजी में 110 शोधपत्र और 14 पुस्तकें लिखे। नौ पुस्तकों का संपादन करने के साथ ही उन्होंने भूगर्भ विज्ञान पर 40 से अधिक लेख भी लिखे।
भूविज्ञान के क्षेत्र में योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 2007 में पद्मश्री और 2015 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया। पद्मश्री और पद्मभूषण के अतिरिक्त उन्हें दर्जनों राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। इनमें शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार, विज्ञान और पर्यावरण के लिए जीएम मोदी पुरस्कार, हिंदी सेवी सम्मान, प्रिंस मुकर्रम गोल्ड मेडल, नेशनल मिनरल अवार्ड फार एक्सीलेंस, पंडित पंत नेशलन इनवायरमेंट फेलो जैसे पुरस्कार शामिल हैं।
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