जन सरोकारों को समर्पित ‘अलकनंदा’ पत्रिका के संस्थापक संपादक स्व. स्वरूप ढौंढियाल की 91वीं जयंती सम्पन्न

जन सरोकारों को समर्पित ‘अलकनंदा’ पत्रिका के संस्थापक संपादक स्व. स्वरूप ढौंढियाल की 91वीं जयंती सम्पन्न

अलकनंदा पत्रिका की शुरूआत वर्ष 1972 में स्व. स्वरूप ढौंढियाल ने दिल्ली में की। इस पत्रिका में प्रकाशित लेखों में अपनी मध्य हिमालय की प्रकृति व पहाड़ों में निवासरत जनमानस के सुख दुःखो का पता चलता है।

सी एम पपनैं

उत्तराखंड के साहित्यकारों, पत्रकारों, विभिन्न सांस्कृतिक व सामाजिक संगठनों से जुड़े रंगकर्मियों व समाज सेवियों की उपस्थिति में जन सरोकारों को समर्पित मासिक पत्रिका ‘अलकनंदा’ परिवार द्वारा अपने संस्थापक संपादक स्व. स्वरूप ढौंडियाल की 91वीं जयंती का आयोजन पूर्वी किदवई नगर स्थित बद्रीनारायण मंदिर प्रवचन सभागार में 29 सितंबर की सायं आयोजित की गई।

साहित्यकार हेमा उनियाल, रमेश चन्द्र घिल्डियाल, दिनेश ध्यानी, दिल्ली पुलिस एसीपी राकेश रावत, भारत सरकार सेवानिवृत अधिकारी महेश चन्द्र, डॉ. बी सी लखेड़ा, ललित प्रसाद ढौंढियाल, वासवानंद ढौंढियाल, मणी ढौंढियाल, पी डी दिवान, प्रोफेसर पवन मैठाणी, वरिष्ठ पत्रकार व्योमेश जुगरान, चारू तिवारी, योगम्बर सिंह बिष्ट, चन्द्र मोहन पपनैं, शशि मोहन रावल्टा, रंगकर्मी बृज मोहन वेदवाल, दर्शन सिंह रावत, उमेश बंदूनी इत्यादि इत्यादि द्वारा स्व.स्वरुप ढौंढियाल के चित्र पर गुलाब की पंखुड़ियां अर्पित कर श्रद्धासुमन अर्पित किए गए।

आयोजन के इस अवसर पर मंच संचालिका व अलकनंदा पत्रिका सलाहकार संपादक सुषमा जुगरान ध्यानी द्वारा खचाखच भरे प्रवचन सभागार में बैठे सभी प्रबुद्घ जनों का अभिनन्दन कर आभार व्यक्त किया गया तथा स्व. स्वरूप ढौंडियाल की 91वीं जयंती पर श्रद्धासुमन अर्पित कर उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर सारगर्भित प्रकाश डाला गया।

आयोजन के इस अवसर पर हेमा उनियाल, पी डी दिवान, डॉ.बी सी लखेड़ा, चारू तिवारी, चन्द्र मोहन पपनैं, दिनेश ध्यानी तथा वृजमोहन वेदवाल द्वारा स्व. स्वरूप ढौंडियाल के कृतित्व व व्यक्तित्व पर सारगर्भित विचार रख अवगत कराया गया, ताउम्र स्व. स्वरूप ढौंढियाल एक संवेदनशील कहानीकार, नाटककार के साथ-साथ जन सरोकारों से जुड़े एक प्रतिबद्ध पत्रकार व समाज सेवी के नाते समाज में अपनी जो अमिट गहरी छाप छोड़ कर गए हैं वह आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणादाई है। अपने संस्मरणों में वक्ताओं द्वारा कहा गया, वर्ष 1972 में स्व. स्वरूप ढौंढियाल द्वारा अपने साहस का परिचय देते हुए दिल्ली से मासिक पत्रिका ‘अलकनंदा’ के प्रकाशन के साथ-साथ ’दिल्ली एक मिनी उत्तराखंड व ‘शिखर के स्वर, सागर के तट’ का प्रकाशन किया गया था।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, उत्तराखंड के प्रवासी जनों को दिल्ली व मुंबई जैसे महानगरों में सांस्कृतिक व सामाजिक क्षेत्र में संवाद बनाने व उन्हें एक जुट कर एक माला में पिरो कर एक दिशा देने का जो कार्य स्व.स्वरूप ढौंडियाल द्वारा किया गया वह भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणादाई रहा। वक्ताओं द्वारा कहा गया, धूल-मिट्टी में पैदल चलकर, संघर्ष कर, निःस्वार्थ भाव से उन्होंने यह कार्य किया, जिससे उत्तराखंड के प्रवासी बंधु व भावी पीढ़ी अन्यत्र के भेद-भावों को भूल एक सूत्र में बंधी रह सके।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, स्व. स्वरूप ढौंढियाल ने सरकारी नोकरी छोड़ मानवीय गुणों को आधार बना कर सराहनीय व प्रेरणादाई कार्य किया। साहित्य लेखन व जन सरोकारों के क्षेत्र में पुरानी पीढ़ी को नई पीढ़ी से जोड़ने की उनकी उत्कृष्ट व नायाब सोच रही। ऐसे पुण्य व्यक्तित्व को याद करना एक चेतना को याद करना है, संघर्ष को याद करना है।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, ऐसे समय में उन्होंने लोगों को साहित्यकारों से जोड़ा जब वे स्वयं राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित होने वाली प्रमुख पत्रिकाओं में कहानियां लिखते थे। आज के आयोजन में उस कालखंड की यात्रा को याद किया जा रहा है, भविष्य की चेतना के रूप में उसे कैसे देखें, यह जानना होता है, स्व. ढौंढियाल जी की पचास वर्ष की जीवनी व इकावनवे वर्ष के पदार्पण पर। स्व. स्वरूप जी के संबंध देश के बड़े-बड़े मूर्धन्य साहित्यकारों के साथ थे, वे हिमालय की तरह विशाल थे। स्व. स्वरूप ढौंडियाल द्वारा रचित नाटकों का मंचन तथा कहानियों का वाचन होना चाहिए।

वक्ताओं द्वारा वर्ष 1972 से प्रकाशित ‘अलकनंदा’ मासिक पत्रिका जो उत्तराखंड के साहित्य, संगीत, कला, भाषा व समसामयिक जन सरोकारों से जुड़े विषय समाहित कर बेबाक रुप से विगत पचास वर्षो से दिल्ली प्रवास में उनके संपादक पुत्र विनोद ढौंढियाल के अथक प्रयास व अपने पिता के आदर्शो व मूल्यों पर चल कर अनेकों जटिल समस्याओं व संघर्षो को झेलकर, जन सरोकारों को प्रमुखता देकर प्रकाशित की जा रही है, सराहा गया। वक्ताओं द्वारा दिल्ली प्रवास में अनेकों प्रकार के संघर्ष व जटिलताओं को झेल निरंतर प्रकाशित हो रही ‘अलकनंदा’ पत्रिका को उत्तराखंड की प्रमुख पत्रिका का दर्जा दिया गया।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, पत्रिका में प्रकाशित सामग्री से उन्हें प्रवास में अपनी मध्य हिमालय की प्रकृति व पहाड़ों में निवासरत जनमानस के सुख दुःखो का पता चलता है। अपनी जड़ों से रूबरू होने का अवसर मिलता है।

आयोजन के इस अवसर पर डॉ.बी सी लखेड़ा, शिवनंदन ढौंढियाल, के मणी ढौंढियाल, भगवती प्रसाद रतूड़ी, विनोद मनकोटी, वाचस्पति ढौंढियाल, पी डी दिवान, हेमा उनियाल, प्रगति चौरसिया तथा बृजमोहन बहुगुणा को अलकनंदा परिवार की ओर से शाल ओढ़ा कर व स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया।

आयोजन के इस अवसर पर अलकनंदा मासिक पत्रिका के नए अंक का विमोचन भी किया गया। अलकनंदा पत्रिका संरक्षक महेश चंद्र द्वारा कहा गया सारी विधाएं स्व. स्वरूप ढौंढियाल में समाहित थी। उत्तराखंड के सभी प्रवासी बंधुओं को एक सूत्र में बांधने का उनका मंत्र अभूतपूर्व था और रहेगा। सभागार बैठे सभी प्रबुद्ध जनों का आयोजन में आने हेतु आभार व्यक्त करने के साथ ही आयोजित जयंती कार्यक्रम के समापन की घोषणा की गई। आयोजित आयोजन का मंच संचालन अलकनंदा पत्रिका सलाहकार संपादक सुषमा जुगरान ध्यानी द्वारा बखूबी किया गया।

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