लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान सेना की पूर्वी कमान के कमांडर पद से सेवानिवृत्त होने के बाद नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल में मिलिट्री एडवाइजर की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। लेफ्टिनेंट जनरल जयवीर सिंह नेगी इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आईएमए) देहरादून के कमांडेंट के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सोमवार को उत्तराखंड के दो सपूतों लेफ्टिनेंट जनरल (रिटा.) अनिल चौहान और लेफ्टिनेंट जनरल (रिटा.) जयवीर सिंह नेगी को विशिष्ट सैन्य सेवा के लिए परम विशिष्ट सेवा मेडल (पीवीएसएम) से सम्मानित किया।
लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान सेना की पूर्वी कमान के कमांडर पद से सेवानिवृत्त होने के बाद नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल में मिलिट्री एडवाइजर की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। उन्हें सैन्य सेवा के दौरान उत्तम युद्ध सेवा मेडल, अति विशिष्ट सेवा मेडल, सेना मेडल और विशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित किया गया।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से परम विशिष्ट सेवा मेडल ग्रहण करते लेफ्टिनेंट जनरल (रिटा.) अनिल चौहान।
वहीं लेफ्टिनेंट जनरल जयवीर सिंह नेगी इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आईएमए) देहरादून के कमांडेंट के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। उन्हें सैन्य सेवा के दौरान अतिविशिष्ट सेवा मेडल, युद्ध सेवा मेडल और दो बार विशिष्ट सेवा मेडल से भी सम्मानित किया गया।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से परम विशिष्ट सेवा मेडल ग्रहण करते लेफ्टिनेंट जनरल (रिटा.) जयवीर सिंह नेगी।
पौड़ी जिले के मूल निवासी हैं ले. जनरल अनिल चौहान
उत्तराखंड के पौड़ी जिले के मूल निवासी ले. जनरल चौहान का परिवार देहरादून में रहता है। खड़कवासला स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी और देहरादून की भारतीय सैन्य अकादमी के पूर्व छात्र रहे लेफ्टिनेंट जनरल चौहान का विभिन्न कमांड, स्टाफ और निर्देशात्मक नियुक्तियों में एक प्रतिष्ठित करियर रहा। सैन्य सेवाकाल के दौरान लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान को उत्तम युद्ध सेवा मेडल, अति विशिष्ट सेवा मेडल, सेना मेडल और विशिष्ट सेवा मेडल से अलंकृत किया गया। लेफ्टिनेंट जनरल (रिटा.) अनिल चौहान ने महानिदेशक सैन्य अभियान (डीजीएमओ) की जिम्मेदारी भी संभाली। ले. जनरल चौहान साल 2017 में सेना की तीसरी कोर के कमांडर थे। उन्होंने पहली जनवरी, 2017 को यह दायित्व संभाला था। 11 गोरखा राइफल में 1981 को कमीशन लेने वाले लेफ्टिनेंट जनरल चौहान को जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के राज्यों में आतंकरोधी अभियानों का खासा अनुभव है। उन्होंने अंगोला में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के तहत सेवाएं भी दीं। उन्होंने भारत-चीन सीमा पर महत्वपूर्ण योगदान देने के साथ-साथ पाकिस्तान के खिलाफ बालाकोट एयरस्ट्राइक में अहम भूमिका निभाई थी।
ले. जनरल नेगी का चमोली के पोखरी ब्लॉक के कमद गांव से है नाता
लेफ्टिनेंट जनरल नेगी 1981 में इंफ्रेंट्री की 16 डोगरा रेजीमेंट में कमीशन लिया। वह इस बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर रहे। ऑपरेशन पराक्रम के दौरान अपनी बटालियन की कमान संभाली। उत्तरपूर्व में काउंटर इंसरजेंसी, असम राइफल्स सेक्टर, लद्दाख के ऊंचाई वाले क्षेत्र में डिवीजन को कमांड किया। वेस्टर्न सेक्टर में 2 स्ट्राइक कोर की जिम्मेदारी संभाली। कई आतंकरोधी अभियान की कमान संभालने के साथ ही कांगो में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में भारतीय सैन्य ब्रिगेड के उप कमांडर और चीफ ऑफ स्टाफ के तौर पर तैनात रहे।
मूल रूप से चमोली जिले के पोखरी विकासखंड के कमद गांव के रहने वाले लेफ्टिनेंट जनरल नेगी ने 10वीं और 12वीं की परीक्षा मेरठ के सेंट जॉन हायर सैकेंडरी स्कूल से की। उनके पिता दयाल सिंह नेगी बैंक के कार्मिक थे और मां सतेश्वरी नेगी गृहणी। 12वीं के बाद वर्ष 1977 में उनका चयन नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) के लिए हुआ। एनडीए के बाद आईएमए से वह जून 1981 में पास आउट होकर सेना की 16 डोगरा रेजीमेंट में कमीशंड हुए। आईएमए की कमान संभालने से पहले वह स्ट्रैटजिक फोर्सेस कमांड में तैनात थे।
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