पलायन और खाली होते जा रहे गांवों की चिंता उकेरती यशस्वी जुयाल की ‘आखिरी बुरांश’

पलायन और खाली होते जा रहे गांवों की चिंता उकेरती यशस्वी जुयाल की ‘आखिरी बुरांश’

यशस्वी जुयाल खुद से सीखे हुए फिल्म निर्माता और पटकथा लेखक हैं। उनकी शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री ‘ए वाइज क्रैब’ को JIO MAMI मुंबई फिल्म महोत्सव 2015 में विशेष ज्यूरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी दूसरी डॉक्यूमेंट्री ‘कॉन्फिडेंट इन बीइंग कन्फ्यूज्ड’ ने इंडियन सिने फिल्म फेस्टिवल (2016) में सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री का पुरस्कार और दादा साहब फाल्के फिल्म फेस्टिवल (2016), दिल्ली में विशेष ज्यूरी पुरस्कार जीता।

पलायन और खाली होते जा रहे उत्तराखंड के गांव एक ऐसी हकीकत है, जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। अपने गांव को ‘भुतहा गांव’ में तब्दील होने की टीस को उकेरती है युवा फिल्मकार यशस्वी जुयाल की ‘द लास्ट रोडोडेंड्रोन’ यानी ‘आखिरी बुरांश’। यह कहानी मां और बेटी के बीच की उस जद्दोजहद को बयां करती है, जिसमें एक युवा लड़की अच्छी शिक्षा के लिए शहर जाना चाहती है और मां को यह चिंता खाये जा रही है कि उनके चले जाने से ये गांव भी ‘भुतहा गांव’ बन जाएगा, क्योंकि गांव के सारे लोग शहरों का रुख कर चुके हैं।

 

यह शॉर्ट फिल्म उत्तराखंड के ग्रामीण आंचल में दो पीढ़ियों के बीच की उस दशा को बताती है जहां युवा भविष्य की उज्जवल संभावनाओं और शहरी क्षेत्रों में रोजगार की ओर देख रहा है, जबकि पुरानी पीढ़ी अपनी जड़ों से बंधे रहना चाहती है, बावजूद इसके कि उन्हें अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए हाड़तोड़ मेहनत करनी पड़ रही है। यह फिल्म बताती है कि कैसे युवा पीढ़ी का किसानी से मोहभंग हो गया है, वह इसे व्यवसाय के रूप में नहीं देखती। उनके चले जाने से पूरा गांव खाली हो जाता है।

यशस्वी जुयाल ने खेत में काम कर रही दो पीढ़ियों की चिंता को उनके बीच के संवाद के जरिये बेहतरीन ढंग से उकेरा है। ‘आखिरी बुरांश’ को धर्मशाला इंटरनेशनल फिल्म फेस्टीवल 2021 में फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड डीआईएफएफ जेंडर सेंस्टीविटी अवार्ड प्रदान किया गया। इस फिल्म को कई जगह सराहा गया है।

यशस्वी जुयाल खुद से सीखे हुए फिल्म निर्माता और पटकथा लेखक हैं। उनकी शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री ‘ए वाइज क्रैब’ को JIO MAMI मुंबई फिल्म महोत्सव 2015 में विशेष ज्यूरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी दूसरी डॉक्यूमेंट्री ‘कॉन्फिडेंट इन बीइंग कन्फ्यूज्ड’ ने इंडियन सिने फिल्म फेस्टिवल (2016) में सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री का पुरस्कार और दादा साहब फाल्के फिल्म फेस्टिवल (2016), दिल्ली में विशेष ज्यूरी पुरस्कार जीता। यशस्वी ने ‘सिल्वरकॉर्ड फिल्म्स’ नाम से अपना फिल्म स्टूडियो शुरू किया है। वह ज्यादातर उत्तराखंड के क्षेत्रीय सिनेमा और स्थानीय डॉक्यूमेंट्री और प्रयोगात्मक फिल्मों, संगीत वीडियो पर काम करते हैं।

यशस्वी अभी तक ‘ए वाइड क्रेब’ (2015), ‘कॉन्फिडेंट इन बीइंग कन्फ्यूज्ड’ (2016), ‘आई स्टेमर व्हेन आई टॉक’ (2018), ‘ए रिवोल्ट’ (2018), ‘लेसन फ्राम द लूम’, ‘ऑनली योअर्स’ (2019) और ‘द लास्ट रोडोडेंड्रोन’ (2020) जैसी शॉर्ट फिल्म एवं डॉक्यूमेंट्री बना चुके हैं।

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