NSC के CMD विनोद गौड़ ने बताया कि पहाड़ी फसलों पर सरकार का काफी फोकस है। इसमें पोषक तत्व भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। अगर लोग नौकरी की बात मन से निकाल दें तो खेती से अच्छी कमाई की जा सकती है।
कोरोना वायरस के प्रकोप के बीच गांवों की तरफ लौटने का रुझान बढ़ा है। लॉकडाउन के दौरान काफी लोग लौटकर आए हैं और ऐसी संभावना है कि मुंबई, दिल्ली जैसे महानगरों से बड़ी संख्या में कामगार लॉकडाउन खुलने पर अपने गांवों की तरफ लौटेंगे। ऐसे में उत्तराखंड में कृषि के क्या हालात हैं? पिछले दशक में वहां कृषि क्षेत्र किस गति से आगे बढ़ी और क्या प्रवासियों के अपने राज्य लौटने के बाद कृषि क्षेत्र उन्हें रोजगार मुहैया करा सकता है? 28 अप्रैल को ई-रैबार की लाइव चर्चा में इन्हीं सब सवालों के जवाब दिए राष्ट्रीय बीज निगम (NSC) के सीएमडी विनोद कुमार गौड़ ने।
मैदानों में ठीक पर पहाड़ में कृषि का व्यवसायीकरण नहीं हुआ
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में मैदानी हिस्सा काफी विकसित है जबकि पहाड़ी क्षेत्र में कृषि का अभी व्यवसायीकरण नहीं हुआ है। इसके कई कारण हैं। उत्तराखंड बनने के बाद भी हिल्स के किसानों पर ज्यादा फोकस नहीं किया गया। मैदानी इलाकों पर ध्यान दिया गया, जिससे वहां के किसान तुलना में ज्यादा अच्छी स्थिति में हैं। अब बात आती है कि लॉकडाउन के बाद लोगों के उत्तराखंड लौटने और खेती करने की तो यहां अच्छी संभावनाएं हैं। प्रदेश के लोग रुकें तो निश्चित तौर पर कृषि क्षेत्र विकसित होगा।
एक या दो फसलों पर ध्यान दें गांव
NSC के CMD विनोद गौड़ ने कहा कि सिंचित क्षेत्र में जो हमारी फसलें और सब्जियां हैं, उनमें अपार संभावनाएं हैं। उन्होंने एक तरीका सुझाते हुए कहा कि अगर पूरा गांव एक या दो फसलों की खेती करे तो क्लस्टर बनने से उसकी बिक्री करने में आसानी होगी और अपने गांव की मार्केटिंग हो जाएगी। उन्होंने कहा कि सब्जी में तो उत्तराखंड में बहुत कुछ किया जा सकता है। पहाड़ी इलाकों में ऐसे समय में सब्जी होती है जब मैदानी इलाकों में सब्जी नहीं होती है। पहाड़ी आलू अलग रेट से ही बिकता है। पहाड़ों की प्याज भी काफी पसंद की जाती है। अगर इस तरफ ध्यान दिया जाए तो किसानों को अच्छी आमदनी हो सकती है।
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कर्नाटक से आ रहा मक्के का बीज
कैश क्रॉप को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में CMD गौड़ ने कहा कि अगर हम किसी गांव में हल्दी या अदरक ही बो दें तो दो-चार ट्रक पैदा करें तो उसे बेचना और जल्दी से पैसा मिलना आसान हो जाएगा। उदाहरण के तौर पर उन्होंने बताया कि पहले हम मंडुवे की रोटी खाते थे। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि मंडुवे का बीज उत्तराखंड में विवेकानंद अल्मोड़ा से लेते हैं और उसे कर्नाटक भेजते हैं और फिर मडुआ प्रदेश में आकर बिकता है। पिछले 2-3 साल में प्रदेश में मंडुवे का बीज तैयार करना शुरू कर दिया गया है। आज की तारीख में मंडुवे का बीज 60 रुपये किलो बिक रहा है। इससे रोजगार मिला है और खेती के प्रति रुझान मिला है।
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इसी तरह उन्होंने बताया कि मक्के का बीज कर्नाटक से ला रहे हैं। अगर उत्तराखंड में मक्का होता है तो बीज देने के साथ ही कंपनियां वापस भी ले रही हैं। इससे मार्केट भी मिल रहा है। बीज में अपार संभावनाएं हैं। हिल्स में कश्मीर और हिमाचल में बीज बनते हैं। गोभी, पत्तागोभी और मटर में पहाड़ों में अपार संभावनाएं हैं। इससे रोजगार बढ़ेगा।
उन्होंने कहा कि पहाड़ी फसलों पर सरकार का काफी फोकस है। इसमें पोषक तत्व भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। अगर लोग नौकरी की बात मन से निकाल दें तो खेती से अच्छी कमाई की जा सकती है। गोपेश्वर से पूछे गए एक सवाल के जवाब में विनोद कुमार गौड़ ने बताया कि नए बीज उपलब्ध हैं फिर भी पुराने बीज का इस्तेमाल करना है तो कुछ बीज भिगाकर अखबार में लपेट कर देख लें कि वे अंकुरित हो रहे हैं या नहीं। 10 में से 8 बीज अंकुरित हो गए तो इसका मतलब यह होगा कि वे खेत में पैदा हो सकते हैं।
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UMESH SHARMA
April 29, 2020, 10:58 pmVery Nice information provided by CMD-NSC . Please do continue posting for such type of Interview s
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