उत्तराखंड में पूर्व सैनिकों का राजनीतिक नेतृत्व : समय की पुकार

उत्तराखंड में पूर्व सैनिकों का राजनीतिक नेतृत्व : समय की पुकार

उत्तराखंड को हमेशा से वीरों की भूमि कहा जाता है इस भूमि ने देश को अनेक वीर योद्धा दिये हैं जिन्होंने अपने योगदान से देश का नाम रौशन किया है। अब उत्तराखंड के पूर्व सैनिक मांग कर रहे हैं कि वह राजनीति में भी अपना योगदान दें और राजनीति में आकर वह राज्य की सेवा करें।

उत्तराखंड, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता, वीरता और राष्ट्रभक्ति के लिए जाना जाता है, आज एक गंभीर राजनीतिक और सामाजिक संकट का सामना कर रहा है। यह राज्य, जिसने सशस्त्र बलों और अर्द्धसैनिक बलों में अनगिनत वीर सैनिकों को जन्म दिया है, अब एक सशक्त और ईमानदार राजनीतिक नेतृत्व की प्रतीक्षा कर रहा है। पिछले कुछ वर्षों में, उत्तराखंड में राजनीतिक नेतृत्व के प्रयास हुए, लेकिन वे असफल रहे, क्योंकि उनका आधार स्थानीय जनसमर्थन और संगठनात्मक संरचना में कमी था।

असफल प्रयासों की समीक्षा

हाल के वर्षों में उत्तराखंड में पूर्व सैनिकों द्वारा राजनीति में आने के प्रयास किए गए, जिनमें प्रमुख था 2022 के विधानसभा चुनावों में कर्नल अजय कोठियाल का मुख्यमंत्री चेहरा बनकर चुनाव लड़ना। हालांकि यह एक साहसिक कदम था, लेकिन यह प्रयास जमीनी समर्थन न मिलने के कारण सफल नहीं हो पाया। इसके अलावा, पूर्व सैनिकों के बीच एकजुटता और संगठनात्मक मजबूती की कमी ने इन प्रयासों को कमजोर कर दिया। यह स्पष्ट हो गया है कि जब तक पूर्व सैनिक संगठित होकर एक सशक्त राजनीतिक धारा नहीं बनाएंगे, तब तक कोई भी प्रयास सफल नहीं होगा।

उत्तराखंड की भौगोलिक और सामरिक स्थिति

उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति, इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण बनाती है। चीन और नेपाल के साथ सटी सीमाओं की सुरक्षा, विशेष रूप से सीमांत क्षेत्रों में हो रहे पलायन और बुनियादी सुविधाओं की कमी से खतरे में है। सीमावर्ती गांव खाली हो रहे हैं, जिससे न केवल जनसंख्या का संतुलन बिगड़ रहा है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरा पैदा हो रहा है। जिस उद्देश्य से उत्तराखंड को अलग राज्य बनाया गया थाकृपलायन को रोकना, विकास को प्राथमिकता देना और सीमाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करनाकृवह अभी तक पूरी तरह से साकार नहीं हो पाए हैं।

राजनीतिक नेतृत्व की आवश्यकता

प्रदेश में आज एक सशक्त और जिम्मेदार नेतृत्व की सख्त आवश्यकता है। वर्तमान राजनीतिक दल, जिन पर भ्रष्टाचार और जनहित की उपेक्षा के आरोप हैं, प्रदेश के विकास और सुरक्षा की दिशा में विफल साबित हो रहे हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्गति और शिक्षा का गिरता स्तर यह संकेत देते हैं कि प्रदेश की जनता को एक नए नेतृत्व की जरूरत है। यह नेतृत्व कोई और नहीं, बल्कि उत्तराखंड के वही वीर सपूत हो सकते हैं जिन्होंने सशस्त्र और अर्द्धसैनिक बलों में अपनी सेवा दी है।

पूर्व सैनिकों की नेतृत्व क्षमता

उत्तराखंड के पूर्व सैनिकों में अनुशासन, नेतृत्व क्षमता, संगठनात्मक कुशलता, और ईमानदारी कूट-कूट कर भरी हुई है। उन्होंने अपनी सेवा के दौरान उन चुनौतियों का सामना किया है जिनसे उन्हें हर परिस्थिति में कुशलता से निपटने का अनुभव मिला है। इन सैनिकों ने न केवल सीमा की सुरक्षा की है, बल्कि देश की रक्षा के महत्वपूर्ण निर्णयों में भी योगदान दिया है। यदि वह प्रदेश की राजनीति में प्रवेश करते हैं, तो उनका अनुभव, नेतृत्व क्षमता और ईमानदारी राज्य को नई ऊँचाइयों तक ले जा सकती है।

संघटनात्मक एकता की कमी

हालांकि उत्तराखंड में पूर्व सैनिकों के कई संगठन हैं, फिर भी उनमें आपसी समन्वय और एकजुटता का अभाव है। जब तक ये संगठन अपने मतभेदों को भुलाकर एक मंच पर संगठित नहीं होंगे, तब तक वह प्रभावी राजनीतिक विकल्प नहीं बन सकते। हमें यह समझना होगा कि लोकतंत्र में संख्या बल मायने रखता है। उत्तराखंड में पूर्व सैनिकों और अर्द्धसैनिक बलों के जवानों की संख्या बल को एक सशक्त राजनीतिक धारा में परिवर्तित करने के लिए एक व्यापक रणनीति और संगठन की आवश्यकता है।

पूर्व सैनिकों का राजनीतिक योगदान

उत्तराखंड में पूर्व सैनिकों की आबादी लगभग 17 प्रतिशत है, जो उन्हें एक महत्वपूर्ण राजनीतिक समूह बनाता है। यदि यह समूह संगठित हो जाए और एक सशक्त राजनीतिक विकल्प के रूप में सामने आए, तो यह राज्य की राजनीतिक दिशा बदल सकता है। मौजूदा राजनीतिक दलों की नीतियों और भ्रष्टाचार से निराश जनता अब एक नए नेतृत्व की तलाश में है। यह नया नेतृत्व पूर्व सैनिकों के अनुशासन, ईमानदारी और नेतृत्व क्षमता पर आधारित हो सकता है।

स्वतंत्र और स्वाभिमानी नेतृत्व

पूर्व सैनिक राजनीतिक विचारधाराओं से परे होते हैं। उनका नेतृत्व आत्मसम्मान और कर्तव्यपरायणता पर आधारित होता है। उन्होंने अपनी सेवाओं के दौरान न केवल चुनौतियों का सामना किया है, बल्कि उनका समाधान भी निकाला है। अब यही समय है जब पूर्व सैनिक अपनी क्षमताओं का उपयोग कर प्रदेश की समस्याओं का समाधान करें। वह न केवल समस्याओं की गहराई को समझते हैं, बल्कि उनके समाधान के लिए ठोस कदम उठाने की भी क्षमता रखते हैं।

समाधान की दिशा

उत्तराखंड की जनता आज एक ऐसा नेतृत्व चाहती है जो उनकी समस्याओं को समझे और उन्हें सही दिशा में ले जाए। भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और पलायन जैसी समस्याओं से परेशान जनता को सैनिकों के अनुशासन और नेतृत्व क्षमता पर आधारित एक सशक्त राजनीतिक विकल्प चाहिए। पूर्व सैनिकों के पास न केवल समस्याओं का अनुभव है, बल्कि उनके समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाने की भी क्षमता है। यह नेतृत्व उत्तराखंड को प्रगति की दिशा में ले जा सकता है और एक स्थायी समाधान प्रदान कर सकता है।

निष्कर्ष

उत्तराखंड की वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए, समय की मांग है कि पूर्व सैनिक और अर्धसैनिक बलों के जवान संगठित होकर एक सशक्त और प्रभावी राजनीतिक विकल्प के रूप में सामने आएं। उनकी सामूहिक शक्ति, अनुभव और संगठनात्मक कुशलता प्रदेश की राजनीति को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। यह नेतृत्व न केवल उत्तराखंड को भ्रष्टाचार और विकास की कमी से मुक्ति दिला सकता है, बल्कि इसे एक मजबूत और सुरक्षित भविष्य की ओर भी अग्रसर कर सकता है। यही समय की पुकार है, और यही उत्तराखंड की प्रगति का मार्ग है।

लेखकः पहाड़ी डंगवाल

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