क्या पार्टी पुष्कर सिंह धामी को दोबारा मौका देगी, इस सवाल का जवाब हर कोई खोज रहा है। दरअसल, यह चुनाव पूरी तरह नरेंद्र मोदी के दम पर जीता गया है। भले ही धामी को चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट किया गया, लेकिन वह अपने ही मैदान में बुरी तरह हार गए इसलिए पार्टी के लिए उन्हें रिपीट करना मुश्किल है।
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा की सत्ता में धमाकेदार वापसी के बावजूद अगले मुख्यमंत्री को लेकर अटकलें लग रही हैं। मौजूद सीएम पुष्कर सिंह धामी के चुनाव हार जाने के बाद सूबे के नए मुखिया के चयन का सवाल खड़ा हो गया है। पहले यह कहा जा रहा था कि केंद्रीय नेतृत्व धामी को ही दोबारा राज्य की कमान देने पर विचार कर रहा है, लेकिन खटीमा विधानसभा में धामी की करारी हार के चलते पार्टी अब उन्हें रिपीट न करने का मन बना चुकी है। यही वजह है कि अब नए चेहरों पर चर्चा हो रही है। 19 तारीख को देहरादून में पार्टी विधायक दल की बैठक होनी है। इसमें सीएम के नाम पर विचार किया जाएगा। इस पूरी कवायद में एक सप्ताह का समय है। यही वजह है कि सीएम पद के चेहरों को लेकर अटकलों का दौर चल रहा है।
रेस से क्यों बाहर हुए पुष्कर धामी!
क्या पार्टी पुष्कर सिंह धामी को दोबारा मौका देगी, इस सवाल का जवाब हर कोई खोज रहा है। दरअसल, यह चुनाव पूरी तरह नरेंद्र मोदी के दम पर जीता गया है। भले ही धामी को चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट किया गया, लेकिन वह अपने ही मैदान में बुरी तरह हार गए इसलिए पार्टी के लिए उन्हें रिपीट करना मुश्किल है। ऐसी दलीलें दी जा रही हैं कि धामी अपने छह माह में किए गए काम के दम पर भाजपा को सत्ता दिलाने में सफल रहे। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि ये काम खटीमा के मतदाताओं को क्यों नहीं दिखे? 2017 के चुनाव में 2000 के अंतर से जीतने वाले धामी अगर सीएम होते हुए 6579 के अंतर से हार जाते हैं, तो निश्चित तौर पर इसका मतलब है कि खटीमा की जनता ने उन्हें नकार दिया। इसलिए काम की दलील ‘नाकाम’ नजर आती है। एक बड़ा कारण धामी और उनके सहयोगियों पर खनन को लेकर लगे कथित आरोप भी हैं।
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धामी नहीं तो किस पर होगी हामी?
पार्टी के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि विधायक दल में से किसी को सूबे की कमान सौंपी जाए या फिर एक बार दिल्ली से किसी सांसद की ताजपोशी की जाए। फिलहाल विधायकों में श्रीनगर से जीते डा. धन सिंह रावत, चौबट्टाखाल से जीते सतपाल महाराज का नाम सबसे आगे बताया जा रहा है। इसके अलावा नैनीताल से सांसद एवं रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट और राज्यसभा सांसद एवं भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी भी मजबूत दावेदार बनकर उभरे हैं।
धन सिंह रावत पहले भी सीएम पद की होड़ में रहे हैं, लेकिन इस बार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल से कड़ा मुकाबला होने के बावजूद वह जीतकर आए हैं। ऐसे में उनकी दावेदारी की अनदेखी करना बहुत मुश्किल होगा। संघ से भी उनके नाम पर हरी झंडी मिलना आसान होगा। चौबट्टाखाल से विधायक सतपाल महाराज भी एक बड़ा नाम हैं। उनके अनुभव पर भी पार्टी दाव खेल सकती है।
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प्लान B का हिस्सा रहे दो नाम अब फ्रंट में!
दो नाम जो सबसे ज्यादा चर्चा में हैं, वो हैं अजय भट्ट और अनिल बलूनी। ये दोनों नाम चुनाव से पहले भी पार्टी के प्लान B का हिस्सा थे। पार्टी जनादेश एकतरफा न होने की स्थिति में इन्हीं दो नामों को आगे कर बहुमत जुटाती। फिलहाल इसकी जरूरत नहीं है। पार्टी के पास स्पष्ट और बड़ा जनादेश है। अजय भट्ट को राज्य का काफी अनुभव है। वह संगठन की पेचीदगियों को भी समझते हैं। ऐसे में उनके लिए सरकार और संगठन में तालमेल बनाना आसान होगा।
अनिल बलूनी निश्चित रूप से एक बड़ा और स्वीकार्य चेहरा नजर आते हैं। राज्य सभा सांसद के तौर पर उन्होंने राज्य के लिए कई केंद्रीय और गैर सरकारी प्रोजेक्टों की राह खोली। एक बड़ा वर्ग है, जो उन्हें भावी मुख्यमंत्री के तौर पर देखता है। इसके अलावा वह पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के करीबी माने जाते हैं। ऐसे में विधायकों का समर्थन उन्हें मिलना आसान होगा। जहां तक पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की बात है, तो वह खुद ही यह कह चुके हैं कि उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा, इसलिए वह रेस में नहीं हैं। पार्टी को विधायकों में से ही किसी को सीएम बनाना चाहिए। हालांकि कई जानकार यह भी मानते हैं कि चार साल सत्ता चलाने का अनुभव त्रिवेंद्र सिंह के पक्ष में जा सकता है। उन्हें सत्ता से हटाने का भी पार्टी कोई ठोस कारण नहीं बता पाई थी।
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