ई-रैबार: लॉकडाउन में भूखे को खाना खिला रहे, पुलिसवालों की भी मदद कर रहे सामाजिक संगठन

ई-रैबार: लॉकडाउन में भूखे को खाना खिला रहे, पुलिसवालों की भी मदद कर रहे सामाजिक संगठन

लॉकडाउन में लोगों की नौकरी छूट गई, कारोबार ठप हो गए तो खाने की दिक्कत होने लगी। ऐसे मुश्किल वक्त में सामाजिक संगठन सहारा बन रहे हैं। हिल मेल के शो में आए सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि जहां तक संभव है, वे लोगों को खाना खिलाने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे कोई भूखा न रहे।

लॉकडाउन में गरीबों और बेसहारों लोगों को मदद पहुंचाने के लिए समाजसेवी संगठनों ने अहम भूमिका निभाई है। सुदूर पहाड़ों तक जाकर समाजसेवियों ने लोगों को खाने-पीने और अन्य जरूरत के सामान दिए हैं। ऐसे में हिल मेल के लाइव शो ‘ई-रैबार’ में हमने आमंत्रित किया, उत्तराखंड में काम करने वाली ऐसी ही कई सामाजिक संस्थाओं को और उनसे समझने की कोशिश की कि वह किस तरह से लोगों को राहत पहुंचा रहे हैं। कार्यक्रम में यूथ फाउंडेशन के मनोज सेमवाल, समाजसेवी संजय शर्मा दरमोड़ा, जन मानस सेवा संस्था के हिमांशु कपूर शामिल हुए और मॉडरेटर की भूमिका में थे वरिष्ठ पत्रकार ओ पी डिमरी।

पुलिसवालों की मदद कर रहे यूथ फाउंडेशन के युवा

यूथ फाउंडेशन (youth foundation uttarakhand) के मनोज सेमवाल ने कहा कि उत्तराखंड में हमारे 9 कैंप चलते हैं और एक में 100 से 150 लोग होते हैं। इस तरह 1500 युवा हैं। इसमें एक कैंप लड़कियों का है जिसमें 200-300 लड़कियों की ट्रेनिंग होती है। ये ऐसे युवा है जिनकी उम्र 17 से 21 साल के बीच हैं और इनकी ट्रेनिंग सेना की तरह होती है। देहरादून, रुद्रप्रयाग, पौड़ी जिले के कई थानों में लड़के और लड़कियां सेवा दे रहे हैं। यूथ फाउंडेशन के युवा पुलिसवालों की लगातार ड्यूटी में उनकी मदद कर रहे हैं जिससे उन्हें थोड़ी राहत मिल सके।

मनोज सेमवाल ने बताया कि जिस तरह से फौजी अनुशासन है उसी तरह से युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाता है। फौज के स्लोगन से युवाओं का ऊर्जा मिलती है। ये सभी गांव से जुड़े हैं। आर्मी का मैसेज का इनके जरिए घर-घर पहुंच रहा है। दिल्ली के अस्पताल के डॉक्टर आते रहते हैं तो फाउंडेशन के युवा उनकी मदद करते हैं। ऐसे में वे डॉक्टर अपनी सेवा के लिए भी तैयार हो जाते हैं और फिर पहाड़ के सुदूर इलाकों में हेल्थ कैंप लगाया जाता है।

हंस फाउंडेशन एक सागर है…

समाजसेवी संजय शर्मा ने कहा कि मैं सामाजिक संस्थाओं को सामाजिक सरकार मानता हूं। देश या प्रदेश में सब कुछ ठीकठाक चल रहा है तो सरकार सामान्य तरीके से अपना काम करती रहती है लेकिन देश या प्रदेश में आपदा आ जाए तो सरकार की पैनी नजर उस ओर हो जाती है। उसी तरह से सामाजिक संस्थाएं भी एक लक्ष्य पर केंद्रित हो जाती हैं और वह उसी के लिए काम करने लगती हैं। संजय शर्मा ने बताया कि हमें आगे के लिए योजनाएं बनानी होगी क्योंकि आगे का समय और चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

उन्होंने हंस फाउंडेशन के कार्यों का जिक्र करते हुए कहा कि हंस फाउंडेश एक सागर है और हम एक नदी हैं। नदिया सागर में जाकर मिलती हैं। हमारी परेशानियों को भी सामाजिक संगठनों से मिलती है। हंस फाउंडेशन एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसने हाल ही में 4 करोड़ रुपये पीएम केयर्स फंड में दान किया है। 1.51 करोड़ उत्तराखंड सीएम रिलीफ फंड में दिए हैं। पूरे देश में उनका ऑपरेशन नमस्ते चल रहा है। लोगों को खाद्यान्न पहुंचाया जा रहा है। दिल्ली में हंस फाउंडेशन ने 5500 लीटर सैनिटाइजर, 1100 पीपीई किट, 1 लाख मास्क बांटे हैं। हिमाचल प्रदेश, बेंगलुरु, मुंबई में भी इसी तरह का काम हो रहा है।

उन्होंने कहा कि अपनी संस्था नई पहल, नई सोच के माध्यम से वह नई दिल्ली, उत्तराखंड, बेंगलुरु, मुंबई में काम कर रहे हैं। उत्तराखंड के सभी जिलों में खाद्यान्न सामग्री बांट रहे हैं। जरूरतमंदों को आर्थिक सहायता पहुंचाई है। दिल्ली से पैदल अपने गांवों की ओर जा रहे प्रवासी मजदूरों को खाना खिलाने के साथ उन्हें आगे के लिए भी कुछ सामग्री दे रहे हैं।

इस दौरान उन्होंने दो वाकये भी बताए कि किसी तरह मदद मांगने वालों की अलग-अलग अपेक्षाएं होती हैं। उन्होंने एक परिवार को दो महीने का राशन पहुंचाया तो उसने कहा कि उन्होंने ज्यादा की उम्मीद की थी। जबकि अन्य परिवार को 15 दिन के लिए मदद दी तो उसने कहा कि यह तो काफी है।

लोगों को जागरूक करने की छेड़ी मुहिम…

जन मानस सेवा संस्था के हिमांशु कपूर ने बताया कि हम लॉकडाउन में लोगों को भोजन पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। उत्तराखंड के अलग-अलग जिलों में इस समय 700 कार्यकर्ता काम कर रहे हैं। बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्होंने डोनेशन दी पर बांटने की व्यवस्था नहीं थी तो हमने कच्चा और पका खाना लोगों तक पहुंचाने में मदद की। इसके साथ ही हम लोगों को जागरूक कर रहे हैं कि कोरोना से कैसे बचते हुए अपना काम करना है। सामाजिक दूरी बिल्कुल नई चीज है तो हमने बच्चों को ज्यादा समझाने की कोशिश की जिससे वे खुद तो जागरूक हों साथ ही अपने परिवार से भी इसका पालन कराएं।

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