देहरादून में असम राइफल्स के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल विकास लखेड़ा ने असम राइफल्स के भूतपूर्व सैनिकों और वीर नारियों के साथ एक समागम में हिस्सा लिया। इस अवसर पर उन्होंने भूतपूर्व सैनिकों की समस्याओं के बारे में जाना और उन समस्याओं का समाधान कैसे किया जाये उस बारे में विचार विमर्श किया।
लेफ्टिनेंट जनरल विकास लखेड़ा ने अपने संबोधन में कहा कि डारेक्टर जनरल या लेफ्टिनेंट जनरल एक स्थाई चीज है जो किसी व्यक्ति विशेष से जुड़ी नहीं होती है डारेक्टर जनरल का मतलब जिम्मेवारी है, उनके प्रति जिनके कारण आप इस पद तक पहुंचे। उन्होंने कहा कि हमारे पहाड़ के दूर दराज के इलाकों में कई सैनिक और वीर नारियां रहती है जिनको इंटाइटिलमेंट के बारे में नहीं पता है। हमारे यहां किसी का डाक्यूमेंटेशन अगर सही नहीं होता है तो उसके परिवार को आगे चलकर बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। देहरादून, हल्द्वानी, काशीपुर, ऋषिकेश, रूद्रपुर ये तो मैदानी क्षेत्र हैं असली परेशानी तो हमें पहाड़ के दूर दराज के क्षेत्रों में होती है जैसे पौड़ी, टिहरी, पिथौरागढ़, डीडीहाट, लोहाघाट जहां आने के उचित साधन नहीं हैं यहां से आने जाने में लोगों को काफी समय लग जाता है जिससे उनकी समस्यायें और बड़ी हो जाती है। उन्होंने कहा कि हमने एक फैसला किया है कि हम ऐसी जगहों के लिए एक टीम का गठन करेंगे उस टीम में वहीं के जेसीओ, जवान और अफसर होंगे। उन लोगों को हम गढ़वाल और कुमाऊं के दूर दराज के जगहों में भेजेंगे और वह वहां के जवानों और वीर नारियों की समस्याओं को सुनेंगे और उनका समाधान करने की कोशिश करेंगे। ले जनरल विकास लखेड़ा ने भूतपूर्व सैनिकों से भी अपील की कि वह अपने इलाके की जानकारी हम लोगों के साथ शेयर करें और उन लोगों की जो भी समस्यायें की उनका हम समाधान करेंगे।
लेफ्टिनेंट जनरल विकास लखेड़ा ने कहा कि असम राइफल्स ने यह रैली आयोजित की है। उत्तराखंड से भारतीय सेना, नौसेना, वायुसेना, असम राइफल्स और अर्द्धसैनिक बल में बहुत से सैनिक आते हैं लेकिन सबसे ज्यादा भूतपूर्व सैनिक असम राइफल्स में हैं। उत्तराखंड में कई इलाके हैं जो बार्डर में पड़ते हैं वह खास हैं और हम चाहते हैं कि वहां के लोग हमसे हमसे जुड़े। आज हमारी वीर नारियां हैं जिनको बहुत परेशानियां हैं जो बता नहीं पाते हैं। ऐसे आयोजन से उनकी परेशानियों का किस तरह से समाधान ढूंढा जाये और अपने पूर्व सैनिकों से मेल मिलाप किया जाये, क्योंकि वह हमारा गोत हैं और उन्हीं के बल बूते से आज जो असम राइफल्स का अस्तित्व है वह उसी हिसाब से बना है। उन्होंने कहा कि यह एक छोटी सी कोशिश है और यह कोशिश हर साल जारी रहेगी और हम चाहेंगे कि हम और इलाकों में जायें अंदर पहाड़ों में और अपने भूतपूर्व जवानों से वीर नारियों से संपर्क करें और पूछे उनको कि उनका क्या हाल है जिसने देश की सेवा की उसकी सेवा के लिए हम तत्पर है और यह हमारा दायित्व है।
वीर नारियों को सम्मानित करने के बारे में उन्होंने कहा कि मेरे हिसाब से उन्होंने पूरे देश को सम्मान दिया है उनके पतियों ने जो प्राणों की आहुति दी और बलिदान दिया है उससे बड़े सम्मान और गर्व की बात कुछ और नहीं हो सकती है। जो हमारे भूतपूर्व सैनिक है जिनको वीरता पुरस्कार मिले हैं उन्होंने भी अपना बलिदान दिया, अपना खून पसीना बहाना, अपना समय दिया तो हमारा तो फर्ज बनता है कि हम उनको एक छोटी सी खुशी दें। ये बताने के लिए कि हम आपके ऋणी हैं यह राष्ट्र आपका ऋणी है। उन्होंने आगे कहा कि हम हमेशा प्रयासरत रहते हैं कि हमारे आर्गेनाइजेशन है जो हमारा हर महीने, क्वाटर में, छः महीने में हम बताते रहते हैं कि हम क्या क्या करेंगे और क्या कर सकते हैं और यह कोशिश लगातार जारी है कि हम अपने भूतपूर्व सैनिक से कैसे जुडे और उनके लिए हम कुछ कर सकें। उन्होंने कहा कि यह दो तरफ का संवाद है कि वह हमें अपनी परेशानी बतायें और हम उसका समाधान करें और हम अपनी तरफ से पहले करें कि हम उसके लिए कुछ करें।
लेफ्टिनेंट जनरल विकास लखेड़ा ने कहा कि ऐसी अनगिनत स्कीम हैं जो चलती हैं हर चीज के बारे में तो बता नहीं पाऊंगा लेकिन आप निश्चित रहिए कि असम राइफल्स का जो वर्तमान है वह अपने भूतकाल के प्रति अपना दायित्व निभायेगा। मेडिकल में भारत सरकार की जो आयुष्मान भारत और ईसीएचएस जो आर्मी के द्वारा चलाया जाता है उसमें भी हमारे जवान लाभ उठाते हैं। आयुष्मान भारत में भी रजिस्टर हैं और समस्या दूर दराज के क्षेत्रों में आती है जहां पर उतने साधन उपलब्ध नहीं है जहां से शहर तक आने में आपको पूर दिन लग जाता है वहां समस्यायें आती हैं पर मुझे लगता है कि जिस तरह से सरकार की पालिसी है आने वाले चार से पांच साल में आयुष्मान भारत के स्वरूप न केवल सैनिकों के लिए बल्कि एक आम नागरिक के लिए भी उतना ही सुचारू आसान हो जायेगा जिससे सभी देशवासियों को अपने स्वास्थ्य की चिन्ता करने की जरूरत न पड़े। न केवल सैनिकों के लिए बल्कि पूरे भारत के नागरिकों के लिए भी।
उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि असम राइफल्स डोगरा में रही जब वहां की स्थिति बहुत खराब थी यह ईश्वर का आशीर्वाद बोलें या हमारे पित्रों का आशीर्वाद या हमारे कर्मों का फल रहा कि असम राइफल्स जो जिस मकसद से वहां भेजा गया था वह अपने मकसद में कामयाब रही और यहां पर वह अपने मिशन में कामयाब रही और उसको किसी भी प्रकार की क्षति नहीं हुई। असम राइफल्स में इस समय 11,500 पूर्व सैनिक हैं जो गढ़वाल और कुमाऊं से आते हैं और उत्तराखंड की स्थिति बहुत विषम है। हम लोगों की कोशिश रहेगी कि हम इन पूर्व सैनिकों तक पहुंचे और इनकी जो भी समस्यायें हो उन्हें दूर करने का प्रयास करें।
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