नरेंद्र सिंह नेगी एक ऐसे कलाकार, संगीतकार और चितेरे कवि हैं जो अपने पारंपरिक परिवेश की दशा-दिशा को लेकर काफी भावुक एवं संवेदनशील है। पर्वतीय जीवन का शायद ही कोई ऐसा पक्ष हो जिस पर नरेंद्र सिंह नेगी की नजर न पड़ी हो और जिस पर उन्होंने गीत की रचना कर उसे अपना मधुर कंठ न दिया हो।
गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी जी को उनके 75वें जन्मदिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। हम सब लोग भगवान से प्रार्थना करते हैं कि वह स्वस्थ एवं दीघार्यु रहे और वह अपने गीतों के माध्यम से उत्तराखंड के लोगों के दिलों में राज करते रहें।
उत्तराखंड के खेतों-खलिहानों, जंगलों में घास-लकड़ी लेने अथवा मवेशियों के साथ गई घसेरियों, पानी के स्रोत धारा-मंगरों, शादी-विवाह अथवा धार्मिक कार्यक्रमों, घरों और देवालयों अर्थात यत्र-तत्र सर्वत्र यदि कोई एक चीज मौजूद है तो वह है नरेंद्र सिंह नेगी की आवाज। पर्वतीय जीवन का शायद ही कोई ऐसा पक्ष हो जिस पर नरेंद्र सिंह नेगी की नजर न पड़ी हो और जिस पर उन्होंने गीत की रचना कर उसे अपना मधुर कंठ न दिया हो। उनका रचना संसार वास्तविकता के धरातल पर बना है। यही वजह है कि उनके गीतों में भावनाओं का ज्वार होता है।
सबसे खास बात यह है कि आज के दौर में भी उनके नए गीतों को पूरी शिद्दत से पसंद किया जाता है। उन्होंने मुख्यतः खुद ही गीतों का सृजन किया, संगीत और स्वर दिया। लेकिन कुछ गीत उन्होंने अन्य कवियों के भी गाए। अनेक लोकगीतों को उन्होंने नया रूप देकर श्रोताओं के सामने रखा। अब तक नरेंद्र सिंह नेगी का रचनाकर्म ‘खुच कंडी’, ‘गाणियों की गंगा, स्याणियों का समोदर’ और ‘मुट्ट बोटिक रख’ जैसी पुस्तकों के रूप में प्रकाशित हो चुकी हैं।
यह नरेंद्र सिंह नेगी का ही लेखन हो सकता है कि बांध के लिए डूब रहे टिहरी में बैठे एक पिता की अपने बेटे को लिखी चिट्ठी में उकेरे भाव ‘अबारी दां तू लम्बी छुट्टी ले की ऐई, टिहरी डूबण लग्युं चा बेटा डाम का खातीर…’ गीत की शक्ल में कालजयी रचना हो गई। हर उत्तराखंडी को प्रेरित करने वाला ‘आंदोलन गीत’ भी उनकी लेखनी से ही निकला। जिसने तमाम उत्तराखंडियों को पृथक राज्य आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रेरित किया। तो यू-ट्यूब के दौर में ‘क्वी त बात होलि’ गीत ने युवाओं को मन को भी लुभाया।
नरेंद्र सिंह नेगी ने अनेक गढ़वाली फिल्मों में भी गीत, संगीत और स्वर दिया है। इन फिल्मों में चक्रचाल, घरजवैं, मेरी गंगा होली मैं मा आली, कौथिग, बंटवारू, छम घुंघरू, जय धारी देवी, सुबेरौ घाम आदि शामिल हैं। उनका जन्म 12 अगस्त 1949 को पौड़ी जनपद के मुख्यालय पौड़ी शहर के लगे पौड़ी गांव में हुआ। उन्हें प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी सम्मान भी मिल चुका है। नंदा देवी राजजात पर उनका गाया सुप्रसिद्ध मां भगवती का गीत ‘जै बोला जै भगोती नंदा, नंदा ऊंचा कैलाश की…’ उत्तराखंडी की थाती है।
ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं जो उनकी रचनाओं एवं गीतों के जरिए उत्तराखंडी समाज के लिए आईना बने। वह सिर्फ एक लोकगायक नहीं, एक ऐसे कलाकार, संगीतकार और चितेरे कवि हैं जो अपने पारंपरिक परिवेश की दशा-दिशा को लेकर काफी भावुक एवं संवेदनशील है। कुछ समय पहले राज्य में उठी भू-कानून और मूल निवास की मांग के लिए उत्तराखंडियों को प्रोत्साहित करने के लिए नरेंद्र सिंह नेगी ने ’उठा जागा उत्तराखंडियों’ गीत लिखा है। उत्तराखंड में मजबूत भू-कानून और मूल निवासियों के हक हकूकों को लेकर 24 दिसंबर 2023 को देहरादून में एक महारैली का आयोजन किया गया था। नरेंद्र सिंह नेगी ने भी इस रैली को सफल बनाने की अपील की थी। जिसमें लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। नरेंद्र सिंह नेगी वो शख्सियत हैं, जो अपने गीतों से सत्ता परिवर्तन का माद्दा रखते हैं।
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