कोरोना काल में लोगों की जान बचाने के साथ उन्हें रोजगार देने की नितांत जरूरत महसूस की जा रही है। ऐसे में स्वरोजगार के कई विकल्प उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इसके साथ ही उद्योगों को आकर्षित करने के लिए भी भूमि सुधार किए जा रहे हैं।
कोरोना काल में उद्योगों को उत्तराखंड में बुलाने के लिए कई फैसले लिए जा रहे हैं। इसमें से एक है भूमि कानून में सुधार। जी हां, उद्योगों को आकर्षित करने, कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग समेत आधुनिक तरीके से खेती, सौर ऊर्जा, पर्यटन समेत विभिन्न क्षेत्रों में एमएसएमई को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश में भूमि कानूनों में सुधार किए जा रहे हैं। मंत्रिमंडल के फैसले के बाद विभिन्न योजनाओं के लिए भूमि की उपलब्धता में पेश आ रही अड़चन दूर हो सकेगी।
पिछले 6 महीने के भीतर ही भूमि कानूनों में आधा दर्जन से ज्यादा सुधार किए गए हैं। इस कड़ी में अब सरकारी भूमि के अलावा गांव सभा और सीलिंग से प्राप्त अतिरिक्त जमीन एवं अन्य भूमि के उपयोग और आवंटन की व्यवस्था को सरल बनाने का निर्णय लिया गया है, जो इंडस्ट्री के लिए हितकारी हो सकता है। आगे चलकर जमीन की दिक्कत खत्म हो जाएगी, जो इस समय पहाड़ी संरचना के कारण महसूस की जाती है।
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गौरतलब है कि मौजूदा परिस्थितियों ने राज्य सरकार की जरूरत का दायरा बढ़ा दिया है। उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) की धारा-117 की उपधारा (1) में सरकार की भूमि आदि ग्राम सभा व स्थानीय प्राधिकारियों में निहित की गई है।
भूमि सुधार कानून की मंशा यह है कि उपलब्ध कृषि भूमि पर सबसे पहला अधिकार भूमिहीन व खेतिहर मजदूरों व समाज के कमजोर वर्गों का है। अब भूमि की जरूरत पूंजी निवेशकों, नए उद्योगों, स्वरोजगार योजनाओं के क्रियान्वयन के साथ ही सरकारी योजनाओं के लिए महसूस की जा रही है। इस तरह की भूमि के आवंटन के लिए नियमों में संशोधन को कैबिनेट ने मंजूरी दी है।
आइए नियम समझते हैं-
- अब सुखाधिकार के तहत विभिन्न प्रकार के प्रतिष्ठानों को पहुंच मार्ग, पेयजल योजना, संचार व्यवस्था, ऊर्जा प्रतिष्ठानों के लिए भूमि का प्रस्ताव सार्वजनिक व व्यापक जनहित में होना चाहिए।
- भूमि आवंटन केवल पर्यटन, शैक्षणिक, स्वास्थ्य व उद्योग से संबंधित परियोजनाओं के लिए ही होगा।।
- सुखाधिकार के पहुंच मार्ग वाले मामलों में भूमि आवंटन वर्तमान सर्किल रेट जमा करने पर ही किया जाएगा। इस मार्ग का उपयोग सार्वजनिक हित में भी किया जाएगा।
- सरकारी भूमि के आवंटन के केस में 12.50 एकड़ भूमि की सीमा तक शासन स्तर से शुल्क सहित आवंटित की जा सकेगी।
- मुफ्त भूमि आवंटन, उक्त सीमा से अधिक भूमि सशुल्क व निशुल्क आवंटन के प्रत्येक मामले में कैबिनेट फैसला लेगी।
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