INTERVIEW हरीश रावत: चुनाव में स्थानीय चेहरा होना चाहिए क्योंकि जवाब कौन देगा?

INTERVIEW हरीश रावत: चुनाव में स्थानीय चेहरा होना चाहिए क्योंकि जवाब कौन देगा?

हिल-मेल और ओहो रेडियो के कार्यक्रम ‘बात उत्तराखंड की’ में प्रदेश की राजनीति के तमाम विषयों पर बात करने के लिए जुड़े राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस महासचिव हरीश रावत। उत्तराखंड में आगामी विधानसभा चुनाव और चुनौतियों पर उन्होंने अर्जुन रावत और आरजे काव्य के साथ खुलकर अपनी बात रखी। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के कुछ अंशः

काव्यः आप कोरोना से उबर चुके हैं, अब आपका स्वास्थ्य कैसा है?

मेरा स्वास्थ्य पहले से बेहतर है मगर कोविड के आफ्टर इफेक्ट्स तो हैं ही। अब तो देशभर में चर्चा हो रही है कि पीड़ितों पर स्टडी होनी चाहिए। हमारे राज्य में इस पर विशेष फोकस रखने की जरूरत है। कोविड से इस बार गांवों और शहर की गरीब बस्तियों में भी फैला है।

अर्जुन रावत: कोरोना की दूसरी लहर में उत्तराखंड के सुदूर गांवों, पहाड़ों तक कोरोना पहुंच गया, क्या कहेंगे कि कहां चूक हुई, आगे क्या किए जाने की जरूरत है?

देखिए, पिछली बार जब प्रवासी भाई आए थे, पहला जत्था जब दिल्ली से निकला था तो मैंने ट्वीट किया था कि उत्तराखंड के जितनी एंट्री पॉइंट्स थे- कोटद्वार, हरिद्वार, ऋषिकेश, विकासनगर आदि में हमें क्वारंटीन सेंटर बनाना चाहिए था। पिछली बार गांव तक नहीं पहुंचा। इस बार कुंभ था, लोग आए ड्यूटी पर होमगार्ड और पुलिस के लोग गए… पिछली व्यवस्था में जोड़ने की बजाय लापरवाही ज्यादा हुई। उनकी टेस्टिंग, ट्रेसिंग नहीं हुई। वे अपने साथ अंदर गांव तक संक्रमण लेकर पहुंच गए। पहाड़ से आने या पहाड़ जाने वालों की ट्रेसिंग नहीं हुई। आज हालत यह है कि मुनस्यारी में दूरदराज एक पातो गांव है। मैं सोच भी नहीं सकता कि पातो गांव में 20-22 लोग संक्रमित हो गए। यह चिंता का विषय है। मैं जल्द ही गांवों का चक्कर लगाऊंगा कि आखिर सरकार ने जो घोषणाएं की हैं, हमने जो सजेशन दिए हैं, सरकार ने उस पर कुछ किया है या नहीं। हमें मालूम है कि वहां मेडिकल सुविधाएं उतनी अच्छी नहीं हैं लेकिन हम उनको टाइमली रीएक्ट कैसे कर रहे हैं। अगर किसी को बुखार आता है तो उसे अलग करके परिवार को भी किट मिल जाए तो संक्रमण फैलेगा नहीं।

मेरे दो सुझावों पर सरकार गौर नहीं कर रही है। एक तो मैंने कहा था कि हर गांव में एक घर जो खाली पड़ा है, उसके मालिक से बात करके आइसोलेशन सेंटर के रूप में बना दीजिए। वे परिवार से दूर भी हो जाएंगे और निकट भी रहेंगे। दूसरा मैंने कहा था कि आप हर परिवार को 1 हजार रुपया दीजिए। आप सबको कह रहे हैं कि मास्क पहनिए। एक व्यक्ति को 5-7 मास्क चाहिए। सैनेटाइजर, टॉइलेट क्लीनर, साबुन आदि खरीदना पड़ेगा। वैसे भी परिवार के पास 200-400 रुपये होगा तो कोई बीमार हो जाए तो व्यक्ति खर्च कर सकेगा। गांव के लोगों को भी एक सुझाव दिया है कि जो तिमरू का दातून है, उसके दाने अगर कोई चबाए तो वह भी कोरोना संक्रमण के खिलाफ प्रतिरोधक का काम कर सकते हैं। सैनेटाइजर के बराबर तीक्ष्णता तिमरू के दाने और दातून में है।

काव्यः कितना अच्छा हो कि दूसरी पार्टियों की ओर से आया अच्छा सुझाव भी सरकार के स्तर पर लिया जाए, पार्टियों में ऐसा तालमेल बने, सरकार किसी की भी हो, आपका अनुभव क्या कहता है?

हां, इसका फायदा होता है। सरकार ने कुछ सुझाव माने भी हैं। कभी-कभी राजनीतिक कारणों से सरकार उसे स्वीकार नहीं करती है लेकिन उत्तराखंड सरकार ने कई बातें मानी भी हैं। हमने सर्वदलीय बैठक बुलाने के लिए कहा था, सरकार ने बुलाई और उसका फायदा भी हुआ। हमने उनसे कहा कि सख्त फैसले लीजिए। जो कर्फ्यू आदि लगाए गए उसके लिए मुख्यमंत्री को फैसले लेने की राजनीतिक रूप से ताकत मिली। हमने यह भी सुझाव दिया कि रेवन्यू समेत ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले वर्कर को फ्रंटलाइन वर्कर्स की तरह तैयार कीजिए। जिस गांव में कोरोना संक्रमण होगा उसे कंटेन कर फैलने से रोका जा सकेगा। सरकार ने उस दिशा में काम तो किया पर अधूरा किया।

अर्जुन रावतः अभी तो कोरोना से हालात ठीक हैं, तैयारियां तेजी से हो रही हैं, आप क्या कहेंगे कोरोना की तीसरी लहर से निपटने के लिए हम कितने तैयार हैं?

हमने सरकार से कहा था कि जिलाधिकारी को पूरे पावर सौंपे जाएं। इसके साथ ही डीएम के पास एक अलग फंड रखने का भी सुझाव दिया था। एक सुझाव और देना चाहता हूं कि एमपी, एमएलए के साथ मिलकर मौजूदा हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर को ही मजबूत किया जिससे पीड़ितों को प्रारंभिक चिकित्सा मिल सके। मैंने देखा है कि जिसका इलाज 3-4 दिन में शुरू हो जाता है वह जल्दी ठीक हो जाता है। मेरा भी इलाज देर से शुरू हुआ क्योंकि मुझे पता ही नहीं चल पाया। मुझको 17 दिन आईसीयू में रहना पड़ा और आज भी सफर कर रहा हूं। बहुत से लोगों की जान इसीलिए चली जा रही है कि उन्हें इलाज जल्दी नहीं मिल पा रहा। ऐसे में गांवों के अंदर मेडिकल वैन पहुंचनी चाहिए, जो सभी सुविधाओं से युक्त हो। ये तैयारियां तीसरी लहर में मददगार होंगी।

अर्जुन रावतः विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस कितनी तैयार है?

देखिए, कांग्रेस बिल्कुल तैयार है अब प्रदेश के लोगों को तैयार होने की जरूरत है क्योंकि डबल इंजन की सरकार हर मोर्चे पर फेल हुई है। विशेषकर रोजगार के मुद्दे पर। प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में जो योजनाएं हमने शुरू की थीं, इन्होंने उसे बंद कर दिया। सरकार ने मेरा गांव, मेरा सड़क लिखना बंद कर दिया। उन्होंने जल बोनस, मड़ुआ बोनस, दुग्ध बोनस, पेड़ लगाने पर बोनस देना बंद कर दिया। प्रदेश में आमदनी में असमानता बढ़ गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में इनकम बहुत कम है, कुछ जगहों पर अच्छी है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियां बढ़ाने की जरूरत है। हमारी योजनाओं को इन्होंने बंद कर दिया। पहाड़ में गांव को सड़क से जोड़ना जरूरी है जिससे गांव के लोग रोड पर आकर सामान बेचने के लिए आगे आ सकें। बिजली विभाग में 350 भर्तियां हम कर रहे थे, ये कट करके 50 पर ले आए। इन्होंने पांच साल में बेरोजगारी बढ़ाई। हमने 3 साल में 32 हजार लोगों को रोजगार दिया।

 

अर्जुन रावतः आप कह रहे कि कांग्रेस चुनाव के लिए तैयार है लेकिन भाजपा कहती है कि कांग्रेस में एकता नहीं है और सल्ट का चुनाव परिणाम यही बताता है?

हमारे में एकता नहीं है, इसकी चिंता वो क्यों कर रहे हैं। वह सरकार में हैं उनके पास इतने एमएलए हैं उनमें कहां एकता है। त्रिवेंद्र सिंह को क्यों बदला गया? एकता नहीं थी झगड़ा था अंदर, तीरथ सिंह को लाए हैं वे भाजपा को तीरथ कराने में लगे हुए हैं। खाली जो त्रिवेंद्र सिंह के फैसले थे उसे बदलने में लगे हुए हैं। उनके मंत्री एक दूसरे के खिलाफ बयान दे रहे हैं। भाजपा अपने घर को देखे।

काव्य- पिछले 20 साल में कई बार मुख्यमंत्री बदले गए हैं, किसी राज्य की ग्रोथ को ये घटनाक्रम कितना प्रभावित करते हैं?

बिल्कुल, एक चीफ मिनिस्टर को पांच साल का वक्त मिलना चाहिए। मेरी सैकड़ों योजनाएं थीं, जो अंकुरित ही हो पाई थी इसलिए उसका लाभ लोगों को दिखाई नहीं दिया। दूसरी सरकार आई तो उन्होंने उसे बंद कर दिया। जो योजनाएं मैंने 2014 में आते ही शुरू कर दी थी, वह चलती रहीं क्योंकि वह बीज वृक्ष बन चुका था, उसका फायदा सबको दिख रहा था। भाजपा उत्तराखंड में राजनीतिक अस्थिरता की जननी है। पहली बार इनकी सरकार बनी दो साल में दो सीएम बदले। पांच साल में तीन सीएम दिए। इस बार भी दो सीएम हो गए और अब कह रहे हैं कि इस बार तीरथ के नेतृत्व में चुनाव नहीं लड़ा जाएगा किसी और को सीएम फेस दिखाएंगे। भाजपा क्या करती है कि जनता जिस चेहरे को पहचान जानती है उस चेहरे को हटा देती है ताकि लोग सवाल न कर सकें कि क्या किया आपने। हम चाहते हैं कि सीएम को पांच साल मिले और फिर जब वह जनता के बीच जाए तो लोग सवाल कर सकें कि आपने क्या-क्या किया। मेरी सरकार को गिराने के लिए कितने प्रयास हुए, दलबदल तक करवा दिया। यहां पहली बार हुआ, पहली बार राष्ट्रपति शासन लगा। जब तक प्रदेश की जनता को गुस्सा नहीं आएगा, राजनीतिक दल इस तरह से खिलवाड़ करते रहेंगे।

काव्य: आप क्षेत्रीय पार्टी को कितना महत्वपूर्ण मानते हैं और उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी को कहां देखते हैं?

देखिए, क्षेत्रीय दल अगर राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में बने हुए हैं उनका अपना काम है तो उनकी बात समझ में आती है लेकिन सिर्फ चुनाव के लिए दल बन जाते हैं तो वो क्या कर पाएंगे। उत्तराखंड में मैं 55 साल से घूम रहा हूं जितना मैं समझ पाऊंगा उतना क्या 5 या 555 दिन वाला व्यक्ति प्रदेश को समझ पाएगा। जो समझेगा नहीं वो नीतियां क्या बना पाएगा। चुनाव के पहले आप पार्टी को खड़ा कर दीजिए… अब क्या दिल्ली का मॉडल किसी दूसरे राज्य पर लग सकता है। हर राज्य का अपना मॉडल, अपने विकास की सोच होती है। यही वजह है कि उत्तराखंड ने हमेशा राष्ट्रीय दल को मौका दिया है।

अर्जुन रावतः चुनाव में चेहरे के साथ जाना कितना महत्वपूर्ण होता है और क्या आप कांग्रेस का चेहरा होंगे?

स्थानीय चेहरा होना चाहिए क्योंकि जवाब कौन देगा। जनता किसको उत्तरदायी मानेगी। पार्टी दूर रहती है, चेहरा सामने रहता है। व्यक्ति की अपनी सोच पर भी राज्य का विकास निर्भर रहता है। लोगों को स्पष्ट मालूम होना चाहिए कि इसको वोट दे रहा हूं तो इसकी सोच क्या है। अब वोट देंगे मोदी को और सवाल पूछेंगे त्रिवेंद्र सिंह से…। त्रिवेंद्र हाथ जोड़कर कह देते हैं कि मोदी जी के अखंड आकर्षण में वोट दिया, मैं मोदी जी का भक्त हूं… मतलब आप हमसे सवाल न पूछो। हरीश रावत को वोट देते हैं, व्यक्ति विशेष को वोट देते हैं तो नियंत्रण मेरे ऊपर पार्टी का होगा लेकिन जवाबदेही मेरी सीधी जनता से होगी। बाकी आपका जो प्रश्न है उसका जवाब भविष्य के गर्भ में है।

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