ऋषिकेश की महापौर अनिता ममगाईं ने कहा कि पर्यावरण को समर्पित हरेला पर्व उत्तराखंड की सांस्कृतिक परंपरा का प्रतीक है। यह त्यौहार संपन्नता, हरियाली, पशुपालन और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है। श्रावण मास में हरेला पूजने के उपरांत पौधे लगाए जाने की परंपरा रही है। उन्होंने कहा कि हरेला पर्व हमें पर्यावरण से जोड़ता है। पर्यावरण का संरक्षण उत्तराखंड की संस्कृति में रहा है।
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त धार्मिक एवं पर्यटन नगरी ऋषिकेश में हरेला पर्व पर पौधारोपण की बही ब्यार के बीच नगर निगम ने प्रशासन के सहयोग से शहर में विभिन्न स्थानों पर हजारों पौधे रोपे। कार्यक्रम का प्रमुख आर्कषण रंभा नदी का उद्गम स्थल में प्रकृति तले गायत्री मंत्रों के बीच विधिवत पूजा-अर्चना के साथ महापौर अनिता ममगाईं ने संतों एवं महंतों की गरिमामय उपस्थिति में विभिन्न प्रजातियों के पौधों का रोपण कराया।
इस अवसर पर महापौर ने कहा कि लोकपर्व हरेला प्रकृति से जुड़ाव एवं पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने के साथ ही बेहतर जीवन जीने का भी मार्गदर्शन करता है। हरेला हरियाली तथा ऋतुओं का पर्व है। हमें प्रकृति संरक्षण एवं प्रेम की अपनी संस्कृति तथा उत्सवों को मनाए जाने की परंपरा को बनाए रखना होगा। महापौर ने कहा कि पर्यावरण को समर्पित हरेला पर्व उत्तराखंड की सांस्कृतिक परंपरा का प्रतीक है। यह त्यौहार संपन्नता, हरियाली, पशुपालन और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है। श्रावण मास में हरेला पूजने के उपरांत पौधे लगाए जाने की परंपरा रही है। उन्होंने कहा कि हरेला पर्व हमें पर्यावरण से जोड़ता है। पर्यावरण का संरक्षण उत्तराखंड की संस्कृति में रहा है। उन्होंने कहा कि जीवन बचाने के लिए पौधरोपण जितना जरूरी है। उतना ही जरूरी इनका संरक्षण भी है। यदि हम पर्यावरण संरक्षण के लिए सजग नहीं रहेंगे तो पृथ्वी पर जीवन का बचना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
कार्यक्रम में अति विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहे परमार्थ निकेतन के परमाअध्यक्ष स्वामी चिदानंद मुनि ने अपने संबोधन में कहा कि वनों से हमें अनेक प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लाभ मिलते हैं। अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियां मिलती हैं। जिनका प्रयोग औषधियां बनाने में किया जाता है। भारत में लाखों लोग वनों पर आधारित उद्योगों में कार्य कर आजीविका चलाते हैं। हरेला पर्व पर फलदार व कृषि उपयोगी पौधा रोपण की परंपरा है। हरेला केवल अच्छी फसल उत्पादन ही नहीं वरन ऋतुओं के प्रतीक के रूप में भी मनाया जाता है। कार्यक्रम के उपरांत महापौर द्वारा तमाम संतों एवं महंतों को गिलोय का पौधा भेंट किया गया।
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