महिलाओं के श्रम को सम्मान दिलाने के उद्देश्य से उत्तराखंड कुमांऊ अंचल के कत्यूर घाटी स्थित न्याय पंचायत भिलकोट स्थित अमस्यारी ग्राम पंचायत के टिटोली मैदान में 17 व 18 दिसंबर को हिमालयी पर्यावरण, जलस्त्रों एव पर्वतीय शिक्षा पर कार्यरत संस्था ‘हितैषी’ गरूड, बागेश्वर द्वारा सातवें किर्साण वार्षिक महोत्सव का भव्य आयोजन किया गया। महिलाएं उत्तराखंड की शक्ति हैं, जिनकी बदोलत उत्तराखंड चल रहा है। जो पलायन कर बाहर निकल गए हैं अंचल के उत्थान की जरूर सोचे।
महिलाओं के श्रम को सम्मान दिलाने के उद्देश्य से उत्तराखंड कुमांऊ अंचल के कत्यूर घाटी स्थित न्याय पंचायत भिलकोट स्थित अमस्यारी ग्राम पंचायत के टिटोली मैदान में 17 व 18 दिसंबर को हिमालयी पर्यावरण, जलस्त्रों एव पर्वतीय शिक्षा पर कार्यरत संस्था ’हितैषी’ गरूड, बागेश्वर द्वारा सातवें किर्साण वार्षिक महोत्सव का भव्य आयोजन किया गया।
आयोजित किर्साण महोत्सव में 133 मात्रशक्ति द्वारा घस्यारी घास काट प्रतियोगिता में प्रतिभाग किया गया था। जो 33 महिलाएं फाइनल राउंड में पहुंची थी सभी को सम्मान स्वरूप शाल व थर्मस आयोजकों द्वारा प्रदान किया गया। सौ अन्य उद्यमी महिलाओ को कृषियंत्र में कुदाल और रैक पुरस्कार स्वरूप प्रदान किए गए। प्रथम स्थान प्राप्त ग्राम पय्या की गीता देवी को पन्द्रह हजार रुपया, द्वितीय स्थान प्राप्त ग्राम मवई की खष्टी देवी को बारह हजार रुपया तथा तृतीय स्थान प्राप्त ग्राम बून्गा की आनंदी देवी को दस हजार रुपया पुरस्कार स्वरूप जिला पंचायत अध्यक्ष बसंती देवी के कर कमलों प्रदान किया गया।
इस महोत्सव में दिल्ली, देहरादून, अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़, हल्द्वानी, रानीखेत इत्यादि क्षेत्रों से महोत्सव में उपस्थित प्रबुद्ध अतिथियों का स्वागत अभिनंदन ’हितैषि’ संस्था पदाधिकारियों द्वारा बैच व पुष्प माला पहना कर तथा पर्यावरण संवर्धन के प्रतीक, विभिन्न प्रकार के पेड व पौंधे भैट कर किया गया।
आयोजित किर्साण महोत्सव का श्रीगणेश अतिथियों के कर कमलां दीप प्रज्ज्वलित कर व स्कूली बच्चों द्वारा सरस्वती वंदना से किया गया। आयोजक संस्था अध्यक्ष रतन सिंह किरमोली व सचिव डॉ किसन सिंह राणा द्वारा सभी मंचासीन अतिथियों का स्वागत अभिनंदन कर, संस्था के उद्देश्य व विगत छः वर्षो में संस्था को मिली उपलब्धियों के बावत अवगत कराया गया। व्यक्त किया गया, विगत 25 वर्षो से क्षेत्र की महिलाओं के उत्थान हेतु कार्य हो रहा था। किर्साण महोत्सव विगत छः वर्षो से निरंतर सभी क्षेत्रवासियों के आर्थिक व सामाजिक सहयोग से हो रहा है। इस वर्ष सातवा किर्साण महोत्सव है।
इस महोत्सव में सांस्कृतिक मंच देहरादून के साथ-साथ क्षेत्र के ग्रामीण स्कूलों के छात्र-छात्राओं द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों के तहत उत्तराखंड की न्योली, छपेली, झोडा, जागर गायन व नृत्यों का प्रभावशाली मंचन किया गया। लोकगायिका कमला व राधा देवी के लोकगायन ने न सिर्फ समा बांधा, उपस्थित सैकडों ग्रामीण महिलाओं, युवाओं, बच्चों व अतिथियों को प्रभावित किया।
दो दिनों तक आयोजित किर्साण महोत्सव के दूसरे दिन स्थानीय राजकीय उमा महाविद्यालय देवल खेत से टिटोली मैदान तक न्याय पंचायत की सैकडों महिलाओ, बच्चों, युवाओं व बुजुर्गों तथा क्षेत्र के सभी ग्राम प्रधानों द्वारा सांस्कृतिक जुलूस में ढोल, दमाउ, नगाडा, तुरही और छोलिया नृत्य के साथ सांस्कृतिक जुलूस में भाग लिया गया। किर्साण महिलाएं उत्तराखंड की पारंपरिक वेशभूषा व रूपसज्जा धारण कर सांस्कृतिक जुलूस में शामिल हुई, अन्य युवाओं व बच्चों के साथ जनगीत गाकर सांस्कृतिक जुलूस को शोभायमान किया। किर्साण महिलाओं द्वारा गाए गए जनगीतों के बोल थे –
उत्तराखंड मेरी मातृभूमि, मेरी पितृभूमि, त्येरी जै-जै कारा…।
ततुक नि लगा उदेख…. ओ जैता एक दिन आलो यो दिन दुनि में…।
प्रभावशाली विशाल सांस्कृतिक जुलूस में शिरकत कर रहे बच्चों व महिलाओं के हाथों में लहरा रही तख्तियों में नारे लिखे थे –
1- पहाड़ बचाओ, पलायन रोको। 2- ये हैं पहाड़ के किर्साण, इनकी बनी है नई पहचान। 3- जंगल हमारा मायका है।4- धरती मां को सजाना है, पहाड़ बचाना है। 5- काम करो तुम नाम करो, श्रम का सम्मान करो। 6- एक दो एक दो, किर्साणों को सम्मान दो। 7- पर्यावरण रक्षा, जीवन रक्षा। 8- पर्वतीय जीवन का आधार, पहाड़ की नारी। 9- काम करो तुम नाम करो, श्रम का सम्मान करो। 9- बांज, बुराश, देवदार पेड, वर्षा की धार। 10- मां बहनां की यही पुकार, शराब बंद करे सरकार। 11- बांज, बुराश, उतीश की डाल, इनसे निकले पानी की धार। 12- पर्यावरण रक्षा, जीवन रक्षा।
अंचल की ग्रामीण महिलाओं के श्रम सम्मान में आयोजित किर्साण महोत्सव को राज्य व राष्ट्रीय फलक पर ख्याति प्राप्त पर्यावरण विदो, सामाजिक व सांस्कृतिक संगठनो से जुडे कर्मठ प्रबुद्ध जनों द्वारा संबोधित कर व्यक्त किया गया, हम सबको छोटे पौंधों का नुकसान नहीं करना चाहिए। सघन व्रक्षा रोपण होना चाहिए। प्राकृतिक रूप से जो पौंधे पैदा हो रहे हैं, उसको विशेष महत्व देना चाहिए। बांज, बुरांश, काफल, आंवला, मेहल, अखरोट, नाशपाती, सेव को अंचल के ग्रामीणों द्वारा ज्यादा महत्व दिया जाना चाहिए। जिस चीज की पैदावार ज्यादा होती है, उसको महत्व देना चाहिए। उन पेड, पौंधों, वनस्पति व फसलों को ज्यादा महत्व देना चाहिए जो पशुओं से सुरक्षित रह सके।
उपस्थित कृषि व पर्यावरण विशेषज्ञों द्वारा व्यक्त किया गया, सामान्य सी देखरेख में बहुत कुछ उगाया जा सकता है। प्राकृतिक जडी बूटियां ऐसी हैं जो नुकसान नहीं करती, इलाज पूरा करती हैं। व्यक्ति स्वस्थ रहता है। यह सब कर, महंगे इलाज से बचा जा सकता है। यह सब रोजगार के लिए भी महत्वपूर्ण है। प्राकृतिक नियम है, बदलाव होते रहते हैं। संयुक्त प्रयास से कार्यो को करे, देश समाज के लिए करे।
विशेषज्ञ पर्यावरण विदों द्वारा व्यक्त किया गया, वैज्ञानिक कहते हैं पानी का रंग रूप नहीं होता है, कन्दराओं में रह कर हम पर्वतीय अंचल वासी पानी के रंग रूप को देख सकते हैं। व्यक्त किया गया, आज श्रमिक महिलाओं का राजनैतिक व प्रशासनिक स्तर पर कोई सम्मान नहीं है, जिनकी बदौलत पीढी दर पीढी चली आ रही परंपराएं व लोकसंस्कृति जिंदा है। निरंतर हो रहे पलायन से बोली-भाषा व संस्कृति लुप्त हो रही है। अंचल की महिलाओं व उनके द्वारा किए जा रहे श्रम को सम्मान दिया जाना चाहिए।
वक्ताओं द्वारा व्यक्त किया गया, आयोजित किर्साण महोत्सव का महत्व है। महिलाएं उत्तराखंड की शक्ति हैं, जिनकी बदोलत उत्तराखंड चल रहा है। जो पलायन कर बाहर निकल गए हैं अंचल के उत्थान की जरूर सोचे। धीरे-धीरे उत्तराखंड के प्रवासी अंचल को रुख कर रहे हैं, महिलाओं के दुख दर्द को समझ रहे हैं। आज जलवायु बदल रही है। जीने के लिए तीन चीजे चाहिए, खाना, पानी और आक्सीजन, हम जिंदा रहेंगे।
देश को मिली आजादी के समय हमारी जनसंख्या 35 करोड़ थी, आज 140 करोड़ है। तब यही खेती थी, आज भी यही है, बल्कि घटी है, जिन खेतों में खेती थी वहां आज मकान बन गए हैं। अनाज कहा से आयेगा। जो अनाज पैदा हो रहा है, रासायनिक तौर-तरीकों से। रसायन खाद्यों में जाकर हमारे पेट में जा रहे हैं। आज अब अनाज नहीं, जहर है। जैविक खाद्य ही अन्न है। दुनिया जैविकता की ओर बढ रही है। खेतों को जैविक बनाएं। उत्तराखंड के हजारों गांव प्यासे हैं, टैंकर से पानी पहुंच रहा है। उत्तराखंड की महिलाओं के श्रम को पहचान उन्हें पद्मश्री प्रदान की गई है। पहाड को जिंदा रखना है तो, जंगल को बचाएं। जंगल में आग लगने पर बुझाएं।
इस कार्यक्रम में पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त पद्मश्री बसंती देवी व कल्याण सिंह ’मैती’, सेवानिवृत एडमिरल ओ पी एस राणा, भारत सरकार मे कार्यरत वरिष्ठ अधिकारी दिनेश चंद्र कनसीली, वृक्ष मित्र किसन सिंह मलडा, गरूण ब्लाक प्रमुख हेमा बिष्ट, पंतनगर विश्व विद्यालय के आनंद जीना, पर्यावरणविद गंगोलीहाट राजेन्द्र बिष्ट, मिसाइल वैज्ञानिक ओम प्रकाश राणा, पूर्व आईजी सीआरपीएफ रमेशचंद्र, कुमांऊ विश्वविद्यालय पुरातत्व विभाग के डॉ चंद्र प्रकाश फुलोरिया व प्रोफेसर (डॉ) हेम पंत, डॉ शेखर कांडपाल, जल, जंगल व पर्यावरण से जुडे भैरव नाथ टम्टा, चंदन डांगी व चंद्र मोहन पपनैं इत्यादि की उपस्थिति में संस्था अध्यक्ष रतन सिंह किरमोलिया की अध्यक्षता में आयोजित कर, न्याय पंचायत के 11 गांवों छटिया, मवाई, स्याली स्टेट, अमस्यारी, भिलकोट, बुन्गा, बेटी, हरि नगरी, कुलाउ, पय्या व डाबो की 133 किर्साण महिलाओं को सम्मानित किया गया।
सी एम पपनैं
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