भांग की चटनी, ककड़ी की बड़ी…. उत्तराखंड की महिलाओं के हाथों का स्वाद चख रहा सारा इंडिया

भांग की चटनी, ककड़ी की बड़ी…. उत्तराखंड की महिलाओं के हाथों का स्वाद चख रहा सारा इंडिया

हर इलाके का खान-पान, रहन-सहन अलग होता है और बात पहाड़ की हो तो फिर क्या कहने। यहां की पारंपरिक चीजों की अब देशभर में मांग होने लगी है। ऐसा ही एक समूह है जो न सिर्फ गांव की घरेलू महिलाओं को आय के साध उपलब्ध करा रहा है बल्कि उत्तराखंड के स्वाद से देश को रूबरू भी करा रहा है।

गांव की महिलाओं को आमतौर पर घरेलू काम जैसे गाय-भैंस पालना, खाना बनाना, घर की साफ-सफाई तक ही सीमित समझा जाता है, पर अब गावों की तस्वीर बदल रही है। गांव में ये सब काम करते हुए भी माताएं-बहनें अपनी आमदनी बढ़ा रही है। आज की कहानी ऐसी ही कुछ महिलाओं पर केंद्रित है जिनकी बनाई चीजों की देशभर में डिमांड बढ़ रही है।

उत्तराखंड के हल्द्वानी शहर का एक गांव है आनंदपुर, यहां की रहने वाली किरण जोशी ‘कालिका स्वयं सहायता समूह’ चलाती हैं। वह कहती हैं कि काम तो हम काफी समय से कर रहे थे पर कोई पहचान नहीं थी लेकिन समूह बनने से काफी फायदा हुआ। वह बताती हैं कि समूह में काम करने वाली महिलाओं की आर्थिक हालत उतनी अच्छी नहीं है। पहले उनके घर आय का स्रोत एक-डेढ़ लीटर गाय का दूध बेचना ही हुआ करता था लेकिन समूह में आने से उन्हें प्रतिदिन कम से कम 200 रुपये की आमदनी होने लगी साथ ही उनकी जानकारी भी बढ़ी। परिवार का स्तर भी उनका सुधरा।

कैसे शुरू किया काम

हिल मेल से बातचीत में किरण ने बताया कि हमने आसपास देखा कि काफी सब्जियां खराब हो जाती हैं तो तय किया गया कि हम बड़ी का काम शुरू करेंगे। इसका काफी अच्छा रिस्पांस मिला। ब्लॉक की मदद से दिल्ली, देहरादून, हल्द्वानी जैसे शहरों में उन्हें फ्री में एक्जीबिशन का मौका मिला। इसका फायदा यह हुआ कि बाहरी लोगों के साथ ही ऑनलाइन काम करने वाले लोगों ने बड़े ऑर्डर दिए।

इधर, महिलाओं को भी लगा कि वे अपने घर का काम करते हुए अपनी सहूलियत के हिसाब से सुबह शाम 2-2 घंटे काम करके कमाई कर सकती है।

हल्दी-नींबू से बनाती हैं रोली

समूह के अन्य उत्पादों में पहाड़ की लुप्त होती पिठिया है, जिसे रोली कहते हैं। इस जैविक रोली को हल्दी और नींबू से बनाया जाता है, इसमें कोई रंग नहीं डाला जाता है। किरण ने बताया कि हल्दी जब नींबू के साथ पकती है तो उसका लाल रंग आ जाता है। इसका कोई नुकसान नहीं होता है। हल्दी की भी जैविक रोली बना रहे हैं। इसकी काफी डिमांड है।

भांग की चटनी के क्या कहने…

वह बताती हैं, ‘हम कई तरह के नमक बनाते हैं। हमने चटनी को एक नया रूप दिया। हमारे यहां भांग का बीज और भंगीरा होता है। उसकी हमने ड्राई चटनी बनानी शुरू की। अनारदाना, पुदीना, हरा धनिया, भांग को भून कर जीरा मिलाकर इसे तैयार किया जाता है। लोगों को यह काफी पसंद आई और काफी मांग है। अब ऑनलाइन मार्केटिंग के जरिए भी ऑर्डर मिल रहे हैं।’

 

(प्रदर्शनी का वीडियो)

ब्लॉक की तरफ से एक गोदाम और अन्य चीजें समूह को उपलब्ध कराई जा रही हैं। हल्द्वानी और देहरादून में ग्राम विकास की प्रदर्शनी में किरण के समूह को पहला पुरस्कार मिल चुका है।

कुल 212 उत्पाद बनाता है समूह

  • 4-5 तरह की बड़ियां हैं – उड़द की दाल, पहाड़ी ककड़ी की, उड़द दाल और अरवी के डंडों की, मूंग की मुगौड़ी (70 रुपये 200 ग्राम, मुंगौड़ी 200 ग्राम 50 रुपये)
  • जैविक रोली- माथे पर लगाई जाने वाली, कोई नुकसान नहीं (50 ग्राम-50 रुपये)
  • ड्राई भांग की चटनी – बिल्कुल अलग स्वाद, कई शहरों से आते हैं ऑर्डर (50 ग्राम-20 रुपये की)
  • लहसुन हरा धनिया पुदीने का नमक (50 ग्राम- 15 रुपये)
  • मडुंए, मक्के का बिस्किट- डिमांड ज्यादा होने से बेकरी की मदद ली जाती है (200 ग्राम- 32 रुपये)
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