हिमालयन नॉलेज नेटवर्क क्षेत्रीय, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय प्राथमिकताओं जैसे- गरीबी उन्मूलन, स्वस्थ समाज, सतत विकास, पर्यावरण सुरक्षा तथा जैव विविधता संरक्षण आदि कुल 17 क्षेत्रों के अनुरूप हिमालय क्षेत्र के संरक्षण की दिशा में काम कर रहा है।
उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यू-सैक) द्वारा शुक्रवार को हिमालयन नॉलेज नेटवर्क (एच.के.एन) विषय पर वेबिनार का आयोजन किया गया। वेबिनार में उत्तराखंड राज्य में स्थित विभिन्न शोध संस्थानों के वैज्ञानिकों, विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों, विभिन्न रेखीय विभागों एवं गैर-सरकारी संगठनों के अधिकारियों व परियोजना प्रबंधकों ने हिस्सा लिया। इस वेबिनार का लक्ष्य उत्तराखंड राज्य के सतत विकास के लिए प्राथमिकता वाले किन्हीं दो विषयगत क्षेत्रों की पहचान करना था।
वेबिनार में यू-सैक के निदेशक प्रो. एम.पी.एस. बिष्ट ने रिमोट सेंसिंग व भौगोलिक सूचना प्रणाली तकनीकी से सृजित एवं एकत्रित सूचनाओं के बारे में अवगत कराया। उन्होंने बताया कि सूचना का साझाकरण व उनको उचित समय पर नीति निर्धारण कर्ताओं को पहुंचाना अति आवश्यक है। प्रोफेसर बिष्ट ने बताया कि हिमालयन नॉलेज नेटवर्क विभिन्न नेटर्वकों से मिलकर बना एक विस्तृत एवं भव्य ज्ञान के माध्यम के रूप में विकसित होने जा रहा है।
वेबिनार में हिमालयन नॉलेज नेवटर्क के नोडल अधिकारी डॉ. जी.सी.एस. नेगी, वरिष्ठ वैज्ञानिक जी.बी. पंत पर्यावरण संस्थान, अल्मोड़ा ने बताया कि पर्वतीय क्षेत्रों में अनेक पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं जैसे कृषि, ग्लेशियरों, कार्बन सिंक वैल्यू, सांस्कृतिक एवं जैविक विविधता के क्षेत्रों में समृद्ध होने के बावजूद पर्वतीय क्षेत्रों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। उन्होंने बताया पर्यावरण विकास के क्षेत्र में सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र में 145 से अधिक विश्वविद्यालय 2000 से अधिक प्रोफेसर व 500 से अधिक वैज्ञानिक कार्यरत हैं, फिर भी विभिन्न संस्थानों में सूचना की सीमित साझेदारी है।
कार्यक्रम में यू-सैक के वैज्ञानिक एवं उत्तराखंड राज्य के एच.के.एन. परियोजना के नोडल अधिकारी डॉ. गजेन्द्र सिंह ने बताया कि यू-सैक द्वारा राज्य इकाई के रूप में विभिन्न संस्थानों, रेखीय विभागों, एजेंसियों के पास उपलब्ध सूचना व आंकड़ों के आधार पर उत्तराखंड राज्य के लिये दो प्राथमिकता वाले विषयगत क्षेत्रों के लिये दस्तावेज तैयार करना है। उन्होंने राज्य में पानी की कमी, जैव-विविधता को नुकसान, वनाग्नि, लैण्ड्सस्लाइड, जलवायु परिवर्तन, रिस्पोंसिव टूरिज्म, कृषि क्षेत्रों के कम होने आदि अनेक चुनौतियों से अवगत कराया।
परिचर्चा की अध्यक्षता करते हुये भारतीय वन्यजीव संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ. जी.एस. रावत ने उत्तराखंड में विभिन्न चुनौतियों पर विभिन्न संस्थानों, रेखीय विभागों व गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों द्वारा दिये गये सुझावों को सूचीबद्व किया। वेबिनार का संचालन कर रहे यू-सैक के वैज्ञानिक श्री शशांक लिंगवाल ने परामर्श कार्यशाला के निष्कर्ष से अवगत कराते हुए बताया कि एग्री हार्टीकल्चर डेवलपमेंट, रिस्पोंसिव टूरिज्म व जैव विवधता विषयों को चिन्हित किया गया है। इसे नीति-निर्धारकों की अनुमति के बाद विषयगत दस्तावेजीकरण कर नीति आयोग को प्रदान किया जायेगा।
वेबिनार में एस.एस. रसैली- ए.पी.सी.सी.एफ., आरएन झा- सदस्य सचिव जैवविविधता बोर्ड, प्रो. एसके गुप्ता -एच.एन.बी. गढवाल विश्वविद्यालय, प्रो. ललित तिवारी- कुमाउ यूनिवर्सिटी, डॉ. अविनाश आनन्द- सी.ई.ओ.- भेड़ एवं ऊन विकास परिषद, श्रीमती पूनम चंद- पर्यटन विभाग, डॉ. राजेश खुल्बे- आई.सी.ए.आर., डॉ. मंजू सुन्द्रियाल- यूसर्क, डॉ. किरण नेगी- हेस्को, डॉ. पंकज तिवारी- आरोही, डॉ. संदीप भट्ट- आई.आई.टी, रूड़की, डॉ. पंकज जोशी- डब्लू.डब्लू.एफ, डॉ. वी.आर.एस. रावत- एफ.आर.आई., डॉ प्रियदर्षी उपाध्याय, डॉ अरूणा रानी, डॉ सुषमा गैरोला, पुष्कर कुमार, आर.एस. मेहता, सुधाकर भट्ट, नवीन चन्द्र, संजय द्विवेदी, सोनम बहुगुणा, भावना फर्सवाण ने भी परिचर्चा में हिस्सा लिया।
हिमालयन नॉलेज नेटवर्क क्षेत्रीय, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय प्राथमिकताओं जैसे- गरीबी उन्मूलन, स्वस्थ समाज, सतत विकास, पर्यावरण सुरक्षा तथा जैव विविधता संरक्षण आदि कुल 17 क्षेत्रों के अनुरूप हिमालय क्षेत्र के संरक्षण और विकास को बढ़ावा देने तथा पर्यावरणीय चुनौतियों को दूर करने के लिए विज्ञान-नीति-अभ्यास, इंटरफेस से डेटा व सूचना साझा करने की सुविधा प्रदान करना है। इस परियोजना का संचालन गोविन्द बल्लभ पन्त पर्यावरण संस्थान अल्मोड़ा द्वारा सभी 11 हिमालयी राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों में चलाई जा रही है। इसमें उत्तराखंड राज्य के लिए यू-सैक को नोडल एजेंसी नामित किया गया है।
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