उत्तराखंड की विभिन्न प्रवासी सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, फिल्म एवं मीडिया की विभिन्न विधाओं से जुड़े प्रबुद्धजनों की उपस्थिति में उत्तराखंड के सु-प्रसिद्ध दिवंगत लोकगायक प्रहलाद मेहरा को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु 14 अप्रैल को न्यू अशोक नगर स्थित डीपीएमआई सभागार में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया।
सी एम पपनैं
इस अवसर पर सभागार में उपस्थित प्रवासी जनों द्वारा दिवंगत लोकगायक प्रहलाद मेहरा के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्वलित कर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। गीत-संगीत, रंगमंच तथा उत्तराखंडी फिल्म जगत से जुड़े कलाकारों, साहित्यकारों, पत्रकारों व समाज सेवियों में प्रमुख चंदन भैसोडा, बिशन हरियाला, मनोज चंदोला, हेम पंत, डॉ.सतीश कालेश्वरी, चारू तिवारी, राकेश गौड, डॉ. विनोद बछेती, के एन पांडे, सत्येंद्र फरन्डिया, चन्द्र मोहन पपनैं तथा सुरेंद्र हलसी द्वारा दिवंगत लोकगायक द्वारा जीवन पर्यंत अंचल के लोकगायन, लोकसंगीत व लोकगीतों की रचना कर उत्तराखंड की सांस्कृतिक विधा के संवर्धन व संरक्षण में दिए गए योगदान पर सारगर्भित प्रकाश डाल कर भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई।
लोकगायक प्रहलाद मेहरा का आकस्मिक निधन विगत 10 अप्रैल को 53 वर्ष की उम्र में हृदय गति रुक जाने से हल्द्वानी के कृष्णा हस्पताल में हो गया था। 11 अप्रैल रानीबाग स्थित चित्रशिला घाट में उनका अंतिम संस्कार किया गया था। उनके पुत्र मनीष मेहरा, नीरज मेहरा और कमल मेहरा द्वारा चिता को मुखाग्नि दी गई थी।
दिवंगत प्रहलाद मेहरा उत्तराखंड के सीमांत पिथौरागढ़ जिले की तहसील मुनस्यारी स्थित चामी भेंसकोट में जन्मे थे। बचपन से उन्हें वाद्ययंत्र बजाने व गाने का शौक रहा था। वे ताउम्र उत्तराखंड के लोकगीत संगीत को समर्पित रहे। उन्हें गीत, झोड़ा, चांचरी, न्योली इत्यादि इत्यादि विधाओं में महारत हासिल थी। उनकी गायन प्रतिभा का ही प्रतिफल था वर्ष 1989 में उन्हें आकाशवाणी अल्मोड़ा में ए ग्रेड कलाकार का दर्जा प्राप्त हो गया था।
दिल्ली में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में विद्वान वक्ताओं द्वारा व्यक्त किया गया, दिवंगत प्रहलाद मेहरा के आकस्मिक निधन से उत्तराखंड के रंगमंच व सांस्कृतिक जगत की एक अपूरणीय क्षति हुई है, जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती है। अंचल ने एक ऐसी सोच के समर्पित लोकगायक को खोया है जिसकी रचनाओं व गायन में पहाड़ की नारी की वेदना का बखान होता था। अंचल से जुड़े गीत-संगीत की रचना व गीत गायन पर उनकी अच्छी पकड़ व गहरी संवेदनशील सोच थी। वे अंचल की पारंपरिक लोक संस्कृति के प्रहरी व मर्मज्ञ थे।
वक्ताओं ने कहा, अंचल की लोक संस्कृति के संवर्धन की चाहत उनकी सदा बनी रही। चैती गायन के साथ-साथ अन्य अनगिनत सुपरहिट गीत उन्होंने गाए। उनके गीतों में कुमाऊनी संस्कृति का रंग बिखरता था। बाल उम्र से ही अंचल के लोकगीत गायन, संगीत तथा बोली-भाषा में उनका बड़ा आलोक था। वे अपनी व समाज की बातों को गीतों के माध्यम से आगे रखते थे। अपने ग्रामीण अंचल दानपुर की प्रकृति का बखान अपने कर्णप्रिय व भावयुक्त गीतों में किया करते थे।
वक्ताओं द्वारा कहा गया, दिवंगत प्रहलाद मेहरा उस परंपरा से आते हैं जहां से केशब अनुरागी आते हैं, शेरदा अनपढ़, हीरा सिंह राणा तथा नैन नाथ रावल, नरेंद्र सिंह नेगी इत्यादि इत्यादि आते हैं। वक्ताओं द्वारा कहा गया, हमारे यहां लोकगीतों में नाचने गाने की परंपरा है, उस लोकगीत के भाव क्या हैं, उसे जानने की किसी ने कोशिश नहीं की। दिवंगत प्रहलाद मेहरा के रचे व गाए गीत चेतना जगाने वाले गीत थे। उन्होंने महिलाओं के दर्द के गीतों को गाया। बहुत बड़ा आलोक उनके गीतों में रहा है।
वक्ताओं द्वारा कहा गया, जब विश्व बाजार सब कुछ बना रहा है, परोस रहा है, ऐसे समय में प्रहलाद मेहरा ने अंचल की पुरानी परंपराओं को आगे बढ़ाया है। वे लोगों के मर्म को जानते थे, समझते थे। वे जो अपने गीतों के माध्यम से दे गए हैं एक बड़ी धरोहर है। वर्तमान व भविष्य की पीढ़ी को इस धरोहर के मायने समझने होंगे, उसे संजो कर रखना होगा।
वक्ताओं द्वारा कहा गया, 2022 में उन्हें अंचल के गायन में यूका सुपरहिट गायक के सम्मान से नवाजा गया था। और भी अनेकों सामाजिक व सांस्कृतिक संगठनों द्वारा उन्हें समय-समय पर विभिन्न नामों के सम्मानों से नवाजा गया। सौम्य और सरल स्वभाव के इस महान व्यक्तित्व के लोकगायक व रचनाकार में अंचल के लोगों के मर्म, अभावग्रस्त जीवन तथा लोक संस्कृति से उनका कितना गहरा नाता था, यह उनके द्वारा रचित गीतों व मर्म स्पर्शी गायन में झलकता था। उनकी सहजता, मिलनसार स्वभाव से सहमत हुए बिना नही रहा जा सकता था। उत्तराखंड के जन समाज को जो संदेश उन्होंने अपने गीतों के माध्यम से दिया, झकझोरने व जागरुक करने वाला रहा, अनुकरणीय रहा। उनकी स्मृति मन मस्तिष्क में बनी रहेगी।
वक्ताओं द्वारा कहा गया, दिवंगत प्रहलाद मेहरा को उनके योगदान पर वह स्थान और सम्मान नहीं मिल पाया जिसके वे असली हकदार थे। अंचल के जन के मध्य उनके रचित गीत व गायन पीढ़ियों तक उनकी याद दिलाते रहेंगे विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है।
सभी वक्ताओं द्वारा कहा गया, प्रहलाद मेहरा का जाना दुःख मय रहा। शोक स्थाई भाव की तरह जमा रहेगा। उनके रचे व गाए लोकगीत सदा स्मरणीय रहेंगे। उनकी रचनाओं व लोकगीतों को हम सबको मिलजुल कर आगे बढ़ाना होगा। हम किसी भी विचार धारा से जुड़े हो, परंतु अपने अंचल से जुड़ाव व नाता अवश्य रखना होगा। हम सब दिवंगत आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। पुण्य आत्मा की नजर बनी रहे, कामना करते हैं।
वक्ताओं द्वारा राय व्यक्त की गई, दिवंगत प्रहलाद मेहरा के नाम पर अंचल के किसी इंस्टिट्यूट का नाम रखा जाना चाहिए, यह कार्य उस दिवंगत आत्मा को सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी। दिवंगत आत्मा की शांति हेतु खचाखच भरे सभागार में उपस्थित लोगों द्वारा दो मिनट का मौन रखा गया। आयोजित श्रद्धांजलि सभा के विसर्जन की घोषणा मंच संचालक उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध संगीतकार राजेंद्र चौहान द्वारा की गई।
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