केंद्र सरकार ने वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत सीमावर्ती जादूंग गांव को दोबारा आबाद की कवायद शुरू की है। सीमावर्ती जादूंग गांव में वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत खंडहर घरों को होमस्टे में बदलने का काम तेजी से चल रहा है।
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में 56 सालों से वीरान पड़े गांवों को दोबारा से सजाया और संवारा जा रहा है। इतिहास के पन्नों में दर्ज इन गांवों की मकानों की दीवारें रंगों से सजने लगी हैं। गांव की तरफ जाने वाली पगडंडी पर लोगों की चहल-पहल दिखाई देने लगे हैं। सब कुछ योजना के मुताबिक हुआ तो जिस आबाद जादूंग गांव को भारत-चीन युद्ध के दौरान खाली करना पड़ा था, उस गांव को नए साल के शुरुआत तक नया रूप मिल जाएगा। इससे गांव में पर्यटकों की आमद भी देखने को मिलेगी। भारत-चीन युद्ध 1962 में जाड़-भोटिया समुदाय के सीमावर्ती नेलांग और जादूंग गांव को खाली करवाया गया था। वर्तमान में जादूंग में जहां आईटीबीपी तैनात है। वहीं, नेलांग में सेना काबिज है।
केंद्र सरकार ने वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत सीमावर्ती जादूंग गांव को दोबारा आबाद की कवायद शुरू की है। सीमावर्ती जादूंग गांव में वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत खंडहर घरों को होमस्टे में बदलने का काम तेजी से चल रहा है। यहां विषम भौगोलिक परिस्थितियों के बीच 30 श्रमिक होमस्टे निर्माण के काम में जुटे हुए हैं। कार्यदायी संस्था गढ़वाल मंडल विकास निगम के अधिकारियों का कहना है कि पहाड़ी शैली में बनने वाले ये सभी होमस्टे सौर ऊर्जा से रोशन होंगे, जिसके भूतल में होमस्टे मालिक रहे सकेंगे। वहीं, ऊपरी मंजिल में पर्यटकों के ठहरने की उचित व्यवस्था होगी। हालांकि इनके लिए विकट भौगोलिक परिस्थितियों वाले इस क्षेत्र में निर्माण आसान नहीं है। यहां दिन का तापमान जहां 2 से 3 डिग्री सेल्सियस रहता है। वहीं, रात में यह माइनस में चला जाता है। दोपहर दो बजे बाद यहां तेज हवाएं चलने लगती है, जिससे निर्माण कार्य को जारी रख पाना आसान नहीं रहता है।
जीएमवीएन के एई ने बताया कि होमस्टे एक की ऊपरी मंजिल में दो कमरे रहेंगे। जबकि अन्य में एक कमरा नीचे और एक ऊपर रहेगा। भूतल में मालिक और ऊपर पर्यटकों के ठहरने की उचित व्यवस्था रहेगी। ये सभी होमस्टे सौर ऊर्जा से रोशन होंगे। पर्यटकों की सुविधा के लिए यहां पर अलग-अलग तरीके के होमस्टे बनाए जा रहे हैं। सौर ऊर्जा के माध्यम से चलने वाली लाइट और अन्य सभी उपकरण को लगाने का काम लगभग पूरा हो चुका है। जो घर पुराने थे, उनको नए रूप में दोबारा से बनाया जा रहा है। जहां पर मकान गिर गए हैं या बंकर बना लिए गए थे, उनको भी संजोकर पर्यटकों के लिए दोबारा से सही किया जा रहा है। पर्यटक यहां पर आकर 1962 के युद्ध की निशानियां देख सकेंगे।
भारत-चीन युद्ध 1962 में जाड़-भोटिया समुदाय के सीमावर्ती नेलांग और जादूंग गांव को खाली करवाया गया था। वर्तमान में जादूंग में जहां इंडियन तिब्बत बॉर्डर पुलिस (आईटीबीपी) तैनात है। वहीं, नेलांग में सेना काबिज है। केंद्र सरकार ने वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत सीमावर्ती जादूंग गांव को दोबारा आबाद करने की कवायद शुरू की है। इसके तहत प्रथम चरण में जादूंग गांव में 6 होमस्टे का निर्माण किया जा रहा है। इन होमस्टे के निर्माण में पुराने भवनों के निर्माण प्रयुक्त पत्थर की ही चिनाई की जा रही है। होमस्टे के भूतल और ऊपरी मंजिल दोनों में शौचालय की भी उचित व्यवस्था होंगी। पत्थर की चिनाई होने से सर्दियों में भी यह होमस्टे अंदर से पूरी तरह गर्माहट देंगे। वर्तमान में एक होमस्टे की नींव तैयार कर ली गई है, एक अन्य का काम चल रहा है। सभी होमस्टे अगस्त 2025 तक तैयार करने का लक्ष्य है। प्रत्येक होमस्टे को जोड़ने के लिए इंटर कनेक्ट फुटपॉथ का भी निर्माण किया जाएगा, जिसमें सोलर लाईटें लगी होंगी।
उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्यों को प्रकृति ने कई अनमोल तोहफों से नवाजा है। जो इन हिमालयी राज्यों के लिए आर्थिकी का एक बेहतर जरिया बन सकता है, लेकिन प्रकृति के इस अनमोल उपहार के संरक्षण की भी जरूरत है। प्रकृति का संरक्षण सही मायने में पर्वतीय राज्यों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। क्योंकि, प्रकृति संरक्षण के मुख्य आधार जल, जंगल और जमीन ही हैं। वाइब्रेंट विलेज योजना सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नौगांव में अव्यवस्थाओं और डॉक्टर न होने के कारण रैफरल सेंटर बनने से स्थानीय लोगों में भारी रोष है। स्थानीय लोगों ने एक दिवसीय सांकेतिक धरना/प्रदर्शन किया है।
अब सबसे बड़ा सवाल ? कभी रवांई की जीवन रेखा माने जाने वाले सी.एच.सी. नौगांव अस्पताल की बदहाली के लिए आखिर कौन है जिम्मेदार? धरना/प्रदर्शनकारियों ने वर्तमान/पूर्व विधायकों पर लगाया नौगांव की अनदेखी का आरोप! साथ ही नौगांव की समस्याओं के लिए धरने में शामिल न होकर तमाशबीन बनने वालों को दी पुरोला/बड़कोट वालों से सिख लेने की नसीहत! प्रदर्शनकारियों ने मांगों पर अमल न करने पर (9 नवंबर) राज्य स्थापना दिवस के दिन से दी उग्र आंदोलन की चेतावनी। प्रदर्शकारियों का कहना है कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नौगांव में न तो डॉक्टर हैं, सब राम भरोसे चल रहा है। शौचालय से दुर्गंध आती है।
अस्पताल रैफरल सेंटर बना है। अल्ट्रासाउंड भी सप्ताह में मात्र 2 ही दिन होता है। जिस कारण गर्भवती महिलाओं/आमजन को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने पुरोला के पूर्व/वर्तमान विधायक पर नौगांव की अनदेखी का आरोप लगाया है। जिस कारण सी.एच.सी. की ऐसी स्थिति बनी है। ये सभी चीजें उत्तराखंड में मौजूद हैं। यही वजह है कि वैज्ञानिक और पर्यावरणविद् लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि भविष्य में लोगों को शुद्ध हवा और पानी मिल सके, इसके लिए अभी से ही प्रकृति संरक्षण की दिशा में काम करने की जरूरत है।
लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।
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