कौन है वो उत्तराखंडी, जिसकी बहादुरी को 75 साल बाद भी सलाम कर रहा रूस

कौन है वो उत्तराखंडी, जिसकी बहादुरी को 75 साल बाद भी सलाम कर रहा रूस

भारतीय सैनिकों के पराक्रम का लोहा पूरी दुनिया मानती है। इजरायल हो या रूस, वे भारतीय सैनिकों की वीर गाथा की कहानी कहते हैं। ऐसे ही एक जांबाज की तस्वीर मॉस्को में रूस सेना के म्यूजियम में लगाई गई है। पढ़िए उत्तराखंड के सपूत की कहानी, जिसे रूस कर रहा सलाम…

पिथौरागढ़ के बड़ालू के एक भारतीय जांबाज की तस्वीर रूस में सेना के म्युजियम में शान से लगाई गई है। इस भारतीय सैनिक को पूरा रूस सलाम करता है। जी हां, 1944 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अदम्य साहस और बहादुरी का परिचय देने वाले हवलदार गजेंद्र सिंह को सोवियत सैन्य सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ द रेड स्टार’ से सम्मानित किया गया था। मॉस्को में रूस ने वीर सैनिकों की गैलरी लगाई है, जहां अपने सैनिकों के साथ भारतीय जवान की भी तस्वीर लगाई गई है। उनके अलावा इस गैलरी में एक और भारतीय जवान की तस्वीर लगी है, जो तमिलनाडु के रहने वाले थे।

मॉस्को में भारतीय दूतावास ने उनके घरवालों को पिछले हफ्ते इस सम्मान की जानकारी दी। रूस में भारत के राजदूत डीबी वेंकटेश वर्मा के हस्ताक्षर वाला एक पत्र परिवार को भेजा गया। इसमें कहा गया कि रूस आर्म्ड फोर्सेज ने अपने म्यूजियम में सिंह को जगह दी है और यह भारत के लिए बड़े गर्व की बात है।

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मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जवान के बेटे भगवान सिंह ने बताया कि उनके पिता 1936 में ब्रिटिश इंडियन आर्मी में भर्ती हुए थे। उनकी ट्रेनिंग चकवाल (रावलपिंडी) में हुई थी और ज्यादातर समय उन्होंने नॉर्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रॉविन्स में सेवा दी, जो अब पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा का इलाका है। द्वितीय विश्व युद्ध जब शुरू हुआ तो उनकी पोस्टिंग इराक के बसरा में थी।

मित्र देशों की सेनाओं में शामिल सिंह को मुश्किल परिस्थितियों में सोवियत सैनिकों को राशन, हथियार और गोला-बारूद पहुंचाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। 1943 में एक रात वह ड्यूटी पर थे और दुश्मन के सैनिकों ने हमला बोल दिया और वह जख्मी हो गए। सेना के डॉक्टरों ने उन्हें भारत लौटने की सलाह दी लेकिन वह बटालियन में फिर से शामिल हुए और सोवियत सैनिकों के लिए आपूर्ति पहुंचाते रहे।

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आपको बता दें कि भारतीय सेना के तीनों अंगों की एक टुकड़ी कर्नल रैंक के अधिकारी के नेतृत्व में 24 जून 2020 को रूस की राजधानी मॉस्को के रेड स्क्वायर पर आयोजित सैन्य परेड में हिस्सा लेने पहुंची थी। यह परेड द्वितीय विश्व युद्ध (1941-1945) में सोवियत संघ को मिली विजय की 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित की गई।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश भारतीय सैनिकों की टुकड़ी मित्र राष्ट्रों की सेना में शामिल सबसे बड़ी सैन्य टुकड़ियों में से एक थी जिसने उत्तरी और पूर्वी अफ्रीका, पश्चिमी रेगिस्तान और यूरोप में भीषण संघर्ष वाले क्षेत्रों में धुरी राष्ट्रों के खिलाफ चलाए गए अभियान में हिस्सा लिया था।

इन अभियानों में 87 हजार से अधिक भारतीय सैनिकों ने अपना बलिदान दिया और 34,354 घायल हुए। भारतीय सैनिकों ने न केवल सभी मोर्चों पर युद्ध में हिस्‍सा लिया बल्कि ईरान से होकर गुजरने वाले लीज मार्ग पर लॉजिस्टिक सहयोग भी सुनिश्चित किया, जिसके माध्‍यम से हथियार, गोला-बारूद, उपकरण और भोजन सामग्री सोवियत संघ, ईरान और इराक तक पहुंचाई जा सकी।

भारतीय सैनिकों की वीरता को चार हजार से अधिक अलंकरणों से सम्मानित किया गया, जिसमें 18 विक्टोरिया और जॉर्ज क्रॉस पुरस्कार भी शामिल थे। विजय दिवस परेड में हिस्सा लेने वाले सैन्‍य दल की टुकड़ी का नेतृत्व सिख लाइट इन्फैंट्री रेजिमेंट के एक बड़े रैंक के अधिकारी ने किया। दरअसल, इसी रेजिमेंट ने द्वितीय विश्व युद्ध में बहुत बहादुरी के साथ लड़ाई लड़ी थी और इसे कई पुरस्कार मिले थे।

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