… ‘कूल’ दिखने के चक्कर में ड्रग्स की चपेट में आ रहा उत्तराखंड का युवा

… ‘कूल’ दिखने के चक्कर में ड्रग्स की चपेट में आ रहा उत्तराखंड का युवा

उत्तराखंड में ड्रग्स का कारोबार किस तरह पैर पसार चुका है, आने वाले समय में यह कितनी बड़ी चुनौती बनने जा रहा है, युवाओं को ड्रग्स की गिरफ्त में आने से कैसे रोका जा सकता है, हिल-मेल टीवी के लाइव शो ‘बात उत्तराखंड की’ में इस पर विस्तार से हुई चर्चा…।

उत्तराखंड के युवा तेजी से नशे की गिरफ्त में आ रहे हैं। ‘कूल’ दिखने की होड़ ने युवाओं के एक बड़े हिस्से को ऐसे अंधेरे में धकेलना शुरू कर दिया है, जहां से निकलना आसान नहीं है। ड्रग्स का फैलता काला कारोबार कितनी बड़ी चुनौती बनता जा रहा है, क्या ड्रग्स की गिरफ्त में जा रहे युवाओं को महज पुलिसिंग से रोका जा सकता है। राज्य में डीजी (कानून-व्यवस्था) अशोक कुमार, पूर्व डीजीपी आलोक लाल, भाजयुमो की राष्ट्रीय को-मीडिया इंचार्ज नेहा जोशी और सामाजिक कार्यकर्ता और हाई कोर्ट अधिवक्ता अभिजय नेगी  ने हिल-मेल के मंच से उत्तराखंड में फैलते नशे के जाल तथा युवाओं को इससे बचाने की उपायों पर खुलकर अपनी बात रखी।

ड्रग्स का कारोबार बढ़ा लेकिन रोकने की कोशिशें भी तेज हुईं: अशोक कुमार

उत्तराखंड पुलिस के डीजी कानून-व्यवस्था अशोक कुमार कहते हैं कि पहले नशे का कारोबार पंजाब सीमा तक सीमित था, लेकिन अब यह पूरे देश में फैल रहा है। इसे आगे बढ़ाने में बहुत सी चीजों का रोल रहता है। दोस्ती के नाम पर शुरू हो जाता है। इसके कई सामाजिक पहलू हैं। अगर हम पुलिस के एंगल से देखें तो दो पक्ष मिलते हैं- सप्लाई और डिमांड। अब कैसे हम पेडलर्स के खिलाफ ज्यादा निगरानी बढ़ाकर एक्शन लेकर सप्लाई को रोक सकते हैं वहीं, डिमांड साइड को देखें तो इसे रोकने के लिए युवाओं की ऊर्जा को हमें पॉजिटिव चीजों की ओर लगाना होगा। युवाओं को क्रिएटिविटी की ओर बढ़ाना होगा, जो निगेटिविटी की ओर जा रहे हैं।

 

उन्होंने कहा कि शुरुआत में तो ड्रग एडिक्ट पीड़ित होते हैं क्योंकि कोई पेडलर उन्हें अपना निशाना बनाते हुए सामान बेच रहा है। पर धीरे-धीरे वो हार्डकोर ड्रग्स एडिक्ट बन जाते हैं तो वह क्रिमिनल बनने लगते हैं। पहले वह जरूरतें पूरी करने के लिए फीस आदि को यूज करता है, जब वह खत्म हो जाती है तो घर का सामान चुराने लगता है और फिर जब ऐसे रास्ते भी बंद हो जाते हैं तो वह चोरी और दूसरे अपराध करने शुरू कर देता है। कुछ लोग करियर के तौर पर ड्रग पैडलिंग करने लग जाते हैं। ड्रग एडिक्ट को वापस मुख्यधारा में लाना इतना आसान नहीं है। इसके बहुआयामी पक्ष हैं जिस पर सबको काम करने की जरूरत है। पुलिसिंग फाइनल सल्यूशन नहीं है, समाज के हर वर्ग को इसके लिए साथ आना होगा।

एक सवाल के जवाब में अशोक कुमार ने कहा कि प्रदेश में ड्रग्स का कारोबार बढ़ा है लेकिन उसे रोकने के लिए प्रयास भी तेज हुए हैं। एक एंटी-ड्रग्स टास्क फोर्स बनाई गई है, जो स्टेट और जिले स्तर पर भी है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में तीन तरह के ड्रग्स हैं- अफीम पर आधारित, चरस पर आधारित और सिंथेटिक। इसमें बहुत कुछ सप्लाई बरेली की तरफ से आती है। वहां से भी कई ड्रग पैडलर्स को पकड़ा गया है।

ड्रग एडिक्ट को अपराधी न मानें: आलोक लाल

पूर्व डीजीपी उत्तराखंड आलोक लाल के मुताबिक, ड्रग्स की समस्या केवल पुलिस या कानून की समस्या नहीं है। यह समझना होगा कि हर कोई ड्रग्स एडिक्ट नहीं बन जाता है। ये ऐसे लोग होते हैं जिनमें पहले से कोई झुकाव होता है। इसे एक बीमारी के तौर पर लेकर इसका इलाज करना जरूरी है। इसमें किसी ड्रग्स एडिक्ट को अपराधी की तरह ट्रीट नहीं करना चाहिए। हमें उसकी संवेदना, समस्या और परिस्थितियों को समझते हुए अपने प्रयास करने चाहिए। जहां तक पुलिस की बात है तो वह सप्लाई को रोकने में अपना प्रयास कर सकती है। पुलिस के दखल से सप्लाई ही रोकी जा सकती है। समाज के प्रयासों, शिक्षित करके ग्राहक में बदलाव आने चाहिए जिससे डिमांड को हतोत्साहित किया जा सकता है। मैंने करीब 250 वर्कशॉप देहरादून में की हैं, स्कूली बच्चों के बीच, उनसे बात की, अभिभावकों से बात की, ऐसे लोगों से बात की जो दवा की दुकान चला रहे हैं और ऐसी दवाएं भी बच्चों को दे रहे हैं, जिसके बारे में उन्हें पता है कि इसका दुरुपयोग होने वाला है। इस समस्या से निपटने के लिए सभी को आगे आना होगा, पुलिस को समाज को भी देखना होगा कि वह कैसे एडिक्ट को कैसे रोक सकती है। वो क्या सामाजिक कारण हैं जिसकी वजह से कोई बच्चा ड्रग्स की तरफ बढ़ता है। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि जब हमारे स्कूल मानेंगे कि बच्चे ड्रग्स की दिशा में बढ़ रहे हैं तो वे इससे निपटने के लिए प्रयास करेंगे। लेकिन स्कूल अपने बच्चों के बारे में जानकारी छिपा लेंगे तो फिर इसका ठीक होना बड़ा मुश्किल है।

नशे को कूल समझने की चूक कर रहे युवा: नेहा जोशी

युवा नेता और सामाजिक कार्यकर्ता नेहा जोशी का मानना है कि इस समस्या को पुलिस के नजरिए से नहीं बल्कि एक बड़े सामाजिक समस्या के तौर पर देखना होगा। हमें समझना होगा कि मांग कहां से आ रहा है। कौन हैं ये बच्चे, जो नशे की गिरफ्त में आ रहे हैं।  कुमाऊं विश्वविद्यालय की एक क्षेत्र में की गई स्टडी से पता चला कि 12 से 18 साल की उम्र के बच्चे ड्रग एडिक्ट बन रहे थे। इसमें ज्यादातर बच्चे मध्यम वर्ग के थे। यह परेशानी स्कूल और कॉलेजों तक पहुंच चुकी है। एक बड़ा संगठित अपराध हो गया है ड्रग्स का। इसका जो मार्केट है उसने सोशल मीडिया और अन्य तकनीकी का बहुत ही जबरदस्त तरीके से इस्तेमाल किया है। नशे को एक ‘कूल नेस’ से जोड़ा गया है। जब कोई बच्चा हुक्का बार जाते साथियों को देखता है तो उसे रुचि बढ़ जाती है। कार्यक्रम में शामिल अभिजय नेगी का उदाहरण देते हुए नेहा ने कहा कि क्यों ऐसा नहीं हो पाया कि अविजय नेगी जो हर संडे को सफाई अभियान चलाते हैं, उनके काम को देखकर बच्चे कूलनेस फील नहीं कर रहे हैं। इसे कानून-व्यवस्था की परेशानी के तौर पर जब तक हम इसे देखेंगे, यह दूर नहीं होने वाली, इससे निपटने के लिए हमें खुद आगे आना होगा।

दिखावे में बर्बाद हो रही युवा पीढ़ी: अभिजय नेगी

हाई कोर्ट के अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता अभिजय नेगी कहते हैं कि उत्तराखंडी युवा सीधा होता है, अपने आप से वह नशे की ओर अग्रसर हो रहा है, ऐसे बहुत कम होता है। यह पीयर प्रेशर से पैदा होने वाली चीज है। आज देहरादून में विदेशी नागरिक भी हैं और दूसरे राज्यों से आए लोग भी हैं। सबके कल्चर एक दूसरे में मिल रहे हैं। इस समय उत्तराखंड का युवा भी ड्रग्स, सिगरेट और ऐसी चीजों को अपनाने में खुद को कूल मानने की भूल कर रहा है। साफ-सफाई, मदद करना, पेड़-पौधे लगाना या दूसरे जन हित के कार्यों को बूढ़े लोगों से जोड़ा जाता है। युवाओं के लिए माना जाता है कि उन्हें पार्टी करनी है, मजे करना है और न सिर्फ मौज-मस्ती करनी है बल्कि ऐसा करते हुए दिखना भी है। यह एक तरह की इमेज बिल्डिंग होती है। जब आप किसी खुद ऐसा करेंगे तो दूसरे दोस्त को चुनौती दे सकेंगे, उसे दिखा सकेंगे। इसी तरीके से देखिए ट्रैफिक में सभी गाड़ियां खड़ी होती हैं पर दो युवा बाइक पर तेजी से निकल जाते हैं क्योंकि उन्हें दिखाना होता है कि देखिए हम कुछ अलग हैं। सब दिखावे में ही बर्बाद हो रहे हैं।

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