IMA की चारदीवारी के पास रहकर बुना ख्वाब, बीटेक के बाद हकीकत में बदला

IMA की चारदीवारी के पास रहकर बुना ख्वाब, बीटेक के बाद हकीकत में बदला

उत्तराखंड के देहरादून स्थित आईएमए की परेड में अपने बेटों को अंतिम पग पार कर सेना का अफसर बनते अपनी आंख से देखने का सपना कई माता-पिता अधूरा रह गया। कोरोना के कारण वे आईएमए की पासिंग आउट परेड में शामिल नहीं हो पाएंगे।

उत्तराखंड के चमोली जिले का बिनायक गांव। पिता ने सेना में नायब सूबेदार के तौर पर देश की सेवा की। गांव के लगभग हर घर से लोग फौज में हैं लेकिन बचपन से एक बच्चे ने सपना बुना था कि फौज में एक दिन अफसर बनूंगा। अब वह सपना हकीकत बन चुका है। पिता अब रिटायर हो चुके हैं, पर कहते हैं कि अगर फौज में होता तो बेटे को आज सैल्यूट करता क्योंकि वह मेरे से ऊपर रैंक पर पहुंचा है।

बीटेक किए हीरा सिंह रावत के सेना में अफसर बनने की यह प्रेरक कहानी है। उनका पूरा परिवार भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) से महज 800 मीटर की दूरी पर रहता है। IMA से करीब रहते हुए ही उनके मन में सेना में जाने की इच्छा पैदा हुई थी। आज उन्होंने साबित कर दिया है कि अपने मां-बाप, परिवार और पूरे गांव और देश-प्रदेश के लिए वह सच में ‘हीरा’ हैं।

आर्मी एविएशन कोर में जा रहे हीरा

आईएमए से सटे प्रेमनगर के विंग नंबर-सात में रहने वाले सेना के रिटायर नायब सूबेदार मोहन सिंह रावत ने ‘हिल मेल’ से बातचीत में अपने बेटे के बारे में बताया। वह मूलरूप से चमोली जिले के नारायणबगड़ ब्लॉक के बिनायक गांव के रहने वाले हैं। उनका बेटा हीरा इस बार आईएमए से पास आउट होकर बतौर लेफ्टिनेंट सेना में शामिल होने जा रहा है। उसे आर्मी एविएशन कोर में कमीशन प्राप्त हो रहा है।

पिता, दादा और नाना भी फौज में

हीरा के पिता, दादा और नाना भी फौज में थे। केंद्रीय विद्यालय आईएमए से दसवीं व 12वीं की पढ़ाई करने के बाद हीरा ने आगरा स्थित दयालबाग इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक किया था। इसके बाद उनका सिलेक्शन टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज में हो चुका था लेकिन ज्वाइन करने से ठीक पहले सेना से बुलावा आ गया।

मोहन बताते हैं कि बेटे ने बीटेक अच्छे नंबरों से पास किया लेकिन दिल के एक कोने में सेना में जाने का वो सपना उसे चैन से नहीं रहने देता। हीरा ने मल्टीनेशनल कंपनी के जॉब को ठुकरा कर अपने परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए सेना ज्वाइन करने को तरजीह दी।

पीओपी के लिए सिला लिए कपड़े पर…

अपने लाडले की खुशियों में शामिल होने की ख्वाहिश हर मां—बाप की रहती है। लेकिन इस कोरोना काल में बेटे को पासिंग आउट परेड में देखने का सपना मोहन सिंह रावत का धरा का धरा रह गया। वह बताते हैं कि उन्होंने इसके लिए कपड़े आदि की तैयारी कर ली थी पर कोरोना संकट ने सब पर पानी फेर दिया। हीरा की बहन को ऑस्ट्रेलिया जाना था लेकिन उन्होंने उसे स्थगित कर दिया क्योंकि वह अपने भाई के कंधों पर अपना हाथ से सितारे लगाना चाहती थी लेकिन अब यह संभव नहीं।

आपको बता दें कि भारतीय सैन्य अकादमी में साल में दो बार यानी जून व दिसंबर में आयोजित होने वाली पासिंग आउट परेड में परिजनों को उस वक्त का इंतजार रहता है जबकि वह अपने हाथों से अपने लाडले के कंधों पर पीप्स (सितारे) चढ़ा सके। हालांकि कोरोना संक्रमण के कारण इस बार घरवालों को पीओपी देखने के लिए सैन्य अकादमी पहुंचने की अनुमति नहीं है।

मोहन सिंह कहते हैं कि यह उनके ज्यादा दुख की बात है कि आईएमए की चारदीवारी से कुछ कदमों की दूरी पर होने के बाद भी वह अपने लाडले की खुशी में शामिल नहीं हो पाएंगे।

छुट्टी पर आएगा बेटा तब पूरी करेंगे मन की मुराद

सेना के रिटायर नायब सूबेदार मोहन सिंह रावत बताते हैं कि उन्हें अपने बेटे की कामयाबी पर खुशी है। गर्व इस बात का भी है कि दादा, नाना और पिता के बाद बेटा भी अब देशसेवा करने जा रहा है। उन्होंने कहा कि बेटा यूनिट से छुट्टी लेकर जब घर आएगा तो जरूर वह (मां—पिता) अपने हाथों से रस्मी तौर पर बेटे के कंधों पर पीप्स चढ़ाएंगे। फिलहाल पीओपी को वह टीवी पर लाइव देखेंगे।

आपको बता दें कि इस बार अकादमी से पास आउट होने के बाद सभी कैडेट सात दिन की छुट्टी के बजाय सीधे अपनी—अपनी यूनिट ज्वाइन करने के लिए रवाना होंगे।

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