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कुमाऊं विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर की दो महान हस्तियों को इस बार के दीक्षा समारोह में मानद उपाधि से सम्मनित किया है इनमें एक हैं आईएएस भास्कर खुल्बे और दूसरे पद्मश्री डॉ गोवर्धन मेहता।
READ MOREगांवों में रह रही वर्तमान पीढ़ी की बात करें तो गांवों में बच्चों की संख्या बहुत कम होती जा रही है। बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए लोग गांवों के निकट ही शहरों की ओर पलायन कर गए हैं। कुछ लोग अपनी सामर्थ्यानुसार शहरों, महानगरों की ओर चले गए हैं और वहीं अपनी नौकरी या रोजगार भी कर रहे हैं।
READ MOREभांग उत्तराखंड पर्वतीय अंचल की पारंपरिक धरोहर रही है। वेदों में इस पौंधे के तत्वों का विभिन्न प्रकार के कार्यो में उपयोग किए जाने का वर्णन है। पारंपरिक खानपान व औषध में यह बहुत उपयोगी रहा है। सब्जी, दूध, नमक, चटनी इत्यादि में लगभग उपयोग में लाया जाता रहा है। अंग्रेजी में इन प्रजातियों को रुडालिस, इंडिका व सतीबा नाम से जाना जाता है।
READ MOREकेंद्रीय रक्षा एवं पर्यटन राज्य मंत्री नैनीताल उधम सिंह नगर संसदीय क्षेत्र के सांसद अजय भट्ट के अथक प्रयासों से वर्षो से लंबित और लाखों लोगों को पेयजल व सिंचाई के संकट को दूर करने वाली बहु प्रतीक्षित जमरानी बांध परियोजना को केंद्रीय कैबिनेट से हरी झंडी मिल गई है।
READ MOREप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 अक्टूबर को उत्तराखंड दौरे पर आ रहे हैं, इस दौरान वह पार्वती कुंड, जागेश्वर धाम में पूजा अर्चना करेंगे और सेना, आईटीबीपी, बीआरओ कर्मियों के साथ स्थानीय लोगों से भी मुलाकात करेंगे।
READ MOREउत्तराखंड में स्थापित रहे सभी राजवंशों मे देवी मां नंदा की अनेको अलग-अलग कहानियां जनमानस के मध्य प्रचलित रही हैं। लोककथाओं में देवी नंदा को हिमालय पुत्री कहा गया है। नव दुर्गाओं में से एक माना जाता है। हिमालय का नंदा पर्वत मायका व कैलाश पर्वत ससुराल माना जाता है। नंदा को राज राजेश्वरी भी कहा जाता है। गढ़वाल अंचल के पंवार राजाओं के साथ-साथ कुमांऊ अंचल के कत्युरी राजवंश और चंद राजाओं की ईष्ट व कुलदेवी के रूप में देवी मां नंदा को जाना जाता है।
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उत्तराखंड के अल्मोड़ा के गंगोला बाजार में एक छोटा सा मंदिर है इस मंदिर में हुक्का रखा गया है। बता दें कि इसे खमसिल बुबु का मंदिर कहते हैं। खमसिल बुबु का यह मंदिर लगभग 150 साल पुराना हैं।
READ MOREउत्तराखंड के जंगल दिन प्रतिदिन वनाग्नि का शिकार होते जा रहे हैं। कई हैक्टेयर जमीन/जंगल आग के हवाले हो चुके है। हालात यह है की यह आग अब सिर्फ जंगली जानवरों, औषधियों और संसाधनों के लिए ही नही बल्कि मानव की मृत्यु का भी कारण बन चुकी है।
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