7 फरवरी को आपदा के कुछ दिन बाद पता चला था कि ऊंचाई पर एक झील बन गई है। एक विशेषज्ञ ने तस्वीरें शेयर की तो प्रशासन और दूसरे वैज्ञानिक वहां पहुंचे। हालांकि झील की गहराई मापे बिना आगे का कदम उठाना मुश्किल है। देखिए IAF की टीम ने कैसा अभियान चलाया…
चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने के बाद आई आपदा के बाद भी क्या खतरा बना हुआ है? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि अचानक आई बाढ़ के बाद ऋषिगंगा नदी पर मलबे से झील बन गई है। पिछले कुछ दिनों में इसकी जांच की गई पर अब भारतीय नौसेना की टीम यहां तैनात हो गई है। नौसेना के गोताखार झील में उतरकर इसकी गहराई जांच रहे हैं। तपोवन से 5 किमी ऊपर की तरफ इस झील का निर्माण हुआ है।
रविवार को नौसेना के ऑपरेशन की कुछ तस्वीरें भी सामने आई हैं। समुद्र तल से करीब 14000 फीट की ऊंचाई पर हेलिकॉप्टर की मदद से नौसेना के गोताखोर इस झील में उतरे हैं।
नौसेना के गोताखोरों द्वारा जुटाए गए महत्वपूर्ण डाटा का इस्तेमाल वैज्ञानिक करेंगे और झील की मिट्टी की दीवारों के प्रेशर को समझेंगे। नौसेना के गोताखोरों ने यह चुनौतीपूर्ण काम अपने हाथों में लिया। वे हाथ में इको साउंडर (गहराई नापने का उपकरण) लेकर झील में उतरे।
इस पूरे ऑपरेशन के दौरान IAF पायलट ने मुश्किल इलाके में बिल्कुल सटीक पोजीशन बनाए रखी। 7 फरवरी को ऋषिगंगा और धौलीगंगा में आए उफान से रैणी से लेकर तपोवन तक भारी तबाही मची थी।
वैज्ञानिकों की टीम इस झील से बने खतरों का अध्ययन कर रही है लेकिन झील की गहराई को लेकर अनिश्चिचतता बनी हुई है। यह पानी का जमाव प्राकृतिक न होने के कारण प्रशासन स्थिति को समझने के लिए गहराई जानना चाहता है जिससे आगे का फैसला लिया जा सके। सड़क से जुड़े न होने के कारण IAF की टीम हेलिकॉप्टर से यहां आई।
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