उत्तराखंड के लोग जो लौट रहे हैं उनकी मजबूरी है कि लॉकडाउन से कामकाज बंद हुआ तो उनके पास कमरे का किराया देने के भी पैसे नहीं है। ऐसे में अपने गांव लौटने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है। ई-रैबार में विशेषज्ञों ने वो रास्ते सुझाए जिससे पहाड़ में ही इन लोगों को आगे रोका जा सकता है।
कोरोना को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन लागू किया गया तो उसका नकारात्मक असर यह हुआ कि बड़ी संख्या में लोगों के रोजगार छिन गए। ऐसे में कोरोना से लोगों की जान बचाने के साथ ही सरकार के सामने रोजगार मुहैया कराने की चुनौती है। ऐसे में हिल मेल टीवी के लाइव शो ‘ई-रैबार’ में हमने लॉकडाउन के बाद उत्तराखंड में रोजगार के क्षेत्र विषय पर बात करने के लिए विशेषज्ञों को आमंत्रित किया और यह समझने की कोशिश की कि वो कौन से क्षेत्र हैं जिसमें पहाड़ के युवाओं के लिए रास्ते खुल सकते हैं।
कार्यक्रम में शामिल हुए स्वामी रामा हिमालयन यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर और पूर्व चेयरमैन सीआईआई, उत्तराखंड डॉ. विजय धस्माना, ओएनजीसी एकेडमी के प्रमुख मनोज बड़थ्वाल और उद्योगपति हर्षपाल सिंह चौधरी। डॉ. विजय धस्माना ने कहा कि जिस मकसद के लिए उत्तराखंड बना था कि पहाड़ के जिलों में लोग रुके, रोजगार मिले, संपन्नता बढ़े लेकिन नीचे के जिलों की ओर पलायन बढ़ गया। अलग राज्य बनने के बाद बिजली, संचार आदि की व्यवस्था हो गई पर पेयजल की समस्या बनी हुई है।
विलेज टूरिज्म को बढ़ावा दें तो…
पहाड़ की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए बड़ी कंपनियां वहां नहीं जा रही हैं। ऐसे में लोकल लेवल पर उत्पाद जरूर बनाया और अनाज उगाया जा सकता है। बागवानी, जैविक खेती, पर्यटन, विलेज टूरिज्म को बढ़ावा दिया जाए तो रोजगार की टेंशन दूर हो सकती है। जो लोग जा रहे हैं उन लोगों ने दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहर देखे हैं तो गांव में रहकर वैसी सुविधाएं दें क्योंकि पहाड़ के मूल लोगों को बढ़ावा देना होगा उनकी हैंड होल्डिंग करनी होगी क्योंकि उनका बड़े शहरों का एक्सपोजर नहीं है।
इंटरनेट का रोजगार से सीधा कनेक्शन
ओएनजीसी एकेडमी के प्रमुख मनोज बड़थ्वाल ने कहा कि इस आपदा के पीछे हमारे सामने एक अवसर भी आया है। जो लोग रोजगार की तलाश में पहाड़ से चले गए थे वे वापस आए हैं। एक बहुत बड़ा टैलेंट पूल वापस आया है। अब लोगों को पहाड़ की ओर आकर्षण पैदा हो रहा है। ऐसे में लोगों में अब दूरदराज की ओर जाने की रुचि बढ़ रही है।
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आज के समय में एक बहुत अच्छा इंटरनेट तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है। अगर इस लॉकडाउन में ऑनलाइन व्यवस्था न होती तो हम इस तरह बात न कर पाते। मेरा मानना है कि टैलेंट पूल का डाटाबेस बनाया जाए और दूरदराज के क्षेत्रों में मजबूत इंटरनेट फैसिलिटी को बढ़ावा दिया जाए। सरकार इंटरनेट, कम्युनिटी टीवी और कंप्यूटर की व्यवस्था कराए। बड़ी-बड़ी कंपनियां फेसबुक, गूगल ने कहा है कि कर्मचारी अगले 1-2 साल तक अपने घरों से काम करेंगे। टैलंट पूल को पहाड़ में रोकने के लिए उनकी रोजगार की समस्या पर फोकस करने की जरूरत है।
रोजगार यहां भी है बस माइंडसेट बदलने की जरूरत
उद्योगपति हर्षपाल सिंह चौधरी ने 11 साल पहले अपनी फैक्ट्री गुजरात से निकालकर पौड़ी-गढ़वाल में स्थापित की। 11 साल का अनुभव शेयर करते हुए हर्षपाल ने कहा कि यहां से पलायन करने वाले लोगों की जरूरतें और मजबूरियां थीं। लोगों ने तमाम क्षेत्रों में नाम कमाए लेकिन अगर आप पूछें कि आप वापस उत्तराखंड में लौटना चाहते हैं तो जवाब नहीं मिलता है। जो लोग परिवार समेत इस संकट में लौट आए हैं, उनकी मजबूरी है। अब सवाल है कि जो लोग आए हैं अपनी इच्छा से यहां रहना चाहेंगे। उनका माइंडसेट समझने की जरूरत नहीं है। हमने 11 साल पहले गांव की बंजर भूमि में फैक्ट्री लगाई और आज 200 परिवार उस कंपनी से जुड़े हैं। यहां भी संभावनाएं हैं बस माइंडसेट बदलने की जरूरत है।
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