नए परिसीमन की आहट से क्यों टेंशन में पहाड़ के लोग, समझें उत्तराखंड में बीजेपी कैसे साध रही समीकरण

नए परिसीमन की आहट से क्यों टेंशन में पहाड़ के लोग, समझें उत्तराखंड में बीजेपी कैसे साध रही समीकरण

उत्तराखंड में सीएम और बीजेपी के अध्यक्ष बदले हैं। 2022 में चुनाव होने हैं पर उसी साल राज्य में परिसीमन भी होना है। ऐसे में बीजेपी किस फॉर्मुले पर आगे बढ़ रही है। आइए समझते हैं, साथ यह भी जानने की कोशिश करते हैं कि परिसीमन की आहट से पहाड़ के लोगों की मांग क्या है?

उत्तराखंड में सीएम और बीजेपी के अध्यक्ष बदले तो क्यों-कैसे पर तमाम चर्चाएं हो चुकी हैं। दरअसल, पहाड़ बनाम मैदान के संतुलन को साधना बीजेपी का लक्ष्य है। साथ ही 2022 में होने वाले नए परिसीमन पर भी पार्टी अभी से फोकस कर रही है। जी हां, बताया जा रहा है कि 2022 में विधानसभा और लोकसभा सीटों का नया परिसीमन किया जाएगा। ऐसे में आबादी के लिहाज से मैदानी क्षेत्रों में विधानसभा सीटें बढ़ने की पूरी संभावना है।

पहाड़ और मैदानी इलाकों में जिधर सीटें ज्यादा उधर फोकस भी ज्यादा। आपको जानकर आश्चर्य होगा पर बीजेपी के ये फैसले 2022 के साथ-साथ 2027 के चुनाव के लिहाज से भी बड़ा कदम है। वह चुनाव नए परिसीमन के तहत होगा और तब मैदानी इलाकों में ज्यादा सीटें होने के कारण बीजेपी के पास एक बड़ा चेहरा भी होगा। शायद यह सब सोचकर ही BJP ने मदन कौशिक को पार्टी का अध्यक्ष बनाया है।

हरक सिंह रावत ने CM तीरथ को कोटद्वार सीट की ऑफर, पर बदले में…

इससे पहले परिसीमन 2008 में हुआ था तब पहाड़ी क्षेत्रों की आबादी घटने के कारण पहाड़ के 9 जिलों की विधानसभा सीटें 40 से सिमटकर 34 और मैदान की सीटें 30 से बढ़कर 36 हो गई थीं।

2022 का परिसीमन अगर आबादी के आधार पर होता है तो यह तय है कि पहाड़ी जिलों की सीटें काफी घट जाएंगी। इसकी वजह सबको पता है, पहाड़ से सबसे ज्यादा पलायन होता है।

उत्तराखंड में फिर से डराने लगा कोरोना, मसूरी में पूर्ण लॉकडाउन के आदेश

अब अगर परिसीमन का इतिहास खंगालें तो 2008 में राज्य में एक लाख की आबादी पर विधानसभा सीटों का निर्धारण किया गया था। 9 पर्वतीय जिलों में 40 विधानसभा सीटें और चार मैदानी जिलों में 30 सीटें हैं। पर्वतीय राज्य की परिकल्पना का संरक्षण करने वाले लोग मानते हैं कि अगर पहाड़ की आबादी कम होने के कारण सीटें कम होती हैं तो इसका वर्चस्व खत्म हो जाएगा।

आपको बता दें कि नया प्रदेश बनने के पहले से पर्वतीय राज्य की मांग का मकसद पहाड़ी क्षेत्र को लेकर ही था। अब अगर सीटें कम होती हैं तो लोगों में नाराजगी भी पैदा हो सकती है। प्रस्तावित परिसीमन को लेकर आबादी की जगह भौगोलिक क्षेत्रफल को आधार बनाने की मांग भी होने लगी है।

बीजेपी ने पहली बार पर्वतीय प्रदेश में संगठन की कमान मैदानी क्षेत्र के चेहरे को दी है। यह एक दांव या प्रयोग भी कहा जा रहा है। परिसीमन को जोड़कर इस फैसले को देखें तो पता चलता है कि बीजेपी ने मैदानी क्षेत्र में विधानसभा सीटें साधने के लिए यह पहले से तैयारी की है।

चमोली के इराणी गांव से दर्दनाक खबर: ऊबड़ृ-खाबड़ रास्तों से समय पर नहीं पहुंच सके अस्पताल, 2 लोगों ने दम तोड़ा

Hill Mail
ADMINISTRATOR
PROFILE

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked with *

विज्ञापन

[fvplayer id=”10″]

Latest Posts

Follow Us

Previous Next
Close
Test Caption
Test Description goes like this