2014 से अब तक नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में कई ऐसे लम्हे आए जब भारतीयों ने महसूस किया कि एक ताकतवर देश होना क्यों जरूरी है, क्यों दक्षिण एशिया में शांति के लिए भारत को शक्तिशाली बनना होगा। ऐसे में मोदी सरकार की कूटनीतिक सफलताओं का तानाबाना बुनने का श्रेय एनएसए अजीत डोभाल को जाता है।
आने वाले समय में देश के सामने किस तरह के खतरे होंगे? दुश्मन देशों के ‘चक्रव्यूह’ का तोड़ क्या है, भारत पर होने वाले किसी भी वार का पलटवार क्या होगा, इन सभी सवालों का एक ही जवाब है, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल। हर संभावित खतरे से निपटने की रणनीति तैयार रखने की कला उन्हें बेजोड़ बनाती है।
20 जनवरी, 1945 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में जन्मे अजीत डोभाल साल 1968 के केरल कैडर के आईपीएस अधिकारी रहे। 1972 में भारत की खुफिया एजेंसी आईबी से जुड़ने के बाद उन्होंने कई ऐसे खतरनाक कारनामों को अंजाम दिया है, जिन्हें सुनकर जेम्स बांड के किस्से भी फीके लगने लगते हैं। वे भारत के एकमात्र ऐसे नागरिक हैं, जिन्हें सैन्य सम्मान कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान पाने वाले वह पहले पुलिस अधिकारी हैं। कोरोना संकट में जब अमेरिका भारत में बनने वाली वैक्सीन के रॉ मैटिरियल को देने में आनाकानी कर रहा था तो डोभाल ही थे, जिन्होंने अमेरिकी प्रशासन को इसके लिए राजी किया। यही नहीं अफगानिस्तान संकट के बाद डोभाल अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और सुरक्षा नीति के केंद्र बन गए थे। कई देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों ने अजीत डोभाल से बात की थी।
साल 2019 में मोदी सरकार की केंद्र में वापसी के साथ ही उन्हें फिर पांच साल के लिए एनएसए की जिम्मेदारी दी गई। भारतीयों में राष्ट्रवाद की भावना का नए सिरे से संचार करने की रणनीति का चाणक्य एनएसए अजीत डोभाल को माना जाता है। लद्दाख में घुसने की फिराक में बैठे चीन ने कभी यह उम्मीद नहीं की होगी कि भारत इतनी मजबूती से उसे जवाब देगा। गलवान की घटना के बाद भारत की रक्षा तैयारियों से चीन हैरान है, इसकी रणनीति तैयार करने में एनएसए डोभाल की अहम भूमिका रही। यही नहीं वह भारत की अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का अहम हिस्सा हैं। नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के सबसे बड़े फैसले जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने को प्रभावी ढंग से धरातल पर उतारकर अजीत डोभाल ने साबित किया कि पीएम मोदी उन इतना भरोसा क्यों करते हैं।
2014 से अब तक नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में कई ऐसे लम्हे आए जब भारतीयों ने महसूस किया कि एक ताकतवर देश होना क्यों जरूरी है, क्यों दक्षिण एशिया में शांति के लिए भारत को शक्तिशाली बनना होगा। ऐसे में मोदी सरकार की कूटनीतिक सफलताओं का तानाबाना बुनने का श्रेय अजीत डोभाल को जाता है। देश के भीतर आतंकियों के नेटवर्क की कमर तोड़नी हो या अंदरूनी-बाहरी सुरक्षा को लेकर देश को अलर्ट मोड में रखना, डोभाल ने सभी को पूरे पेशेवर तरीके से अंजाम दिया।
पाकिस्तान से चीन तक हर मर्ज की दवा
लद्दाख गतिरोध के बाद चीन की किसी भी आक्रामकता पर भारत की प्रतिक्रिया क्या होगी एनएसए डोभाल की टीम के पास इसका पूरा खाका तैयार है। यही वजह है कि भारत ने लद्दाख में जिस तरह से लंबे समय तक जमे रहने की तैयारी की, उसने चीन को हैरान कर दिया। चीन को जवाब सैन्य मोर्चे पर भी दिया जा रहा है और कूटनीतिक तरीके से भी। फिर चाहे वह पड़ोसी देशों केसाथ निरंतर संपर्क हो या अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की नौसेनाओं के साथ मालाबार अभ्यास। शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन के सदस्य देशों के एनएसए स्तर की वर्चुअल बैठक में पाकिस्तान के गलत नक्शा दिखाने पर अजीत डोभाल का वॉकआउट साल 2020 की सुर्खियां बना। देश के भीतर आतंकियों के नेटवर्क को ध्वस्त करना हो या अंदरूनी-बाहरी सुरक्षा को लेकर देश को अलर्ट मोड में रखना, डोभाल ने सभी को पूरे पेशेवर तरीके से अंजाम दिया। डोभाल का काम ही उनकी पहचान है।
पौड़ी के घीड़ी गांव में हुआ जन्म
अजीत डोभाल का जन्म 20 जनवरी 1945 को उत्तराखंड राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले के बनेलस्यूं पट्टी के घीड़ी गांव में हुआ। एनएसए डोभाल परिवार के साथ कुल देवी की पूजा करने के लिए निरंतर अपने गांव आते रहते हैं। वह 1968 के केरल बैच के आईपीएस अधिकारी रहे हैं। जनवरी 2005 में खुफिया ब्यूरो के प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त हुए डोभाल को 1988 में कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया। वह इस मेडल को प्राप्त करने वाले पहले पुलिस अधिकारी हैं। इससे पहले यह सम्मान सिर्फ सैन्यकर्मियों को दिया जाता था। एनएसए डोभाल का करियर कई हैरतअंगेज कारनामों से भरा पड़ा है। यही वजह है कि भारतीयों के मन में उनकी छवि ‘जेम्स बांड’ की है।
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