हिल मेल की ई-रैबार पहल में बुधवार 29 अप्रैल को उत्तराखंड में टेक्नोलॉजी का भविष्य और लॉकडाउन के बाद रोजगार के क्षेत्र पर चर्चा गई है। एनटीआरओ और रॉ के पूर्व प्रमुख आलोक जोशी ने तकनीक के इस्तेमाल को लेकर महत्वपूर्ण बातें रखीं।
एनटीआरओ और रॉ के पूर्व प्रमुख आलोक जोशी ने हिल-मेल ई-रैबार लाइव चर्चा के सिलसिले को बुधवार को आगे बढ़ाया। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम में एक दिन पहले बागवानी और क्लस्टर खेती के बारे में जो बात की गई है, अगर उसमें तकनीक का प्रभावी इस्तेमाल किया जाए तो बेहतर परिणाम हासिल किए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के उत्पादों की ब्रांड पहचान होना जरूरी है। मार्केटिंग को बेहतर तरीके से करना होगा। लोगों को पता रहे कि सरकार की नीतियां क्या हैं, बाजार की परिस्थितियां पता होनी चाहिए और इसमें इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक बेहतरीन जरिया है। इसे बढ़ावा दिया जाए तो काफी चीजें आसान हो सकती हैं। इसके लिए आईटी का इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत होना चाहिए तभी हम कनेक्टिविटी लोगों को दे पाएंगे।
उन्होंने कहा कि पिछले रैबार में भी मैंने कहा था कि उत्तराखंड जैसे प्रदेश में ड्रोन की टेक्नोलॉजी का उपयोग बहुत ज्यादा होना चाहिए क्योंकि यहां का इलाका ऐसा है, जहां पहुंच होना बड़ा मसला है। देहरादून में ड्रोन एप्लीकेशन रिसर्च सेंटर बनाया गया है। जोशी ने कहा कि मुझे यह देखकर अच्छा लगा कि उत्तराखंड पुलिस ने लॉकडाउन की अवधि के दौरान उसका बहुत बढ़िया इस्तेमाल किया है। उससे आगे बढ़कर देखें तो ड्रोन का इस्तेमाल किया जा सकता है।
आलोक जोशी ने कहा कि हमें इस बात को समझना होगा कि हम गवर्नेंस की जो भी एक्टिविटी कर रहे हों, यह देखना होगा कि टेक्नोलॉजी का किस तरह प्रयोग कर सकते हैं। अगर हम हेल्थ सेक्टर की बात करें तो उत्तराखंड में आज के समय में टेली मेडिसिन सेवा लोगों को आश्वस्त कर सकती है कि राज्य के आखिरी व्यक्ति तक पहुंचने की हममें क्षमता है। उन्होंने कहा कि बात होती है कि लोग वापस उत्तराखंड क्यों नहीं आ रहे हैं, इसकी एक बड़ी वजह सुदूर क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं का न होना है। मेरा खुद का एक अनुभव है कि लोग यही कहते हैं कि हम अगर जाएं और मेडिकल सुविधा नहीं मिलती है तो हमें देहरादून या दिल्ली पलायन करने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं होगा।
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एनटीआरओ के पूर्व प्रमुख ने कहा कि टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बढ़ाकर ही प्रवासी लोगों को आश्वस्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि मुझे पता चला है कि देहरादून से टेली-मेडिसिन का एक प्रोग्राम शुरू हुआ है लेकिन इस चीज को और विकसित करना होगा। टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से