चमोली आपदा की असल वजह क्या थी? JNU, IIT समेत अंतरराष्ट्रीय रिसर्चरों की टीम ने पता लगा लिया

चमोली आपदा की असल वजह क्या थी? JNU, IIT समेत अंतरराष्ट्रीय रिसर्चरों की टीम ने पता लगा लिया

इसी साल फरवरी में चमोली में आई आपदा ने सैकड़ों परिवारों को जिंदगीभर का दर्द दे दिया। 200 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई या उनका कुछ पता नहीं चला। अब दुनिया के टॉप विशेषज्ञों के एक दल ने पता लगा लिया है कि आखिरी चमोली में उस दिन क्या हुआ था? पढ़िए पूरी रिपोर्ट

उत्तराखंड कई आपदाएं झेल चुका है लेकिन हर बार एक नई उम्मीद और जीवन में उत्साह के साथ आगे बढ़ जाता है। कोरोना काल में पिछले दिनों चमोली में अचानक आई बाढ़ से भारी जानमाल का नुकसान हुआ था। कई लोगों का कुछ पता नहीं चला। घरवालों को पता है कि अपने अब नहीं आएंगे लेकिन एक उम्मीद अब भी जिंदा है। अब एक अंतरराष्ट्रीय रिसर्चरों की टीम ने स्टडी कर पता लगाया है कि फरवरी में चमोली में आई आपदा की असली वजह क्या थी।

2.7 करोड़ क्यूबिक मीटर ग्लेशियर गिरा

तारीख थी सात फरवरी 2021, जगह- चमोली जिला। अध्ययन के मुताबिक चमोली आपदा एक हिमस्खलन का नतीजा थी। पास के ही रोंती पर्वत से 2.7 करोड़ क्यूबिक मीटर की चट्टान और ग्लेशियर गिरा था और फिर तबाही आ गई। इस आपदा में 200 से ज्यादा लोग मारे गए या लापता हो गए।

जब मलबा और पानी रोंती गाड, ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदी घाटियों में गिरा तो अचानक बाढ़ आ गई और अपने साथ सबकुछ बहा ले गई। इस आपदा की वजह और असर का पता लगाने के लिए 53 वैज्ञानिकों का एक अंतरराष्ट्रीय दल काम कर रहा था।

 

जेएनयू, आईआईटी के विशेषज्ञ भी शामिल

समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक रिसर्चरों में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली और आईआईटी, इंदौर के अनुसंधानकर्ता भी शामिल थे। उन्होंने पता लगाया कि चट्टान और हिमनद बर्फ के गिरने से बाढ़ आई।

पत्रिका ‘साइंस’ में प्रकाशित इस अध्ययन से पता लगता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसी घटनाएं ज्यादा हो रही हैं और यह संवेदनशील वातावरण में बढ़ती विकास परियोजनाओं के खतरे को उजागर करती हैं।

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अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि चट्टान और हिमस्खलन तेजी से बड़े मलबे में बदल गए। बताया गया है कि इस रिसर्च से शोधकर्ताओं ही नहीं सरकार को भी इस क्षेत्र में पैदा हो रहे खतरों को बेहतर तरीके से पहचानने में मदद मिलेगी। इस अध्ययन में उपग्रह से ली गई तस्वीरों, भूकंपीय रिकॉर्ड और प्रत्यक्षदर्शियों के वीडियो का इस्तेमाल किया गया।

पढ़िए क्या कहते हैं विशेषज्ञ

वॉशिंगटन विश्वविद्यालय के एक अनुसंधानकर्मी और अध्ययन के सह-लेखक शशांक भूषण ने बताया कि हमने अपने फ्रांसिसी साथियों के साथ घटना के कुछ दिनों के भीतर उपग्रह से ली गई तस्वीरें एकत्रित करने पर काम किया और घटनास्थल का विस्तृत मानचित्र बनाया। अनुसंधानकर्ताओं ने तस्वीरों और मानचित्र की घटना के बाद और पहले के घटनाक्रम से तुलना की जिससे सभी बदलावों और घटनाक्रम का पता लगाया जाए।

कनाडा में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलगरी के सहायक प्रोफेसर एवं अध्ययन के मुख्य लेखक डैन शुगर ने कहा कि हमने एक ढलान पर संदिग्ध काले गुबार पर धूल और पानी के ढेर का पता लगाया। यह काला गुबार हिमस्खलन का 3.5 करोड़ घन गज का हिस्सा निकला।

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