उत्तराखंड के कई स्कूलों, कॉलेजों का पूरे देश में नाम है पर प्राथमिक शिक्षा के लिहाज से अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है। आखिर ऐसा क्या है कि हायर एजुकेशन में तो हम सरकारी संस्थानों में प्रवेश का सपना देखते हैं पर प्राथमिक शिक्षा के लिए प्राइवेट स्कूलों में भागते हैं? ऐसे तमाम सवालों पर चर्चा हुई ई-रैबार में….
हिल मेल की ‘ई-रैबार’ पहल के लाइव मंच पर हर रोज शाम एक नए विषय पर विशेषज्ञों से गहन चर्चा होती है। इस दौरान सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर लोगों को अपने सवाल पूछने का भी भरपूर मौका मिलता है। 11 मई को विषय था- उत्तराखंड, शिक्षा और चुनौतियां (uttarakhand school)। इस पर बात करने के लिए हमारे साथ लाइव जुड़े प्रोफेसर डॉ. एमपीएस बिष्ट, शिक्षाविद्, निदेशक, उत्तराखंड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर, जेएनयू के प्रोफेसर डॉ. एपी डिमरी और अमित अग्रवाल, चेयरमैन, यूनीसन वर्ल्ड स्कूल। कार्यक्रम का संचालन आरजे काव्य ने किया।
प्राइवेट स्कूलों के ड्रेस कोड के पीछे छिपी व्यावसायिक मानसिकता
प्रोफेसर डिमरी ने कहा कि उत्तराखंड पर्वतीय राज्य है और यहां के शिक्षा के मापदंड अलग हो जाते हैं। यहां प्राकृतिक जटिलताएं हैं। प्राथमिक शिक्षा की दयनीय स्थिति पर प्रोफेसर ने कहा कि वह गढ़वाल के काफी सुदूर स्थित विद्यालय में पढ़े हैं। उन्होंने कहा कि 70 के दशक में तब वहां कॉन्वेंट स्कूल का कल्चर शुरू हो रहा था तो लोग बातें करते थे कि प्राइवेट स्कूल में देखो कैसे बच्चे टाई पहनकर जा रहे हैं लेकिन सरकारी स्कूल में बच्चे ऐसे ही जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह समझना होगा कि ड्रेस कोड के सेंस में बहुत सी चीजें छिपी हुई हैं। वे समाज में कैसे एक आकर्षण पैदा कर रही हैं। उसके पीछे एक व्यावसायिक मानसिकता है।
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स्कूलों का वैल्यू सिस्टम घटा है…
यूनीसन वर्ल्ड स्कूल के चेयरमैन अमित अग्रवाल ने कहा कि एक समय उत्तराखंड को तीन चीजों बासमती, लीची और शिक्षा के लिए जाना जाता था। देहरादून के स्कूलों का दुनियाभर में नाम है। पहाड़ी क्षेत्रों में शिक्षा को लेकर काफी चुनौतियां हैं। प्राथमिक शिक्षा के कमजोर होने को लेकर अमित ने कहा कि सरकारी स्कूलों की वैल्यू सिस्टम आज घट गई है। इंटरनेशनल बेस्ड स्कूलों में उस वैल्यू को वापस लाया जा रहा है और हमारी उस वैल्यू का सम्मान हर देश में किया जा रहा है। प्राइवेट स्कूल में वैल्यू आधारित शिक्षा को तरजीह दी जा रही है।
मैदानी और पहाड़ी इलाकों की शिक्षा में अंतर
उत्तराखंड स्पेस एप्लिकेशन सेंटर प्रोफेसर डॉ. एमपीएस बिष्ट ने कहा कि मैदानी और पहाड़ी इलाकों की शिक्षा में काफी अंतर है। वह आर्थिक, तकनीकी और कई प्रकार से अलग है। उन्होंने कहा कि मैंने प्रदेश के कई कॉलेजों और विश्वविद्यालय में विजिट किया है पर बच्चों में वैल्यू सिस्टम कमजोर हो रहा है। उन्होंने कहा कि बच्चे अपने अभिभावक के नाम के आगे ‘श्री’ लगाना भूल गए हैं। गांवों में तकनीक पहुंचने में थोड़ा टाइम लगेगा। गांवों में सरकारी स्कूलों में बच्चे कम आते हैं क्योंकि वहां अध्यापकों एवं अन्य चीजों की कमी है। इसे बदलने की जरूरत है।
अभिभावकों को भरोसे में लेना होगा…
प्रोफेसर डिमरी ने कहा कि विद्यालयों में रिक्त पद शिक्षा में कोई बहुत बड़ी बाध्यताएं नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अगर मैं विश्वविद्यालयों के आंकड़े रखूंगा तो आप चकित रह जाएंगे कि नए-नए आईआईटी पटना, जम्मू को 10-20 प्रतिशत लोग चला रहे हैं। पद भरने से शिक्षा का स्तर बढ़ जाएगा, इसकी गांरटी नहीं ली जा सकती है।
प्रोफेसर बिष्ट ने कहा कि गांव के स्कूलों में भी अच्छे टीचर हैं पर बच्चे आते नहीं है। अभिभावक ही यह फैसला ले सकते हैं कि पहाड़ में सरकारी स्कूलों में पढ़ाएं या दूसरे शहरों में जाकर बच्चों का दाखिला कराएं। इसके लिए उनका माइंडसेट बदलने की जरूरत है और अभिभावकों को यह विश्वास दिलाना होगा कि सरकारी स्कूलों में भी अच्छी पढ़ाई होती है और टीचर काफी अनुभवी हैं।
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