जीत सिंह नेगी के ‘मलेथा की कूल, जीतू बगड्वाल, रामी बोराणी, शाबाश मेरा मोती ढांगा जैसे नाटक आज उत्तराखंड के लोक नाटकों की विरासत हैं। उनकी कई अमर रचनाएं हैं, ‘घास काटी की प्यारी छेला’, ‘पिंगला प्रभात सी।’ उनके बारे में कहा जाता था कि ‘जहां गीत होते, वहां जीत होते।’
उत्तराखंडी लोकसंगीत के शिखर पुरुष मशहूर गीतकार, लोकगायक, रंगकर्मी जीत सिंह नेगी नहीं रहे। उनका 95 वर्ष की आयु में देहरादन के धर्मपुर स्थित आवास में रविवार को निधन हो गया। उनका संपूर्ण जीवन पहाड़ की संस्कृति, भाषा, लोकगीतों, लोक नृत्यों, लोक संगीत के उत्थान को समर्पित रहा।
जीत सिंह नेगी का जन्म पौड़ी की पेडुलस्यूं पट्टी के अयाल में दो फरवरी 1925 को हुआ था। उनकी गीत संगीत की साधना छात्र जीवन से ही शुरू हो गई थी। साल 1942 में उन्हें पौड़ी में स्वरचित गढ़वाली गीतों को गाने की शुरुआत की। 1949 का साल उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण साल साबित हुआ। तब उन्हें यंग इंडिया ग्रामोफोन कंपनी ने मुंबई बुलाया। यह किसी गढ़वाली लोकगायक के लिए अपनी तरह का पहला आमंत्रण था। वहां जीत सिंह नेगी के 6 गीतों की रिकॉर्डिंग हुई।
बताया जाता है कि गढ़वाल भातृ मंडल के आमंत्रण पर 1952 में तत्कालीन बंबई के दामोदर हाल में जब उनके निर्देशन में ‘भारी भूल’ नाटक का मंचन हुआ तो पहाड़ के लोग उमड़ पड़े थे। जीत सिंह नेगी के ‘मलेथा की कूल, जीतू बगड्वाल, रामी बोराणी, शाबाशी मेरा मोती ढांगा जैसे नाटक आज उत्तराखंड के लोक नाटकों की विरासत हैं।
‘दर्जी दिदा मीते तू अंगडी बणे दे।’ उनके इस गीत को उत्तराखंड की मशहूर लोकगायिका रेखा धस्माना ने अपने स्वर दिए। ‘तू होली वीरा ऊंची निसी डांडियों मां घसियारियों का भेस मां।’ परिवार से दूर रहने वाले सैनिकों, जीवन यापन के लिए दूसरे शहरों में गए पहाड़ के लोगों के लिए यह गीत अपनी अनुभूति बन गया। उनकी कई अमर रचनाएं हैं, ‘घास काटी की प्यारी छेला’, ‘पिंगला प्रभात सी।’ उनके बारे में कहा जाता है कि ‘जहां गीत होते, वहां जीत होते।’ जीत सिंह नेगी ने उत्तराखंड के लोकजीवन की अनुभूतियों से अपने गीत लिखे, उन्हें गाया। वह मूलत: गीतकार रहे हैं। लेकिन रंगमंच पर उनका उत्कृष्ट कार्य उन्हें एक अलग मुकाम देता है।
उनकी कई गीत नाटिकाओं का आकाशवाणी के नजीमाबाद, दिल्ली और लखनऊ केंद्र से प्रसारण हुआ। साल 1957 में उन्होंने एचएमबी और 1964 में कोलंबिया ग्रामोफोन कंपनी के लिए अपने आठ गीतों को रिकॉर्ड किया। जीत सिंह नेगी की गढ़वाली भाषा में प्रकाशित रचनाओं में गीत गंगा, जौंल मगरी, छम घुंघुरू बाजला (गीत संग्रह), मलेथा की कूल (गीत नाटिका), भारी भूल (सामाजिक नाटक) शामिल हैं। हालांकि उनकी जीतू बगड्वाल और रामी (गीत नाटिका), पतिव्रता रामी (हिंदी नाटक), राजू पोस्टमैन (एकांकी हिंदी रूपातंर) प्रकाशित नहीं हुई। उन्होंने गढ़वाली फिल्म ‘मेरी प्यारी ब्वै’ के संवाद और गीत भी लिखे।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जताया शोक
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जीत सिंह नेगी के निधन पर शोक जताया है। उन्होंने अपने फेसबुक पर जारी शोक संदेश में कहा, ‘उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध लोकगायक और गीतकार श्री जीत सिंह नेगी जी के निधन का समाचार सुनकर अत्यंत दु:ख हुआ। परमपिता परमेश्वर से दिवंगत आत्मा की शांति एवं शोक संतप्त परिजनों को संबल प्रदान करने की प्रार्थना करता हूं। आपके जाने से लोकसंगीत को अपूर्णीय क्षति हुई है। आप हमारी यादों में सदैव रहोगे, भावभीनी श्रद्धांजलि।’
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