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रोशनी का पर्व दीपावली न सिर्फ हिंदुओं का प्रमुख त्यौहार है, बल्कि यह जैन, बौद्ध और सिख धर्मों में भी बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता हैं। हिन्दू धर्म में मान्यता है कि इस दिन भगवान राम 14 साल के वनवास खत्म कर अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस लौटे थे। तब से दीपावली का यह पर्व अंधकार पर प्रकाश के विजय के रूप में मनाया जाता है।
READ MOREअलकनंदा पत्रिका की शुरूआत वर्ष 1972 में स्व. स्वरूप ढौंढियाल ने दिल्ली में की। इस पत्रिका में प्रकाशित लेखों में अपनी मध्य हिमालय की प्रकृति व पहाड़ों में निवासरत जनमानस के सुख दुःखो का पता चलता है।
READ MOREभारतरत्न पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की जन्मतिथि पर कांस्टीट्यूशन क्लब में, ‘आत्म निर्भर होता भारत’ विषय पर विचार गोष्ठी व ‘अटल कर्मवीर सम्मान-2022’ का भव्य आयोजन किया गया।
READ MOREकेंद्रीय शिक्षा सचिव संजय कुमार और केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण के एक संयुक्त पत्र में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि विश्व स्तर पर सर्वाइकल कैंसर महिलाओं में होने वाला चौथा सबसे आम कैंसर है। भारत में, सर्वाइकल कैंसर महिलाओं में दूसरा सबसे आम कैंसर है और भारत वैश्विक सर्वाइकल कैंसर के बोझ का सबसे बड़ा हिस्सा है।
READ MOREमसूरी में सरकार द्वारा तीन दिन का चिंतन शिविर आयोजित किया गया, जिसमें मुख्यमंत्री, कैबिनेट मंत्री, समेत शासन के मुख्य सचिव और अन्य अधिकारी एकत्रित हुए तथा सरकार की सुशासन के प्रति वचनबद्धता दोहराई गई।
READ MOREप्रकृति की गोद में रची बसी हमारी देवभूमि, अप्रतिम प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है। यहां की जीवन शैली में जल, जंगल, पहाड़ और नदी नालों का विशेष महत्व है। यहां से निकलने वाली नदियां पूरे देश को जीवन प्रदान करती हैं और यहां के जंगलों की हवा जलवायु सरंक्षण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अब हम जल, जंगल, जलवायु, जीवन… को एक सीरीज के रूप में निकाल रहे हैं। इस श्रंखला में हम अपने जल, जंगल को कैसे बचा सकते हैं उस बारे में विस्तृत से बताया जायेगा।
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रोशनी का पर्व दीपावली न सिर्फ हिंदुओं का प्रमुख त्यौहार है, बल्कि यह जैन, बौद्ध और सिख धर्मों में भी बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता हैं। हिन्दू धर्म में मान्यता है कि इस दिन भगवान राम 14 साल के वनवास खत्म कर अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस लौटे थे। तब से दीपावली का यह पर्व अंधकार पर प्रकाश के विजय के रूप में मनाया जाता है।
READ MOREअलकनंदा पत्रिका की शुरूआत वर्ष 1972 में स्व. स्वरूप ढौंढियाल ने दिल्ली में की। इस पत्रिका में प्रकाशित लेखों में अपनी मध्य हिमालय की प्रकृति व पहाड़ों में निवासरत जनमानस के सुख दुःखो का पता चलता है।
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