हिमालय रक्षक- पद्म विभूषण सुंदरलाल बहुगुणा

हिमालय रक्षक- पद्म विभूषण सुंदरलाल बहुगुणा

“क्या है जंगल के उपकार- मिट्टी,पानी और बयार” हिमालय रक्षक- पर्यावरण के लिए अपना जीवन समर्पित करना इतना आसान नही है। लेकिन कुछ ऐसे लोग हमेशा हमारे दिलों में जरूर बसे रह जाते है जिन्होंने न सिर्फ पर्यावरण के लिए काम किया। बल्कि पर्यावरण सरंक्षण

“क्या है जंगल के उपकार- मिट्टी,पानी और बयार”

हिमालय रक्षक-

पर्यावरण के लिए अपना जीवन समर्पित करना इतना आसान नही है। लेकिन कुछ ऐसे लोग हमेशा हमारे दिलों में जरूर बसे रह जाते है जिन्होंने न सिर्फ पर्यावरण के लिए काम किया। बल्कि पर्यावरण सरंक्षण के लिए समय समय पर आंदोलन भी करते है।

उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षण हेतु सबसे बड़ा आंदोलन चिपको आंदोलन माना जाता है। एक ऐसा आंदोलन जिसने गौरा देवी के साहस और पर्यावरण के प्रति उनके प्रेम की छाप हमेशा के लिए हमारे दिलों में बसा दी। लेकिन चिपको आंदोलन सिर्फ गौरा देवी की ही सोच नही थी। उनके उस आंदोलन में कई ऐसे नाम भी शामिल थे जो लगातार प्रकृति प्रेमी के साथ साथ प्रकृति सरंक्षण के लिए भी हमेशा अग्रसर रहते थे।

उन्ही में एक नाम शामिल है सुंदरलाल बहुगुणा का। जो कि भारत के प्रमुख पर्यावरण चिंतक और चिपको आंदोलन के प्रणेता माने जाते है।उनका जन्म 9 जनवरी 1927 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के छोटे से गांव मरोडा में हुआ। 21 मई 2021 को सुंदरलाल बहुगुणा की मृत्यु अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, ऋषिकेश में हो गई। और वे हमेशा के लिए हमे अलविदा कह गए।

सुंदरलाल बहुगुणा एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने पेड़ो को बचाने के लिये चिपको आंदोलन की अलख जलाई। टिहरी में बने डैम को विनाशकारी मानते हुए उसके विरोध में उन्होंने कई धरने दिए, कई आंदोलन चलाये। उन्होंने इस डैम का पुरजोर विरोध किया। पंडित समाज में पैदा होने के बावजूद भी उन्होंने उत्तराखंड में चल रहे छुआछूत का उन्होंने खुलकर विरोध किया और दलितों के मसीहा बनकर सामने आए।

सिर्फ इतना ही नही उन्होंने हिमालय क्षेत्र का ध्यान खींचने और प्रकृति के लिए सोचने के लिए 1980 के दशक में कश्मीर से कोहिमा लगभग 4800 किलोमीटर लंबी पैदल यात्रा की। अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक उन्होंने पर्यावरण बचाने के लिए आंदोलन करते रहे। जिसमे सुंदरबन बचाओ आंदोलन भी शामिल था।

अपने जीवनकाल के इतने क्षण आंदोलन या यूं कहें कि कई कष्ट झेलने के बाद भी उनकी आंखों में हमेशा अलग ही चमक देखने को मिलती थी। उनसे मिला हर व्यक्ति उनके जिंदादिली व्यवहार से हमेशा प्रभावित होते थे। उनके आवास स्थान पर तरह तरह के पेड़ देखने को मिलते।

उनके प्रकृति के प्रति प्रेम व कार्यो को देखते हुए 2019 में उन्हें “पद्म विभूषण” से सम्मानित किया गया। 21 मई 2021 को कोरोना संक्रमण के बाद गांधीवादी सुंदर लाल बहुगुणा इस दुनिया को अलविदा कह गए।

सुंदरलाल बहुगुणा हमेशा पर्यावरण के लिए जीए। परिवार से ज्यादा वक्त उन्होंने पर्यावरण को दिया। नेकी की राह पर चलने वाले सुंदरलाल बहुगुणा जैसा न कोई था न कोई हो सकता।

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