यह तो तय था कि हरक सिंह की कांग्रेस में वापसी को लेकर एक वर्ग का तीखा विरोध है। हरीश रावत को अब भी वह टीस कचोटती है कि हरक ने अब भाजपाई हो चुके पूर्व कांग्रेसियों के साथ मिलकर उनकी सरकार को गिराने की साजिश रची। वह लगातार यह कह रहे हैं कि हरक ‘लोकतंत्र की हत्या’ के दोषी है। इसी प्वाइंट पर वह हरक की वापसी पर वीटो लगा रहे हैं।
उत्तराखंड में इस समय चल रही सियासी पिक्चर में वो तमाम मसाले हैं, जो दर्शकों की दिलचस्पी क्लाइमेक्स तक बनाए रखते हैं। जनवरी की सर्द हवाओं और विधानसभा चुनाव से ऐन पहले उत्तराखंड का सियासी पारा गरम है। फिल्म को दिलचस्प बनाए रखने के पीछे जो किरदार है, वो भले ही ‘ग्रे शेड’ लिए हो लेकिन चुनावी चर्चा के केंद्र में है। नाम है हरक सिंह रावत।
पिछले कई दिनों से हरक सिंह के ‘सरकने-फरकने’ को लेकर अटकलें लगती रहीं और आखिरकार ‘पुख्ता सबूत’ मिलने के बाद पहले सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कैबिनेट से और फिर भाजपा ने उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया। औसत मुंबइया फिल्म की तरह यह तय लग रहा था कि अब कांग्रेस में हरक की वापसी हो जाएगी। कांग्रेस से आ रहे संकेत भी इसी तरफ इशारा कर रहे थे कि पार्टी हाईकमान से हरीझंडी मिलने के बाद ही हरक दिल्ली के लिए निकले हैं। तोहफे में चार विधायकों को भी साथ ले जाने की खबरें थीं। सोमवार को तय पटकथा के अनुसार उन्हें कांग्रेस ज्वाइन करनी थी। लेकिन तभी दक्षिण भारतीय फिल्म वाला ट्विस्ट आ गया और अब हरक त्रिशंकु की तरह भाजपा और कांग्रेस के बीच में ‘लटके’ नजर आ रहे हैं। 24 घंटे में ऐसा क्या हुआ कि राजनीति के स्वयंभू मौसम विज्ञानी हरक सिंह की गणित गड़बड़ा गई।
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यही इस कहानी का सबसे दिलचस्प हिस्सा है। दरअसल, यह तो तय था कि हरक सिंह की कांग्रेस में वापसी को लेकर एक वर्ग का तीखा विरोध है। हरीश रावत को अब भी वह टीस कचोटती है कि हरक ने अब भाजपाई हो चुके पूर्व कांग्रेसियों के साथ मिलकर उनकी सरकार को गिराने की साजिश रची। वह लगातार यह कह रहे हैं कि हरक ‘लोकतंत्र की हत्या’ के दोषी है। इसी प्वाइंट पर वह हरक की वापसी पर वीटो लगा रहे हैं। हालांकि उनका कहना है कि अगर पार्टी हाईकमान चाहेगा तो उन्हें हरक की कांग्रेस में वापसी से परहेज नहीं है।
प्रीतम हैं हरक की वापसी के रणनीतिकार
हरक की वापसी की पटकथा कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान को भी सामने लाती है। हरक कांग्रेस में आएं इसका प्रयास पूर्व पार्टी अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह कर रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि उनकी और हरक सिंह की इसे लेकर कई दौर की बातचीत हुई। इसके लिए प्रदेश कांग्रेस प्रभारी देवेंद्र यादव को भी भरोसे में लिया गया था। हरक को रणदीप सिंह सुरजेवाला से मिलाने वाले प्रीतम सिंह ही हैं। अब क्योंकि एक वीडियो बाजार में आ चुका है इसलिए यह बात काटी नहीं जा सकती। यही वीडियो हरक सिंह को भाजपा से बाहर करने का आधार बना। जानकार भी मानते हैं कि प्रीतम सिंह हरक की वापसी के साथ कांग्रेस में हरीश रावत विरोधी पक्ष को मजबूती देना चाहते थे, क्योंकि उनके साथ कुछ और विधायक भी कांग्रेस में आ रहे थे। ऐसे में चुनाव के बाद की परिस्थितियां प्रीतम सिंह के लिए मुफीद बन सकती थीं।
‘घर वापसी’ से पहले इमोशनल कार्ड
कांग्रेस में वापसी का इंतजार कर रहे हरक सिंह सोमवार सुबह टीवी चैनलों पर फूट-फूटकर रोते हुए दिखाई दिए। उन्होंने कहा, ‘भाजपा ने इतना बड़ा फैसला लेने से पहले मुझसे एक बार भी बात नहीं की। मुझे मंत्री बनने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है, मैं सिर्फ काम करना चाहता था। मैं इतने दिनों से घुटन में जी रहा था। अब उत्तराखंड के लोगों के लिए खुलकर काम करूंगा।’ हरक सिंह रावत ने दावा किया कि उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार बन रही है। मैं कांग्रेस ज्वाइन नहीं भी करता तो भी कांग्रेस की सरकार आती। उत्तराखंड के लोगों ने मन बना लिया है कि राज्य में कांग्रेस की सरकार लानी है। मैं भी कांग्रेस की सरकार लाने के लिए काम करूंगा। हरक ने दावा किया कि कांग्रेस के नेताओं से उनकी बात हुई है, हालांकि अभी सोनिया गांधी से वह नहीं मिले हैं।
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लैंसडाउन में महिला उम्मीदवार का ‘गेम प्लान’
उधर, हरक का सारा जोर इस बात पर था कि उनकी बहू अनुकृति गुसाईं को लैंसडाउन से टिकट मिले। खुद वह कोटद्वार छोड़कर किसी दूसरी सीट से चुनाव लड़ने को तैयार थे। मसलन, रुद्रप्रयाग, केदारनाथ, डोईवाला। हुआ यूं कि कांग्रेस में टिकटों के बंटवारे पर सहमति बनने के बावजूद कुछ सीटों पर एकराय नहीं थी। इनमें सबसे दिलचस्प थी लैंसडाउन विधानसभा। सूत्र बताते हैं कि पार्टी अध्यक्ष गणेश गोदियाल और हरीश रावत इस सीट से स्क्रीनिंग कमेटी के समक्ष रघुबीर सिंह बिष्ट का नाम भेजना चाहते थे। लेकिन हरक के साथ बन रही ट्यूनिंग के बाद प्रीतम सिंह ने इसमें ज्योति रौतेला का नाम जुड़वाया। पर्दे के पीछे से कोशिश इस बात की हो रही थी कि जिले से इस सीट को महिला उम्मीदवार को दिलवा दिया जाए। ज्योति रौतेला को हरक सिंह का समर्थक माना जाता है। उन्होंने ही ज्योति को साल 2012 में चुनाव लड़वाया था। गणित यह थी कि हरक सिंह की वापसी की शर्त में इस सीट पर अनुकृति को टिकट देना शामिल रहे। ऐसे में ज्योति रौतेला अनुकृति को मैदान में उतारने का विरोध नहीं करतीं। साथ ही महिला उम्मीदवार की जगह दूसरी महिला को चुनाव लड़ाने पर कोई ऐतराज नहीं होता। वहीं अगर सिर्फ रघुबीर सिंह का नाम आगे बढ़ाया जाता तो उन्हें हटाकर अनुकृति को टिकट दिलाना मुश्किल होता। हरक सिंह जिस टीम के साथ कांग्रेस में आना चाहते हैं, वह भी चुनाव बाद उनके गुट को मजबूती देती। यही वजह है कि हरीश रावत ने हरक की कांग्रेस में वापसी पर अड़ियल रुख अपनाया है। वह चाहते हैं कि वापसी की टर्म एंड कंडीशन पहले तय कर ली जाएं। सूत्रों के मुताबिक, भाजपा से बेदखल हो चुके हरक को एक सीट की कुर्बानी भी देनी पड़ सकती है, क्योंकि अब वह सियासी मोलभाव करने की मजबूत स्थिति में नहीं है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि हरक की कांग्रेस में वापसी किन शर्तों के साथ होती है।
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